Thursday 2 January 2014

जिए जा रहे हैं हम



जिए जा रहे हैं हम

कहानियां बनती जिन्दगी के
पात्र  हो
जिए जा रहे हैं हम
अपराधपूर्ण जिन्दगी के
कथाकार हो
जिए जा रहे हैं हम
संस्कृति को दिया
न हमने अब तक कुछ
कुठाराघात किये
जिए जा रहे हैं हम
मानव से मानव का अलगाव
सभ्यता को खंडहर कर
जिए जा रहे हैं हम
प्रकृति ने हमें दिया बहुत कुछ
फिर भी उस पर प्रहार कर
जीवन टटोलते
जिए जा रहे हैं हम
कुछ पाने की चाहत ने
हमें कुछ इस हद तक
गिरा दिया है
कि गिर – गिरकर
ऊँचा उठने की
नाकाम कोशिश
किये जा रहे हैं हम
परिवार, समाज को पीछे छोड़
आधुनिकता का दंभ भर
सभ्यता पर कलंक बन
जिए जा रहे हैं हम
प्रकृति के नियम तोड़
आधुनिकता ,समलेंगिकता ,
टेस्ट टयूब बेबी ,किराए पर कोख
जैसे नासूरों के साए में     
जिए जा रहे हैं हम
धरा पर आतंक पनपाकर
परमाणु हथियारों के साए में
जीवन पाने की
नाकाम कोशिश
किये जा रहे हैं हम
पत्रिकाओं में गंदगी परोस
आने वाली पीढ़ी को
उज्जवल भविष्य की ओर
ले जाने की नाकाम कोशिश
किये जा रहे हैं हम
इन अपराधपूर्ण व्यवहारों पर
अंकुश लगाना होगा
एक स्वस्थ समाज एवं
राष्ट्र का निर्माण करने
हमें अपनी संस्कृति
संस्कारों को अपनाना होगा
भावी पीढ़ी को बड़ों का सम्मान
शिक्षकों का सम्मान
सिखाना होगा
छोटों से प्यार ,शॉर्टकट को छोड़
सत्य मार्ग अपनाना होगा
सत्य मार्ग अपनाना होगा
सत्य मार्ग अपनाना होगा

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