Friday 4 October 2019

मैं आम आदमी हूँ


मैं आम आदमी हूँ


मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

फूलों के साथ काँटों का एहसास भी
सहन कर जाता हूँ
कुछ गम पी जाता हूँ
कुछ गम सी जाता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

सड़क पर पड़े हुए पत्थरों को उठाकर
आगे बढ़ जाता हूँ
गिरते हुओं को संभालता हूँ
हर वक़्त मुस्कुराता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

नंगे बदन भीख मांगने वालों को
देखकर सिहर उठता हूँ
कूड़े के ढेर में नवजात को देख
गम से बोझिल हो जाता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

मुरझाये फूलों को देख
जीवन के अंत का एहसास जगा जाता हूँ
एक दिन तो जाना ही है यह सोच
अगले मकसद में बिजी हो जाता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

भागता नहीं हूँ
मुसीबतों के डर से
मुसीबतों के क्षण में भी
जिन्दगी का राग गुनगुनाता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

कोमल पंखुड़ियों को देख
नवजीवन की अनुभूति से रोमांचित हो जाता हूँ
प्रकृति की तरह जीवन के हर रंग में
खुद को डुबो लेता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

कोई जो मुस्कुरा दे तो
उसे अपना बना लेता हूँ
अनजान रिश्तों पर भी
सर्वस्व लुटा देता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

आदमी को आदमी के
करीब लाता हूँ
इस अनजान शहर में मैं
मुहब्बत के गीत गुनगुनाता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

पल  - पल बदलते रिश्तों की दुनिया में
अपनों को खोजता हूँ
रिश्तों की अहमियत से
खुद को सींचता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

अपनी जिन्दगी को
सादगी से पोषित करता हूँ
सादगी के समंदर में
डूब  - डूब जाता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

प्रकृति के आँचल में
स्वयं को सहज पाता हूँ
गीत मैं प्रकृति के
पल  - पल गुनगुनाता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

कल  - कल करती सलिला में
छप  - छप का आनंद उठा लेता हूँ
सलिला के निर्मल जल से
खुद को सराबोर कर लेता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

बचपन की अठखेलियों को
धरोहर बना लेता हूँ
खुद को अपने व्यवहार से
संस्कारों से संवार लेता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

अवसाद के दौर में भी
हौसलों का भाव जगा लेता हूँ
जब भी गिरने लगता हूँ
खुद को संभाल लेता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

अपने सपनों की उड़ान में
कल्पना के पंख लगा लेता हूँ
अपनी मंजिल को अपनी जिन्दगी का
मकसद बना लेता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

दो वक़्त इबादत के
गीत गुनगुना लेता हूँ
उस खुदा की नवाज़िश में
खुद को उसका शागिर्द बना लेता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

इंसानियत की राह को
जिन्दगी का मकसद बना लेता हूँ
सिसकती साँसों को मैं
अपना बना लेता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

ग़मों के समंदर में भी
गीत बन संवारता हूँ
मानवता के गीत रचता हूँ
गरीबों के दिल में बसता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ


मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ

मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी की तरह सोचता हूँ



हिंदी की पावन छाँव


हिंदी की पावन छाँव

हिन्दी की पावन छाँव तले मैं आराम पाता हूँ
हिन्दी में लिखता हूँ , हिन्दी पर इतराता हूँ

हिन्दी को बिछौना बनाकर , खुद को संवार पाता हूँ
हिन्दी के गीत और ग़ज़ल गुनगुनाता हूँ

हिन्दी की पावन छाँव तले मैं सुकूँ पाता हूँ
हिंदी को समर्पित हूँ, हिंदी पर गर्वित हूँ

जीवन के सारे राग , हिंदी में गुनगुनाता हूँ
हिंदी के आँचल तले, खुद को संवार पाता हूँ

अन्य भाषाओं को मैं अपने में समा जाता हूँ
हिंदी की पावनता के मैं गीत गुनगुनाता हूँ

