Wednesday 17 February 2021

कोई डॉक्टर कहता है , कोई भगवान कहता है

 

कोई डॉक्टर कहता है , कोई भगवान कहता है

 

कोई उसे डॉक्टर कहता है

 कोई भगवान कहता है

जब वह किडनी बेचता है

 तो वह शैतान लगता है

 

जमाने ने जिसे माना खुदा

 उसे सब डॉक्टर कहते हैं

जब वह बच्चे बेचता है

 तो वह शैतान लगता है

 

लाशों के कफ़न पर

 जब वह लोगों को लूटता है

तब वह शैतान लगता है

 तब वह शैतान लगता है

 

उसे भगवान् किसने बनाया

 उसे सोचना होगा

अपने हर एक कर्म को

इंसानियत के तराजू में तौलना होगा

 

डॉक्टर के भगवान् होने की भावना को

 चरितार्थ करना होगा

स्वयं को समर्पित करना होगा

 स्वयं को समर्पित करना होगा

 

उस दूसरे भगवान् पर

उसे विश्वास करना होगा

कोई उसे डॉक्टर कहता है

कोई भगवान् कहता है

क्षणिकाएं

 

हमारे ही टैक्स के दम पर

 

1.   

हमारे ही टैक्स के दम पर

ऐश फार्म रहे हैं

कुछ कह दो जरा तो

आँखें दिखा रहे हैं  

 

बहुमंजिला इमारत में बैठे लोग

बी पी एल का मजा उठा रहे हैं

झोपड़पट्टी में रहने वाले

बेबसी में आंसू बहा रहे हैं

 

2.   

चंद सिक्के उछालकर

खुद को खुदा समझ रहे हैं वो

ये जाने नहीं

जनता के टैक्स पर ही पल रहे हैं वो

3.

लोगों की पेंशन (एन पी एस लागू कर दिया )को बेवजह हजम कर रहे हैं

खुद को पेंशन्स (Pensions) से लवरेज कर रहे हैं

मेरी कलम से पूछो

 

मेरी कलम से पूछो

 

मेरी कलम से पूछो

कितने दर्द समाये हुए है

 

मेरी कलम से पूछो

आंसुओं में नहाये हुए है

 

जब भी दर्द का समंदर देखती है

रो पड़ती है

 

सिसकती साँसों से होता है जब इसका परिचय

सिसक उठती है

 

ऋषिगंगा की बाढ़ की लहरों में तड़पती जिंदगियां देख

रुदन से भर उठती है

 

मेरी कलम से पूछो

कितनी अकाल मृत्युओं का दर्द समाये हुए है

 

वो कली से फूल में बदल भी न पाई थी

 रौंद दी गयी

 

मेरी कलम से पूछो

उसकी चीखों के समंदर में डूबी हुई है

 

बहुत भटक लिया हूँ मैं

 

बहुत भटक लिया हूँ मैं 

 

बहुत भटक लिया हूँ मैं

बहुत बहक लिया हूँ मैं

बहुत कर ली है मस्ती

बहुत चहक लिया हूँ मैं

 

बहुत कर ली शरारतें मैंने

बहुत बिगड़ लिया हूँ मैं  

अब मुझे विश्राम चाहिए

कुछ देर आराम चाहिए

 

इस उलझनों से

इन बेपरवाह नादानियों से

एक दिशा देनी होगी

अपने जीवन को

 

कहीं तो देना होगा

ठहराव इस जिन्दगी को

कब तक यूं ही भटकता रहूँगा

कब तक यूं ही बहकता रहूँगा

 

सोचता हूँ

चंद कदम बढ़ चलूँ

आध्यात्म की राह पर

मोक्ष की आस में नहीं

 

एक सार्थक

एक अर्थपूर्ण

जीवन की ओर

जहां मैं और केवल वो

 

जो है सर्वशक्तिमान

शायद मुझे

अपनी पनाह में ले ले

तो चलता हूँ उस दिशा की ओर

 

और आप .........................

 

Tuesday 16 February 2021

हर एक साँस है डरी - डरी

 

हर एक साँस है डरी  - डरी

 

हर एक सांस है डरी  - डरी

हर एक चेहरा है बुझा – बुझा

सिसक रही है आत्मा

रूठा हुआ है परमात्मा

 

कभी तूफ़ान का है सामना

कभी डरा रहा है कोरोना

भूकंप से रिश्ता हुआ पक्का

बाढ़ से भी हो रहा है सामना

 

कैंसर हो गया कॉमन

हार्ट अटैक भी डरा रहा

जीने का सिला न रहा

हर शख्स भागता दिख रहा

 

इंसानियत है दम तोड़ती

कोई किसी का न रहा

हर एक सांस है डरी  - डरी

हर एक चेहरा है बुझा – बुझा

 

 

जिन्दगी का राग

 

जिन्दगी का राग

 

आठ साल की बच्ची

अपनी गोदी में

एक साल के बच्चे को उठाये

 

बारिश में भीगती

रेड लाइट चौक पर

हाथ पसारे

 

बेबस निगाहों से दौड़ती

पीछा करती कारों का

 

कोई पुचकारता

तो कोई दुत्कार देता

 

कोई दस के नोट से तो कोई सिक्के

से ही काम चला लेता

 

भाई को दूध जो पिलाना है

बिस्तर पर पड़ी माँ के लिए

दवाई भी तो लाना है

 

शराबी पिता का

नहीं ठिकाना है

 

टप  - टप करती झोपडी में

खुद को और ....... को भी बचाना है

 

यही जिन्दगी का राग है

नहीं कोई आसपास है

 

फिर वही सुबह

फिर वही राग

फिर वही रेड लाइट चौक

फिर वही पुचकार, दुत्कार और दुलार ...........

तेरे आने की आहट

 

तेरे आने की आहट

 

यूं ही नहीं

गुजार दी बरसों रातें मैंने

अकेले – अकेले

तेरी यादों का समंदर

वो तेरी भीनी  - भीनी खुशबू

जिन्हें मैंने कर लिया था

अपनी अमानत

अचानक ही बिस्तर से

उठ भाग उठता हूँ

कहीं

तेरे आने की आहट .................

मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

 

मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

 

मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

मैं एक अदद इंसान हूँ

दुआओं का समन्दर रोशन करता है जो

 मैं वो एक अदद इंसान हूँ

 

मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

सिसकती साँसों के साथ जी रहे हैं जो

उनके लिए इंसानियत का वरदान हूँ

मैं वो एक अदद इंसान हूँ

 

मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

रोशन न हो सका जिसकी कोशिशों का आसमां

उनके लिए उम्मीद और आशा का आसमान हूँ

मैं वो एक अदद इंसान हूँ

 

मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

भाई को भाई से जुदा करते हैं जो

उनके रिश्तों में मिठास भरने का एक पैगाम हूँ

मैं वो एक अदद इंसान हूँ

 

 

मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

चिंता की लकीरों को मिटाने का जज़्बा लिए जी रहा हूँ

चेहरों पर आशाओं की एक मुस्कान हूँ

मैं वो एक अदद इंसान हूँ

 

मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

क्यूं कर दफ़न हो जाए मेरे सपने

कोशिशों का एक समंदर हूँ ,तूफां में पतवार हूँ

मैं वो एक अदद इंसान हूँ

 

मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

क्यूं कर डूब जाए मेरी कश्ती बीच मझधार

दौरे  - तूफां में भी , मैं मंजिल हूँ किनारा हूँ

मैं वो एक अदद इंसान हूँ