Wednesday 30 June 2021

हाइकु

 १.


दुःख के बादल

माँ के आँचल तले

छंट जाते हैं |



२.


बीती यादों को

संजोकर रखना

सुखी जीवन |



3.


करम तेरा

खुदा की इबादत

शागिर्द तेरा |

Saturday 26 June 2021

भाई जरा संभलकर ये मुंबई है - कटु अनुभव ( संस्मरण )

 सन 2016 की बात है मैं अपनी पत्नी के साथ भतीजी की शादी में मुंबई गया | चूंकि शादी एक दिन बाद की थी सो 

हमने मुंबई घूमने का प्रोग्राम बनाया | मैं , मेरी पत्नी, भांजी एवं दामाद जी , बड़ी बहन , जीजाजी , छोटी बहन एवं 

उसका बेटा  हम सभी  सबसे पहले सिद्धि विनायक जी के मंदिर दर्शन के लिए गए | भीड़ बहुत थी | धक्का - 

मुक्की चल रही थी फिर भी किसी तरह से हमें सिद्धि विनायक जी के दर्शन संभव हुए |

                         इसके बाद हम और आगे बढ़े बाबा हाजी अली जी के दरबार में हाजिरी के लिए | यहाँ भी भीड़ 

बहुत थी किन्तु आसानी से दरबार में प्रवेश मिल गया | हमने बाबाजी को चादर पेश की | थोड़ा  समय हमने समंदर 

की लहरों का नजारा लेने में खर्च किया | इसके बाद हम मुख्य सड़क पर आ गए और कुछ खाने का विचार मन में 

आया | बात मेंगो  शेक पर आकर रुकी | मुख्य सड़क पर " हाजीअली जूस कार्नर " के नाम से एक दुकान थी 

हमने चार ग्लास मेंगो शेक का आर्डर किया जब बिल भरने का समय तो हमारे पैरों के नीचे से जमीं खिसकने लगी 

| बिल था "680/-"  छः सौ अस्सी रुपये | हमने पूछा मैडम ये मेंगो शेक तो हम हमारे यहाँ ज्यादा से ज्यादा 20 रुपये 

में पीते हैं | पर एक सौ सत्तर रुपये एक ग्लास का |  हमारी गलती केवल इतनी थी कि हमने दाम नहीं पूछा और 

आर्डर कर दिया |

                इस घटना को आपके साथ साझा करने का एक ही उद्देश्य था कि आप जब भी मुंबई जाएँ कुछ भी 

खरीदने से पहले उसका दाम अवश्य पूछ लें | अन्यथा आपको भी हमारी तरह ..................|

Thursday 24 June 2021

काश मेरा मित्र उनसे निवेदन कर लेता - संस्मरण

यह घटना वर्ष 1985 की है  एक बार मैं और मेरा मित्र रेलवे स्टेशन पर किसी परिचित को छोड़ने गए | चूंकि हमारे 

यहाँ यह प्रचलन था कि जो भी मेहमान घर आये उसे लेने स्टेशन  जाएँ और जब वह वापस जाए तो उसे स्टेशन  छोड़ 

कर आयें | तो हुआ यूं कि मेहमान को ट्रेन में बिठाकर जब हम स्टेशन से बाहर आ रहे थे तो मेरे मित्र को टिकट चेकर 

ने रोक लिया और पूछा टिकट दिखाने के लिए | मेरा मित्र थोड़ा जिद्दी और अक्खड़ स्वभाव का था सो उसने टिकट 

चेकर से बहस करनी शुरू कर दी उसका परिणाम यह हुआ कि उसे करीब 150 रुपये का अर्थदंड भोगना पड़ा 

जबकि इतनी राशि उसके घर में उपलब्ध भी नहीं थी सो पड़ोसी  से उधार लेकर उस राशि का भुगतान किया गया | 
                       
           अफ़सोस इस बात का था कि वह मेरी तरह विनम्रता से बोलकर भी अपना काम चला सकता था किन्तु उसके 

जिद्दी स्वभाव ने उसके परिवार को भी मुसीबत में डाल  दिया | इसलिए हमेशा प्यार से हो सके तो व्यवहार करें | प्रेम 

