Tuesday 31 August 2021

पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ

 पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ 


पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ 

गीत बनकर मैं संवरना चाहता हूँ 


कोशिशों को अपनी धरोहर करना चाहता हूँ 

कीर्ति के नए आयाम रचना चाहता हूँ 


मैं रुकना नहीं , आगे बढ़ना चाहता हूँ 

पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ 


कुछ ग़ज़ल. कुछ कवितायें रचना चाहता हूँ 

सद्विचारों का एक समंदर , रोशन करना चाहता हूँ 


गिले  - शिकवे छोड़, मुहब्बत से रहना चाहता हूँ 

इंसानियत को अपना ईमान बनाना चाहता हूँ 


पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ 

चीरकर तम को उजाला रोशन करना चाहता हूँ 


बेड़ियों को तोड़ आगे बढ़ना चाहता हूँ 

कुरीतियों का महल ढहाना चाहता हूँ 


मैं एक रोशन सवेरा चाहता हूँ 

पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ 


हर एक शख्स को मैं अपना बनाना चाहता हूँ 

रिश्तों का एक कारवाँ सजाना चाहता हूँ 


गीत मैं इंसानियत के गुनगुनाना चाहता हूँ 

खुशियों का एक समंदर सजाना चाहता हूँ 


पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ 

मैं खुद को दुनिया से मिलाना चाहता हूँ 


अपना खुद का नया जहां बसाना चाहता हूँ 

मैं शिक्षा को संस्कृति बनाना चाहता हूँ 


मैं पीर दिलों की मिटाना चाहता हूँ 

मुहब्बत का एक कारवाँ सजाना चाहता हूँ 


क्यूं कर भूख से बिलख कर दम तोड़ दे बचपन 

मैं हर एक शख्स में , इंसानियत का ज़ज्बा जगाना चाहता हूँ 


पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ 

गीत बनकर मैं संवरना चाहता हूँ 


कोशिशों को अपनी धरोहर करना चाहता हूँ 

कीर्ति के नए आयाम रचना चाहता हूँ 

Monday 30 August 2021

यादों का सफ़र खुशनुमा हो, कुछ ऐसा कर जाएँ

 यादों का सफ़र खुशनुमा हो, कुछ ऐसा कर जाएँ

यादों का सफ़र खुशनुमा हो, कुछ ऐसा कर जाएँ
किसी का भी दिल न टूटे , कुछ ऐसा कर जाएँ

बदनुमा यादों को भुला सकें , कुछ ऐसा कर जाएँ
सबके दिलों में राज कर सकें, कुछ ऐसा कर जाएँ

बिखर न जाएँ आस के मोती, कुछ ऐसा कर जाएँ
रोशन हो इंसानियत का ज़ज्बा , कुछ ऐसा कर जाएँ

टूटें न रिश्तों की माला के मोती , कुछ ऐसा कर जाएँ
रोशन हो रिश्तों का कारवाँ , कुछ ऐसा कर जाएँ

सबके चहरों पर नूर आ जाए, कुछ ऐसा कर जाएँ
संस्कृति और संस्कारों से पोषित हो समाज , कुछ ऐसा कर जाएँ

चमक उठें दरबार सभी देवालयों के , कुछ ऐसा कर जाएँ
रोशन हो जाएँ चर्च, गुरद्वारे और मस्ज़िद , कुछ ऐसा कर जाएँ

नसीब हो नवोदित रचनाकारों को खुला आसमां , कुछ ऐसा कर जाएँ
राजभाषा हिंदी को विश्व मंच पर आसीन करें, कुछ ऐसा कर जाएँ

यादों का सफ़र खुशनुमा हो, कुछ ऐसा कर जाएँ
किसी का भी दिल न टूटे , कुछ ऐसा कर जाएँ

बदनुमा यादों को भुला सकें , कुछ ऐसा कर जाएँ
सबके दिलों में राज कर सकें, कुछ ऐसा कर जाएँ

