रजनीश
रजनीश रात्रि का देव बना
खिलता दूर गगन पर
करता पुष्ट धरा पर जीवन
जीवन दे प्रकृति को
मुस्कुराता दूर आसमां पर
हम उसे पुकारें मयंक, निशाकर
दिन का तारा दूर गगन पर
खिलता बन वो लाल गेंद सा
कहलाता वो सूरज, रवि, सविता
दिनकर , प्रभाकर , भास्कर , दिवाकर
करता दूर अन्धेरा , देता हमको उजियारा
देता प्रकाश उर जीवन में आदित्य कहलाता
बादलों का निर्माण करे यह करे वाष्प निर्माण
वायु जीवन बन खिलती है
हर प्राणी को जीवन देती है
मंद पवन प्रकृति मुस्काये
मानव हर पल जेवण पाए
वायु बिन संभव न जीवन
वायु , पवन , वात कहलाये
और कहाए मरूत , अनिल और कहाए समीर
पृथ्वी की तुम बात न पूछो
गर्भ में इसके क्या है यह न पूछो
सत्य अनके इसके गर्भ में
बाहर आने को व्याकुल हैं
बोझ पूरे ब्रम्हांड का ढोती
स्वयं व्याकुल जीवन को रोती
जीवन पुष्प इसी पर खिलते
तुम धरणी हो तुम वसुंधरा
तुम अचला तुम धरती कहलाती
दुनिया के सब चर्चे तुमसे
महान व्यक्तित्व सब तुम पर जन्मे
आविष्कार सभी तुम पर पलते हैं
अनुपम
प्रकृति से तुम अलंकृत
हिम पर्वत तुम्हारी रौनक
पाप अधर्म से दबी हुई तुम
जीवन जीवन जीवन करतीं
प्रेम स्नेह की तुम्हें जरूरत
अवच्छ विचारों की तुमको चाहत
तुम हंस दो खिल जाए जीवन
तुम जो हिलो तो तड़पे जीवन
हमको तुमसे आस बहुत है
शायद तुममे सांस बहुत है
वायु, चन्द्र , अग्नि पृथ्वी को
और आसमां को है चाहिए
मानव की सहिष्णुता और ढेर सा प्यार
प्रकृति के हम ना हों शत्रु
मिलकर हम सब इसे संवारें
इन सबसे हम जीवन पाते
क्यों हम इन्हें नहीं अपनाते
आओ हम ये शपथ उठायें
अनके बचाव में कुछ कदम बढ़ायें
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