से आप किसी का भी दिल जीत सकते हैं | शेष आप खुद समझदार हैं |

मेरा वो रिक्शे को धक्का देना - संस्मरण

मेरी माताजी जब भी बाजार या मंदिर जाया करती थीं तो मुझे अपने साथ ले जाया करती थीं | मुझे रिक्शे पर बैठने 

का बड़ा शौक था | इसी  बहाने मैं बाजार से सामान खरीदने की कला सीख गया | 

                                                यहाँ मैं आपके साथ एक महत्वपूर्ण बात साझा करना चाहता हूँ वह यह कि छोटी - 

छोटी बातें हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं | बात यह कि मैं और मेरी माताजी जब रिक्शे पर जाते या 

लौटते समय  किसी चढ़ाई वाली सड़क से गुजरते थे तो मेरी माँ मुझे रिक्शे से उतारकर पीछे से रिक्शे को  धक्का 

लगाने को कहती थी इसके पीछे का उद्देश्य बचपन में तो समझ नहीं आता था किन्तु जैसे -  जैसे बड़े होते जाते हैं 

तब इन सभी बातों का मर्म हमें समझ में आने लगता है | जरूरतमंद की मदद करना हमारा फ़र्ज़ होना चाहिए | 

किसी अंधे व्यक्ति को सड़क पार कराना , किसी को पता ढूँढने में मदद करना, प्यासे को पानी पिलाना आदि ऐसे 

बहुत से कार्य हैं जो हम कर सकते हैं | जरूरत है तो केवल आत्मविश्वास की और श्रद्धा की | आप हमेशा एक बात 

ध्यान में रखें कि आपको जो चीज प्रिय है उसे किसी गरीब को जरूर खिलाकर देखें | उस दिन आप स्वयं को सबसे 

ज्यादा खुश महसूस करेंगे |

            कोशिश करके देखिएगा |


मेरी पहली कविता की प्रथम चार पंक्तियाँ - संस्मरण

 बात  2005 के मई माह की है शायद कल से हमारा ग्रीष्म अवकाश आरम्भ होना था | मैंने अपने पुस्तकालय में बैठे - 

बैठे यूं ही " सत्य " विषय  पर चार पंक्तिया लिखीं | इसी बीच हमारे ही विद्यालय के प्राथमिक शिक्षक श्री लालजी कोल 

का पुस्तकालय में  आगमन हुआ जिनका हिंदी भाषा का ज्ञान काफी अच्छा है | मैंने अपनी इस पहली रचना " सत्य" 

की चार पंक्तियाँ उन्हें दिखायीं | वे उन पंक्तियों को पढ़कर  बहुत ही प्रभावित हुए और कहा " बहुत ही सुन्दर गुप्ता 

जी  इसे आप पूरा कीजिये और आगे भी इसी तरह से लिखते रहिये " |

                       उनके द्वारा कहे गए शब्दों को सुनकर मैंने स्वयं को गौरवान्वित महसूस किया और अनवरत लिखते 

रहने की प्रेरणा ने मेरे भीतर ऊर्जा का संचार कर दिया | आज मुझे  लिखते हुए करीब 17 वर्ष हो गए हैं | अभी तक 

मैंने  करीब 1200 कवितायें, गीत ग़ज़ल , भजन , शायरी , विचार  और लेख  ब्लॉग के माध्यम से प्रकाशित किये हैं | 

जिनके माध्यम से मुझे अपार स्नेह की प्राप्ति हुई है | मैं श्री लालजी कोल जी का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे प्रेरित किया |

प्रेरक प्रसंग - संस्मरण

 बात 1990 की है जब मैंने जबलपुर के एक कंप्यूटर सेंटर "" ZAPSON COMPUTER CENTRE " को डाटा 

एंट्री  सीखने के लिए ज्वाइन किया | मेरे इंस्ट्रक्टर श्री सेठी जी थे | करीब एक माह का कोर्स था जिसे मैंने पूरी लगन के 

साथ पूरा  किया | इसके बाद मेरी माँ के कहने पर मैंने " SIX MONTH DIPLOMA COURSE " भी इसी सेंटर 

से  शुरू किया  | अभी करीब तीन माह ही बीते थे कि एक दिन अचानक मुझे सेठी जी ने कहा कि कल से तुम्हें 

