Friday 30 April 2021

परिवार – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

                                  परिवार – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

परिवार , जीवन का आधार
परिवार, समाज के उद्भव का आधार

परिवार से , संस्कृति और पलते संस्कार
परिवार, धर्म का विस्तार

परिवार से ये कायनात रोशन
परिवार से प्रकृति का श्रृंगार

परिवार राष्ट्र की धरोहर
परिवार से मिलता एकता को बल

परिवार से ही रोशन होता यह संसार
परिवार, मर्यादाओं का विस्तार

परिवार , अनुशासन का आधार
परिवार से रोशन होता आशियाँ

परिवार , ग़मों को साझा करने का आधार
परिवार, खुशियों को जीने का आधार

परिवार से मुकम्मल होती ये कायनात
परिवार से ही सामाजिकता का विस्तार

परिवार , एक अनुपम उपहार
परिवार ! परिवार ! परिवार !

Thursday 29 April 2021

मानव की कैसी ये दुर्दशा हो रही है

 

मानव की कैसी ये दुर्दशा हो रही है

 

मानव की कैसी ये दुर्दशा हो रही है

तड़पती ये साँसें बेवफ़ा हो रही हैं

 

सिसकती जीवित आत्माएं हजारों आंसू रो रही हैं

एक वायरस से जिंदगियां फ़ना हो रही हैं

 

मूक हैं सत्ता के ठेकेदार, क्या बताएं

तिल   - तिल कर जिंदगियां तबाह हो रही हैं

 

सत्ता के गलियारे में , चुनाव की हलचल है

नेताओं की आँखें , कुर्सियों पर टिकी हुई हैं

 

कहीं माँ रो रही है, कहीं भाई रो रहा है

कही बाप अपने बेटे की अर्थी , काँधे पे ढो रहा है

 

मानवता सिसक रही है , इंसानियत रो रही है

रोजगार फना हो रहे हैं , रसोई तड़प रही है

 

जवाँ खून कोरोना की बलि चढ़ रहे है

ऑक्सीजन और दवाई के अभाव में मर रहे हैं

 

कुछ हैं जो अस्पतालों में जगह को तरस रहे हैं

कुछ हैं जो अपनी लापरवाही से मर रहे हैं

सस्ते क्यों इतने कफ़न हो गए

 

सस्ते क्यों इतने कफ़न हो गए

 

सस्ते क्यों इतने कफ़न हो गए

उजड़े – उजड़े से क्यों ये चमन हो गए

 

पीर अब दिल की मिटाता नहीं  कोई

हमारे ही हमारी जान के दुश्मन हो गए

 

रिश्तों की कोंपल अब,  फूल बन खिलती नहीं

जो हुआ करते थे अपने , वो आज दुश्मन हो गए

 

जी पर किया भरोसा , वो भरोसे के लायक न रहे

होठों पर मुस्कान , बगल में छुरी लिए खड़े हो गए

 

कोरोना ने उड़ा रखी है , सभी की नींद

इस त्रासदी में सभी रिश्ते , बेमानी हो गए

 

संवेदनाएं स्वयं को शून्य में खोजतीं

गली – चौराहे खून से सराबोर हो गए

 

नेताओं पर नहीं पड़ती कोरोना की मार

गरीब सभी अल्लाह को प्यारे हो गए

 

नवजात बच्चियां भी आज नहीं हैं सलामत

घर – घर चीरहरण के किस्से हो गए

 

सस्ते क्यों इतने कफ़न हो गए

उजड़े – उजड़े से क्यों ये चमन हो गए

 

पीर अब दिल की मिटाता नहीं  कोई

हमारे ही हमारी जान के दुश्मन हो गए

अपनी कलम को न विश्राम दो

 

अपनी कलम को न विश्राम दो

 

 अपनी कलम को न विश्राम दो

कुछ और नए पैगाम दो

सोये हुओं को नींद से जगाओ

चिंतन को न विश्राम दो

 

सपनों को कलम से सींचो

मंजिलों का पैगाम दो

भटक गए हैं  जो दिशा से

उन्हें सत्मार्ग का पैगाम दो

 

जो चिरनिद्रा में लीन  हैं

उन्हें  सुबह के सूरज का पैगाम दो

दिशाहीन हो गए हैं जो

उन्हें सही दिशा का ज्ञान दो

 

विषयों का कोई अंत नहीं है

कलम से उसे पहचान दो

चीरहरण  पर खुलकर लिखो

कुरीतियों पर ध्यान दो

 

बिखरी  - बिखरी साँसों को

एक नया पैगाम दो

जिन्दगी एक नायाब तोहफा

ऐसा कोई पैगाम दो

क्यूं कर टूटे रिश्तों की डोर

सामाजिकता का पैगाम दो

रिश्तों की मर्यादा हो सलामत

ऐसा कुछ पैगाम दो

 

अपनी कलम को पोषित करो

उत्तम विचारों की पूँजी दो

चीखती बुराइयों पर प्रहार कर

समाज को पैगाम दो

 

चिंतन का एक सागर हो रोशन

अपनी कलम को इसका भान दो

पीर दिलों की मिटाओ

मुहब्बत का पैगाम दो

हिमालय कर रहा हुंकार है

 

हिमालय कर रहा हुंकार है

 

हिमालय कर रहा हुंकार है

मानव ने किया उस पर प्रहार है

 

कभी ग्लेशियर का टूटना

कभी बाढ़ का दिखता प्रभाव है

 

कभी आसमानी बिजली चीखती

कभी सुनामी का प्रचंड वार है

 