मेरी कान्हा मेरी सरकार हो तुम

 मेरी कान्हा मेरी सरकार हो तुम 


मेरे दिल में बसते हो मेरे प्रभु तुम 

मेरी कान्हा मेरी सरकार हो तुम 


दिशा ज्ञान दे रहे हो मुझको मेरे प्रभु 

मेरे जीवन का प्रभु , विस्तार हो तुम 


सत्कर्म की राह पर ले चलो मेरे  प्रभु 

मेरे हर एक कर्म में प्रभु , साझेदार हो तुम 


विचारों को मेरे पावन कर रहे हो प्रभु 

मेरे भाग्य का प्रभु , विस्तार हो तुम 


मेरी कलम को सहारा दिया तुमने प्रभु 

रोशन मेरी राहों का , आधार हो तुम 


भक्ति की राह पर ले चलिए प्रभु मेरे 

मेरी श्रद्धा और मेरा विश्वास हो तुम 


मुसीबतों के दौर में तुम साथ थे मेरे 

बीच मझधार में प्रभु , पतवार हो तुम 


मार्ग मोक्ष का दिखा दिया तुमने प्रभु 

मेरे सबसे अच्छे , खेवनहार हो तुम 


मेरे दिल में बसते हो मेरे प्रभु तुम 

मेरी कान्हा मेरी सरकार हो तुम 


दिशा ज्ञान दे रहे हो मुझको मेरे प्रभु 

मेरे जीवन का प्रभु , विस्तार हो तुम 






Sunday 29 August 2021

योग

 

योग

 

योग जीवन की प्राण वायु

योग की हर छटा निराली

योग से हो तन प्रफुल्लित

योग से हो मन प्रफुल्लित

 

योग से हो रोम – रोम पुलकित

योग से हो जीवन अलंकृत

योग करे जहां पर वास

रोग नहीं फटके कोई पास

 

योग से जीवन हो पुलकित

योग कर देता प्रफुल्लित

असीम शांति योग की देन

आध्यात्मिक सुख योग की देन

 

योग ईश्वर से साक्षात्कार कराये

योग जीवन की नैया पार लगाए

योग भौतिक सुख से परे ले जाये

आध्यात्मिकता की ज्योति जगाये

 

योग से योगी बनें हम

परमात्व तत्व की धरोहर बनें हम

योग की पावनता है भाये

जीवन में खुशियाली लाये

 

योग को अपनाना होगा

समाज को स्वस्थ बनाना होगा

घर  - घर अलख जगाना होगा

योग की ज्योति  जलाना होगा

 

योग जीवन की प्राण वायु

योग की हर छटा निराली

योग से हो तन प्रफुल्लित

योग से हो मन प्रफुल्लित

Saturday 28 August 2021

आज मैं देख लूं तुझे , जी भर के जरा – ग़ज़ल

 आज मैं देख लूं तुझे , जी भर के जरा – ग़ज़ल

आज मैं देख लूं तुझे , जी भर के जरा
आज मैं छू लूं तुझे , जी भर के जरा

तेरे पहलू में चंद पल गुजारूं मैं , जी भर के जरा
तुझको अपना बना लूं , जी भर के जरा

मुहब्बत के गीत गा लूं मैं , जी भर के जरा
तेरी आशिक़ी में डूब जाऊँ मैं , जी भर के जरा

बाहों में बाहें सजा लूं , जी भर के जरा
चलो तुमको मना लूं मैं , जी भर के जरा

तेरे नजदीक आ लूं मैं , जी भर के जरा
तुझको मैं तुझसे मिला दूं मैं , जी भर के जरा

तेरा तुझसे परिचय करा दूं , जी भर के जरा
इस खुशनुमा पल को अपना बना लूं मैं , जी भर के जरा

तेरी चाहत में खुद को मिटा लूं , जी भर के जरा
जी भर के जरा नज़रों से नज़रें मिला लूं मैं , जी भर के जरा

इश्क़ की महफ़िल सजा लूं , जी भर के जरा
तेरी आशिक़ी में सब कुछ भुला दूं , जी भर के जरा

आज मैं देख लूं तुझे , जी भर के जरा
आज मैं छू लूं तुझे , जी भर के जरा

तेरे पहलू में चंद पल गुजारूं मैं , जी भर के जरा
तुझको अपना बना लूं , जी भर के जरा

वक्त नाजुक है ( कोरोना काल पर रचना )

 वक्त नाजुक है ( कोरोना काल पर रचना )

वक्त नाजुक है , जरा संभलकर रहिये
कोरोना की भीषण त्रासदी है, जरा बचकर रहिये |

कैद कर लोगे जो खुद को, खुद के ही आशियाँ में
जीत जाओगे जंग जिन्दगी की, होशियारी से रहिये |

कुछ पल की दूरियां, जिन्दगी से नजदीकियाँ बढ़ा देंगी
कोरोना की भयावह चाल है, संभलकर रहिये |