क्लासेज लेनी हैं |  यह  सुन मैं एक दम से घबरा गया | मैंने कहा " सर जी आप मजाक कर रहे हैं क्या ?" उन्होंने 

कहा " मैं मजाक नहीं कर  रहा हूँ | I AM SERIOUS " यह सुन मेरी हालत और भी ज्यादा खराब हो गयी | मैं 

उनके हाथ - पैर पकड़कर कहने  लगा कि यह मुझसे नहीं होगा |

                       इस पर उन्होंने कहा " मिस्टर गुप्ता मुझे पता है कि आप सक्षम हैं और आसानी से पढ़ा लेंगे | फिर

 मेरा  अगला प्रश्न था कि मुझे किनको पढ़ाना है ? इस पर बड़ी विनम्रता से उन्होंने कहा कि आपको तीन आफ्रिकन

स्टूडेंट्स  को पढ़ाना है | यह सुनते ही मेरी हालत पहले से भी ज्यादा खराब हो गयी | मैंने इससे पहले कभी  अंग्रेजी 

को बोलचाल के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया था इसीलिए मैं डर रहा था कि किस तरह से अफ्रीकन स्टूडेंट्स को 

पढ़ाऊंगा | किन्तु सेठी जी ने मुझे मेरे भीतर के डर को कम किया और कहा कि मिस्टर गुप्ता आपको अंग्रेजी आती 

है किन्तु आप बोलते नहीं हैं इसीलिए थोड़ा  डर रहे हैं | मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप आसानी से पढ़ा लेंगे |

             उस दिन के बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और उनके द्वारा जगाये गए आत्मविश्वास के दम पर मैं आगे 

बढ़ता रहा | बाद में वर्ष 2003 में मैंने अंग्रेजी साहित्य से स्नातकोत्तर की उपाधि पूरी की | मैं आज भी श्री सेठी जी 

का  अहसानमंद हूँ जिन्होंने मुझमें विश्वास दिखाया | मैं उन्हें आज भी दिल की गहराइयों से उनका वंदन करता हूँ |

                 