कोरोना ने सारी सीमाएं तोड़ दीं

मानव अपने किये पर शर्मशार है

 

कभी ज्वालामुखी है चीखता

कहीं गृहयुद्ध की मार है

 

सुपारी किलर खुले आम घूमते

चीरहरण की घटनाएं बेशुमार हैं

 

संवेदनाएं दम हैं तोड़तीं

मानवता खुद पर शर्मशार है

 

चीख – पुकार का ये कैसा दौर है

हर एक शख्स हुआ लाचार है

 

मानव जीवन हुआ कुंठाओं का समंदर

इंसानियत हुई बेज़ार है

 

रिश्ते निभाने का अब चार्म न रहा

बिखरा – बिखरा सा मानव का संसार है

 

हिमालय कर रहा हुंकार है

मानव ने किया उस पर प्रहार है

 

पीर दिल की छुपाने की जरूरत क्या है

 

पीर दिल की छुपाने की जरूरत क्या है

 

पीर दिल की छुपाने की , जरूरत क्या है

गम को फना करने के , बहाने हैं बहुत

 

क्यूं कर दूर जाने की , बात करते हो

करीब आने, दिल लगाने के , बहाने हैं  बहुत

 

क्यूं कर रिश्तों में ये , कड़वाहट कैसी

रिश्तों को निभाने के , बहाने हैं   बहुत

 

क्यूं कर ग़मों को सीने से , लगाए बैठे हैं वो

ग़मों को भुलाने, जिन्दगी को मुस्कुराने के , बहाने हैं बहुत

 

क्यूं कर दिल की पीर को , अपनी धरोहर कर लें

खुशियाँ जताने और मुस्कुराने के , बहाने हैं बहुत

 

क्यूं कर किसी की चाहत को , ठुकराए कोई

मुहब्बत जताने और निभाने के , बहाने है बहुत

 

क्यूं कर किसी से दूरियां , बनाते हैं लोग

किसी के करीब आने , सीने से लगाने के , बहाने हैं  बहुत

 

क्यूं कर जिन्दगी को नासूर , बना लेते हैं लोग

पीर दिल की मिटाने और मुस्कराने के , बहाने हैं बहुत

Sunday 4 April 2021

तेरी खामोश निगाहें - गीत

तेरी खामोश निगाहें – गीत

 

तेरी खामोश निगाहें करतीं हैं बयाँ

तुझेमुझसे मुहब्बत हो गयी

 

तेरे चहरे का ये नूरकरता है बयाँ

तुझेमुझसे मुहब्बत हो गयी

 

क्या मैं छू लूं तुझेमेरी जाने - जां

तुझेमुझसे मुहब्बत हो गयी

 

तेरी नजरे - करम परमैं हूँ फ़िदा

तुझेमुझसे मुहब्बत हो गयी

 

चंद पल गुजार लूं तेरी आगोश में

तुझेमुझसे मुहब्बत हो गयी

 

एक बार मुस्कुरा के देख जरा

मुझे तुमसेमुहब्बत हो गयी

 

तेरी गलियों में फिरूं मैं दीवानों सा

मुझे तुझसे मुहब्बत हो गयी

 

मेरे आशियाँ को कर दे रोशन मेरी जाने जां

मुझे तुमसे मुहब्बत हो गयी

 

तेरी खामोश निगाहें करतीं हैं बयाँ

तुझेमुझसे मुहब्बत हो गयी

 

तेरे चहरे का ये नूरकरता है बयाँ

तुझेमुझसे मुहब्बत हो गयी


कभी नहीं चढ़ा, शोहरत का नशा

कभी नहीं चढ़ा, शोहरत का नशा

 

कभी नहीं चढ़ा, शोहरत का नशा

वो पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा

 

चिंतन का समंदर , रोशन होता रहा

वो पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा

 

विचारों की गंगा बह निकली, कलम से मेरी

वो पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा

 

कभी गीत, कभी ग़ज़ल , कभी कविता और कभी शेर

वो पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा

 

नवजीवन की ओर मैं अगसर होता रहा

वो सँभालते रहे और मैं बढ़ता रहा

 

दिल की आवाज़ , कलम रोशन करती रही मेरी

उन्हे आभास होता रहा , मैं बयाँ करता रहा

 

किसी के गम, किसी की पीर , मेरी कलम का हिस्सा हुए

वो मुस्कुराते रहे , मैं गम चुराता रहा

 

कभी नहीं चढ़ा, शोहरत का नशा

वो पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा

 

चिंतन का समंदर , रोशन होता रहा

वो पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

 जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

 

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

 

किसी रोते हुए को , आओ हंसाएं चलो

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

 

इस जीवन में, जीवन का एहसास जगाएं चलो

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

 

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

इस प्रकृति को , अनुपम दृश्यों से सजाएँ चलो

 

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

इस मन मंदिर में , उस खुदा को बसायें चलो

 

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

 

रहस्यों से आबद्ध उस छवि से, खुद को मिलाएं चलो

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

 

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

कोशिशों का एक कारवाँ , सजाएं चलो

 

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

 

संस्कृति, संस्कारों का , एक समंदर सजाएं चलो

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

 

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

इंसानियत का ज़ज्बा , हर एक के दिल में जगाएं चलो

 

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

 

दिल की गहराइयों से , रिश्तों का एक कारवाँ सजाएं चलो

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

 

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

हर एक शख्स में वतन पर मर मिटने का ज़ज्बा जगाएं चलो

 

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो

जीवन पथ का गीत , आओ गुनगुनाएं चलो