खुद की परवाह करें, और अपनों की भी
चंद रोज साथ गुजारकर . खुश रहिये |

बेवक्त बेवजह घर से , बाहर न निकलें
जब भी मजबूरी हो , सेनीटाईजर , मास्क के साथ चलिए |

इस धरा ने इससे भी भयावह, देखे हैं तूफां
खुदा ने दिया है तुझे वक्त इबादत का, कुछ वक्त उस खुदा की इबादत में गुजारकर चलिए |

वक्त नाजुक है , जरा संभलकर रहिये
कोरोना की भीषण त्रासदी है, जरा बचकर रहिये |

कैद कर लोगे जो खुद को, खुद के ही आशियाँ में
जीत जाओगे जंग जिन्दगी की, होशियारी से रहिये ||

Wednesday 18 August 2021

 तरक्की का कैसा ये मंज़र सजा है

 

तरक्की का कैसा ये , मंज़र सजा है

संस्कारों से मानव , हुआ जुदा है

 

भाग - दौड़ की संस्कृति , हुई विकसित

अपना ही अपनों से हुआ जुदा है

 

अहम् की कैसी ये , बिछी है बिसात

मानव का मानव पर से , भरोसा उठा है

 

चीरहरण ने पार करी , हदें सारी

अपना ही अपनों को ,  नोचने में भिड़ा है

 

ऊंची  - ऊंची बिल्डिंगों से , सजते शहर हैं

दिल आदमी का , संकुचित हुआ है

 

कूड़े के ढेर पर , नन्हा तन देखो

कुँवारी माओं का दिल , पत्थर हुआ है

 

 

एक  - दूसरे को गिराने का , चलन कैसा

आदमी ही आदमी का , दुश्मन हुआ है

 

धर्म पर लहराता , राजनीति का परचम

आज धर्म राजनीति का , मोहरा हुआ है

 

तरक्की का कैसा ये , मंज़र सजा है

संस्कारों से मानव , हुआ जुदा है

 

भाग - दौड़ की संस्कृति , हुई विकसित

अपना ही अपनों से हुआ जुदा है

 

 

Thursday 12 August 2021

संस्मरण

 संस्मरण 

 

यहाँ मैं एक बात कहना चाहूंगा कि इस संस्करण  को साझा करने का मेरा यह मतलब कतई नहीं है कि मैं अपनी तारीफ़ में कुछ लिख रहा हूँ अपितु आपको बताना चाहता हूँ कि आपके प्रयास ही आपको महान या सफल व्यक्ति की श्रेणी में ला खड़ा करते हैं | फिर आप चाहे अपनों से छोटी उम्र के बच्चों से सीखें या फिर और किसी माध्यम से | तो आइये शुरू करता हूँ यह विशेष संस्मरण जो आपको अवश्य ही प्रेरित करेगा ऐसा मेरा विश्वास है |

                           वर्ष 2000 की बात है मेरे विद्यालय के प्राचार्य श्री जे एस मेहता हाथ में कुछ खाली सफ़ेद पेपर लिए विद्यालय के शिक्षकों के  पास जा रहे थे और उन्हें  एक सफ़ेद खाली पेपर देकर उसमे कुछ लिखकर लाने को कह रहे थे | मैंने भी उत्सुकतावश उनसे पूछ ही लिया कि सर जी आप ये क्या कर रहे हैं तब उन्होंने जवाब दिया कि गुप्ता जी ये आपके मतलब का विषय नहीं है केवल शिक्षकों से सम्बंधित है | इसलिए आप रहने दीजिये जानकार क्या करेंगे | फिर भी मैंने उन्हें पूछे बिना नहीं छोड़ा और एक खाली पपेर मैंने भी प्राप्त कर ही लिया |

                                        उस पर क्या लिखना था यह मैं आपके साथ अभी साझा नहीं करूँगा |  तो हुआ यूँ कि  उन्होंने जो लिखने को कहा था वह मैंने अपने स्कूल के बच्चों , पत्रिकाओं, पुस्तकों, सन्दर्भ पुस्तकों की मदद  से पूरा किया और धीरे से जाकर प्राचार्य महोदय के टेबल पर रखी  एक फाइल में जाकर रख दिया |