Sunday 13 June 2021

क्यूं आये है इस धरती पर - भाग -दो

 क्यूं कर आये हैं , इस धरती पर 

क्या करना है , क्या पाना है 


भौतिक जगत में भटक रहे हम 

पल  - पल खुद को समझाना है 


संस्कारों को दे दी तिलांजलि 

आधुनिकता में ढल जाना है 


क्यूं कर आये इस धरती पर 

इसका भेद नहीं जाना है 


मानव होकर जीवन पशु सा 

क्यूं कर यहीं बिखर जाना है 


क्यूं मैं भागूं , क्यूं तुम भागो 

क्यूं कर यहीं पर, थक जाना है 


जीवन का सपना कैसा हो 

क्या हमने यह जाना है 


जीवन का सत्य कैसा हो 

क्या हमने ये पहचाना है 


क्यों कर आये इस धरती पर 

क्यूं कर नहीं मर्म जाना है 


रह जाएगा सब कुछ यहीं पर 

क्या यह सत्य हमसे अनजाना है 


फिर भी भागमभाग मची है 

क्या कर कोई आस बची है 


क्यूं कर आये हैं , इस धरती पर 

क्या करना है , क्या पाना है 


भौतिक जगत में भटक रहे हम 

पल  - पल खुद को समझाना है 


ये बारिश का मौसम , सुहाना ये मौसम

 ये बारिश का मौसम , सुहाना ये मौसम 

चलो भीग आयें, ये बूंदों का मौसम 


खुद को संभालें या उनकी दीवानगी को 

चलो भीग आयें , ये बहारों का मौसम 


बारिश से खिल उठा है रोम - रोम सभी का 

चलो भीग आयें , ये मस्ती का आलम 


बूंदों से मस्ती का पूरा हो चलन 

बादलों की गड़गड़  झमाझम ये मौसम 


अद्भुत नज़ारे, अनुपम ये फिजां है 

चलो कर आयें, प्रकृति से आलिंगन 


बारिश के गीतों से रोशन हुई है फिजायें 

चलो गुनगुनाएं , ये बारिश का मौसम 


तेरा मुस्कराना मेरे पास आना 

चलो भीग आयें , ये दीवानों  का मौसम 


बूंदों को अंजुल में चलो समेट आयें 

प्रकृति के अनुपम नज़रों का मौसम 


ये बारिश का मौसम , सुहाना ये मौसम 

चलो भीग आयें, ये बूंदों का मौसम 


खुद को संभालें या उनकी दीवानगी को 

चलो भीग आयें , ये बहारों का मौसम 



क्यूं आये हैं , इस धरती पर - भाग - एक

क्यूं आये हैं , इस धरती पर

क्या करना है, क्या पाना है 


भागती  - दौड़ती इस जिन्दगी में 

कहाँ रुकना है, कहाँ ठहर जाना है 


चाहतों का अंबार सजा है 

अभिलाषाओं का बाजार सजा है 


जाना कहाँ , किधर है हमको 

मंजिल का मार्ग घना है  


क्या पूछें , क्या किसे बताएं 

जीवन का आधार कहाँ है 


क्या सोचकर भेजा उसने 

इसका हमको पता कहाँ है 


क्या उद्देश्य है इस जीवन का 

जाना कहाँ , कहाँ रुकना है 


पीड़ा का अंबार सजा है 

अंतर्मन में कोहरा घना है 


बूझ नहीं पाया ये मानव 

जीवन ने क्या सत्य बुना है 


बिखरा  - बिखरा मानव का जीवन 

जीवन में अन्धकार घना है 


क्यूं आये हैं , इस धरती पर

क्या करना है, क्या पाना है 


भागती  - दौड़ती इस जिन्दगी में 

कहाँ रुकना है, कहाँ ठहर जाना है 




वो बारिश का मौसम

वो बारिश का मौसम , वो तेरा चहकना 

मेरे पास आना, और हौले से कानों में कहना 


वो तेरी मरमरी बाहें , वो तेरे चहरे का नूर 

वो  भीगना तेरा, और आकर मुझसे लिपटना 


वो मुस्कराना तेरा , वो पास आना तेरा 

भीनी  - भीनी खुशबू , वो चहचहाना तेरा 


नय्नूं से नयनों का मिलन हो रहा था 

पावन प्रेम का आलिंगन हो रहा था 


बहकती साँसों में डूबे थे हम तुम 

वो बिजली का गड़गड़ाना , तेरा मुझसे लिपटना 


वादों का एक दौर , हो गया था रोशन 

वो बारिश का मंजर हमारे प्यार का ठिकाना 


चाहतों का एक समंदर  हो रहा था रोशन

मेरी बाहों में तेरा होना, और दिलों का धड़कना 


साँसों से साँसों का मिलन हो रहा था 

वो तेरा बहकना , वो तेरा चहकना 


वो बारिश का मौसम , वो तेरा चहकना 

मेरे पास आना, और हौले से कानों में कहना 


वो तेरी मरमरी बाहें , वो तेरे चहरे का नूर 

वो  भीगना तेरा, और आकर मुझसे लिपटना 




Saturday 12 June 2021

मेरे मालिक, मेरी सरकार हो जाओ

 मेरे मालिक,  मेरी सरकार हो जाओ 


मेरे दिल का सुकूँ , दिल का चैन हो जाओ 

मेरे मालिक,  मेरी सरकार हो जाओ 


मेरे ग़मों में मरहम , दर्द का ईलाज हो जाओ 

मेरे मालिक,  मेरी सरकार हो जाओ 


मेरे गीतों को ग़ज़ल कर दो , मेरी कलम का विस्तार हो जाओ 

मेरे मालिक,  मेरी सरकार हो जाओ 


मेरे सपनों को साकार  करो, मेरी मंजिल का किनारा हो जाओ  

मेरे मालिक,  मेरी सरकार हो जाओ 


मेरे आदर्शों का कारवाँ हो रोशन , मेरी जिन्दगी की पतवार हो जाओ 

मेरे मालिक,  मेरी सरकार हो जाओ 


मेरे चिंतन का समंदर करो रोशन, मेरे चिंतन मन का विस्तार हो जाओ 

मेरे मालिक,  मेरी सरकार हो जाओ 


मेरे आशियाने को करो रोशन, मेरे आशियाँ के खेवनहार हो जाओ 

मेरे मालिक,  मेरी सरकार हो जाओ 

 

मेरी सोच का रोशन करो एक पूर्ण आसमां , मेरे चिंतन का विस्तार हो जाओ 

मेरे मालिक,  मेरी सरकार हो जाओ 


मेरी कलम पर मेहरबान हो जाओ , मेरे विचारों का समंदर हो जाओ 

मेरे मालिक,  मेरी सरकार हो जाओ 


मेरे मालिक,  मेरी सरकार हो जाओ 

मेरे मालिक,  मेरी सरकार हो जाओ 

विचारों की गंगा बहाओ तुम भी

 विचारों में गंगा बहाओ तुम भी 


विचारों की गंगा बहाओ तुम भी 

गुलशन में कुछ पुष्प खिलाओ तुम भी 


चीर दो विचारों के तम को 

गुलशन में उजियारा फैलाओ तुम भी 


रोशन कर दो विचारों का समंदर  , रुकना नहीं 

विचारों की गंगा बहाओ तुम  भी 


शायरी और ग़ज़ल का कारवाँ भी  हो रोशन 

गुलशन में ग़ालिब बन छा जाओ तुम  भी 


मधुशाला जैसे विषयों पर करो एक कारवाँ रोशन 

गुलशन में बच्चन बन निखर जाओ तुम भी 


रचना की सभी विधाओं में होना पारंगत तुम 

गुलशन में कभी गीत कभी ग़ज़ल हो जाओ तुम भी 


कलम को विचारों की अनवरत , विचार धारा का हिस्सा बना लो 

गुलशन में विचारों का कारवाँ सजाओ तुम भी 


लिखो कुछ ऐसा , छूट जाएँ दुःख के बादल 

गुलशन में गम दूसरों के , चुराओ तुम भी 


रोशन करो अपने विचारों को , मानवीय विचारों से पुष्पित 

गुलशन में इंसानियत के पुष्प खिलाओ तुम  भी 


चंद अश'आर लिख दो , उस खुदा की इबादत में भी     

गुलशन में खुदा के नूर हो जाओ तुम भी 

 


Wednesday 9 June 2021

ज़रा संभलकर - संस्मरण

 

ज़रा संभलकर

 

मैं अपने जीवन का एक संस्मरण आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ हुआ यूं कि मेरे एक मित्र को खुद पर शायद ज्यादा ही विश्वास था यानी अतिआत्मविश्वास | दीपावली  का त्यौहार आया | गली – मोहल्ले में सभी अपने  - अपने घर की छत पर बिजली वाला रंगीन तारा लगाने की तैयारी कर रहे थे | मेरे मित्र को भी अपने घर पर तारा लगाने की सूझी और शुरू हो गया तारा बनाने की तैयारी | तारा बनकर तैयार हो गया | अब बिजली की तार  ढूँढने का काम शुरू हुआ | घर में एक कबाड़ के नाम से एक पुराना लोहे का डिब्बा था बस उसी में से तारों के छोटे  - छोटे टुकड़ों को इकठ्ठा किया गया और उन्हें जोड़  - तोड़कर उसमे प्लग लगाकर छत पर तारा लटका दिया गया |

         अब शुरू होता है मेरे दोस्त के अतिआत्मविश्वास का खेल |  तारा लग गया | दोस्त का दूसरा भाई तारे के जलने यानी चमकने को लेकर अतिउत्साहित था | किन्तु ये क्या हुआ  बिजली का बटन चालू करते ही पूरे घर की बिजली गुम  और जोर की आवाज “भूम – भड़ाम “ | सारे घबरा गए कि आखिर क्या हुआ | पता चला कि तारे का प्लग बोर्ड के पॉइंट से चिपक गया | घर के सारे फ्यूज उड़ गए |

              सभी सोच रहे थे कि  आखिर ऐसा क्यों हुआ ?  साड़ी खोजबीन करने पर पता चला कि बिजली के तारों को एक दूसरे के साथ जैसे रस्सी के सिरों को बांधकर गाँठ लगाईं जाती है उसी तरह से जोड़ा गया था | अब हमारे मित्र जनाब को समझ आ गयी कि किसी भी काम को करने से पहले किसी समझदार व्यक्ति से जानकारी ले लेनी चाहिए ताकि .......... भविष्य में भी ऐसी कोई घटना न हो |

              तो आप भी समझ गए होंगे कि .........अतिआत्मविश्वास कभी - कभी ..........!!!!!!!