                 प्राचार्य जी के अंतिम कार्यदिवस का दिन था आज उन्हें कार्यमुक्त होना था | कार्यक्रम के अंत में प्राचार्य महोदय ने अपने सम्भाषण को एक बात साझा करके सभी को अचम्भे में डाल दिया | उन्होंने कहा कि सबसे पहले तो आप सभी श्री अनिल कुमार गुप्ता जी जो कि हमारे विद्यालय के पुस्तकालय अध्यक्ष हैं इनके लिये तालियाँ बजाएं | सभी ने तालिया बजायीं | पर सभी इस बात के लिए उत्सुक थे कि आखिर ऐसी क्या बात है जो तालियाँ बजवाई गयीं |

                      प्राचार्य महोदय ने कहा कि मैंने पहली बार किसी गैर शिक्षक के द्वारा उत्तम प्रयास सफलतापूर्वक करते देखा है | आप सभी को याद होगा मैंने आप सभी शिक्षकों को करीब तीन माह पूर्व एक शिक्षकीय कार्य सौंपा था जिसमे आप सभी को “ प्रश्नों के प्रकार    पर अपने  - अपने विचार रखने को कहा था | आप में से बहुत से शिक्षक डी एड , बी एड , एम फिल, मास्टर डिग्री , एम एड एवं पी एच डी आदि भी हैं किन्तु श्री गुप्ता जी के प्रयास के सामने आपका प्रयास फीका लगा मुझे | श्री अनिल  कुमार गुप्ता जी ने मुझे प्रश्नों के 14 प्रकार लिखकर दिए थे जबकि आप में ज्यादातर शिक्षकों ने पाच – छः प्रकार के प्रश्नों के प्रकार लिखकर दिए थे | मैंने श्री अनिल कुमार गुप्ता जी द्वारा लिखकर दिए गए प्रश्नों के प्रकार पर राजीव गाँधी शिक्षा मिशन के अंतर्गत सम्भाषण दिया जिसे सभी ने बहुत पसंद किया | एक बात आप सभी याद रखें कि आपके प्रयास 100% क्षमता के साथ किये जाएँ तभी आप सफल हो सकते हैं |

               मैं आपको इस संस्मरण के माध्यम से यह बताना चाहता हूँ कि आप किसी भी पद पर हों आप शिक्षकीय या गैर शिक्षकीय सभी प्रकार के कार्य सम्पन्न कर सकते हैं | जरूरत है तो केवल कार्य को सम्पन्न करने की इच्छा शक्ति और उपयुक्त माध्यम से कार्य करने की क्षमता की | श्री जे एस मेहता जी ने अपने छः माह के कार्यकाल में जिला स्तर पर सर्वश्रेष्ठ प्राचार्य का सम्मान प्राप्त किया | उन्होंने विद्यालय में पानी, शौच , सफाई एवं कंप्यूटर शिक्षा आदि पर भी बहुत कार्य किया |

                           

                     

                                    

                  

संस्मरण

संस्मरण 

 बात वर्ष 2000 के आसपास की है | मेरे विद्यालय में श्री जे एस मेहता जी ने प्राचार्य के रूप में पदभार ग्रहण किया | उन्होंने आते ही मुझमे पता नहीं क्या देखा कि मुझे अपने कार्यालय बुलाकर कहा कि आप कल से सुबह की प्रार्थना में दिन भर के कार्यकलापों की जानकारी दिया करेंगे | इससे पहले मैंने कभी माइक पर किसी प्रकार का कोई अनाउंसमेंट नहीं किया था सो मैंने उन्हें इस कार्य से मुक्त करने की बात कही | पर उन्होंने मुझे प्रेरित किया कि मैं यह कार्य पूरी सफ़लता के साथ कर सकता हूँ | उनके प्रेरणादायक शब्दों ने मुझे प्रेरित किया | उस दिन से लेकर आज तक मैंने विद्यालय स्तर के निरीक्षण कार्यक्रमों के संचालन से लेकर वार्षिकोत्सव एवं क्षेत्रीय स्तर के विभिन्न स्काउट एवं गाइड कार्यक्रमों का सफलतापूर्वक संचालन किया | साथ ही मैंने बच्चों को भी इस कला में पारंगत करने का भरपूर प्रयास किया | बहुत से बच्चे आज इस क्षेत्र में नाम कम चुके हैं | मंच संचालन के साथ - साथ मंच पर कविता वाचन भी कर चुका हूँ मैं आज भी श्री मेहता जा का आभारी हूँ जिन्होंने मुझमे इस कला का विकास किया | उनको कोटि - कोटि वंदन |