मुक्तक

१. 


चंद दामन तू खुशियों से भर , चंद आशियाने तू कर रोशन

तेरी हर एक कोशिश को, खुदा का करम हो नसीब

२.



चंद फूल खिला . खुद पर क्यों इतरावें हम
फूलों का एक उपवन खिला, जिन्दगी को रोशन कर लें

3.



हमारी आरजू में कभी वो तड़पे , उनकी आरजू में कभी हम तड़पे
ये तड़प का दौर , आज भी बदस्तूर जारी है.

4.


कुछ गौत मैं उसके पेशे नज़र , कर दूं तो अच्छा हो
इसी बहाने मेरे दिल को करार , आ जाए तो अच्छा हो

Tuesday 8 June 2021

मुक्तक

१.



कोशिशों की नाव हम समंदर में , क्यों
चलाया नहीं करते

मंजिल की राह में प्रयासों को हम
अपना, हमसफ़र क्यों बनाया नहीं करते




२.


क्यों हम किसी के काँधे का , सहारा
लिए चलें

क्यों न अपनी कोशिशों को , अपना
हमसफ़र किये चलें


3.

वक़्त के इशारे को जब , समझने
लगोगे तुम

रोशन तेरा जहाँ हो जाएगा, उस खुदा
का तुझ पर होगा करम



4.

वक़्त को अपने प्रयासों का हमसफ़र बना के
तो देख

मिलेगी मंजिल तुझको, नसीब होगी तुझे हर
एक रोज एक नई सुबह

Saturday 5 June 2021

विचारों को अपने एक पैगाम दे दो

विचारों को अपने एक पैगाम दे दो 


विचारों को अपने एक पैगाम दे दो 

विचारों से खुला एक आसमान दे दो 


क्यूं कर भटक जाएँ विचारों की राहें 

आत्मविश्वास से पोषित एक आसमान दे दो 


चिंतन का हो जाए एक रोशन समंदर 

विचारों को अपने इबादत का नाम दे दो 


चिंतन का एक गुलशन हो जाए रोशन 

विचारों को अपने इंसानियत नाम दे दो 


चिंतन का विषय मानव कल्याण हो निखरे 

विचारों को अपने मानवता नाम दे दो 


तेरे विचार इस प्रकृति को अलंकृत कर दें 

विचारों को अपने प्रकृति का पैगाम दे दो 


विचारों को अपने एक पैगाम दे दो 

विचारों से खुला एक आसमान दे दो 


क्यूं कर भटक जाएँ विचारों की राहें 

आत्मविश्वास से पोषित एक आसमान दे दो 



अभी तक संभाला है तूने मुझे

अभी तक संभाला है तूने मुझे 


अभी तक संभाला है तूने मुझे 

आगे भी रखना ख्याल मेरे मालिक 


अभी तक संवारा है तूने मुझे 

आगे भी रखना ख्याल मेरे मालिक 


अभी तक रोशन किया तूने मुझको 

आगे भी रखना ख्याल मेरे मालिक 


अभी तक दिखाई है राह तूने मुझको 

आगे भी रखना ख्याल मेरे मालिक 


मेरे आशियाँ को रोशन किया है तूने 

आगे भी रखना ख्याल मेरे मालिक 


गिरने से बचाया है तूने मुझे 

आगे भी रखना ख्याल मेरे मालिक 


सितारे मेरी किस्मत के बुलंद किये तूने

आगे भी रखना ख्याल मेरे मालिक 


रोशन की है कलम मेरी तूने 

आगे भी रखना ख्याल मेरे मालिक 


आँखों का तारा किया तूने मुझको 

आगे भी रखना ख्याल मेरे मालिक 


मेरे दामन को पाक  - साफ़ किया तूने 

आगे भी रखना ख्याल मेरे मालिक 


अभी तक संभाला है तूने मुझे 

आगे भी रखना ख्याल मेरे मालिक 


अभी तक संवारा है तूने मुझे 

आगे भी रखना ख्याल मेरे मालिक