बच्चन को याद करता हूँ , गुप्त को भी याद करता हूँ
महादेवी वर्मा को याद करता हूँ , पन्त को भी गुनगुनाता हूँ

शायरों की महफ़िल में खुद को सबके करीब पाता हूँ
हिंदी की पावनता के मैं गीत गुनगुनाता हूँ

कविता हो, कहानी हो , सभी भाते हैं मुझे
हिंदी के सौंदर्य से मैं अभिभूत हो जाता हूँ


मुमकिन है


मुमकिन है

जिस सुबह का बड़ी बेसब्री से किया मैंने बरसों इंतज़ार
मुमकिन है उस सुबह का आगाज़ होगा एक दिन

मेरी भी जिन्दगी का गुलशन होगा गुलज़ार
मुमकिन है मेरे भी ख़्वाब होंगे साकार एक दिन

मेरे प्रयासों को भी नसीब होगी वो खुशनुमा सुबह
मुमकिन है मेरी कोशिशें रंग लायेंगी एक दिन

चूम लूंगा अपनी मंजिल अपनी कोशिशों के दम से
मुमकिन है मेरी भी खुशियों का सूरज रोशन होगा एक दिन

जीत जाऊंगा जंग जिन्दगी की खुद पर भरोसा कर
मुमकिन है रोशन जिन्दगी का सफ़र होगा एक दिन

कुछ गीत लिख जाऊंगा , लाऊँगा चेहरों पर नूर
मुमकिन है मुस्कराहटों का समंदर रोशन कर जाऊंगा एक दिन

मेरी कलम होगी मेरी मंजिल का हमसफ़र
मुमकिन है खुशनुमा गीतों का उपवन सजा जाऊंगा एक दिन

रंग लाएगी मेरी कोशिशें , होंगी मेरी मंजिल का हमसफ़र
मुमकिन है खुशियों के गीतों का समंदर रोशन कर जाऊंगा एक दिन


मौकापरस्त


 मौकापरस्त

आज के इस मौकापरस्त जमाने में
किसी का अच्छा करे तो क्यूं करे कोई

पुलिस के पचड़े में
बेवजह पड़े तो क्यूं पड़े कोई

अच्छे का सिला हो अच्छा
भला ये क्यूं सोचे कोई

सबकी जिन्दगी का अपना खुदा
क्यूं कर किसी के दर पर नाक़ रगड़े कोई

मुसीबत के वक़्त क्यूं कर
किसी का हमसफ़र बने कोई

अजनबी पर वक़्त – बेवक्त
एतबार क्यूं करे कोई

किसी की राह के काँटों को
अपना क्यूं करे कोई

खोखली होती संवेदनाओं में
अपने को भला क्यूं तलाशे कोई

चीरहरण के इस युग में
मानवता का चोला क्यूं कर ओढ़े कोई

लिव – इन – रिलेशन के जमाने में
सामाजिक रिलेशन क्यूं रखे कोई

आजाद परिंदों की दुनिया में
सामाजिकता में क्यूँ फंसे कोई

अतिमहत्वाकांक्षा के दौर में
रिश्तों की परवाह भला क्यूं करे कोई

आगे बढ़ने की दौड़ में
संस्कारों की परवाह भला क्यूं करे कोई

बेवजह अपनों को अपना
भला क्यूं कहे कोई

गिराकर बढ़ने की चाह दिल में
भला क्यूं न रखे कोई


हर आज़ादी है पहरे में


हर आज़ादी है पहरे में

हर आजादी है पहरे में
हर शख्स जी रहा पहरे में

साँसें घुंटी – घुंटी हुई सी हैं
बेजुबां हो गया हर शख्स पहरे में

अजीब सा डर लिए जी रहा हर एक शख्स
जुबां वाले भी हो गए बेजुबां पहरे में

अजब आतंक का खौफ है ये
घुटी  - घुटी सी सांस पहरे में

सुन्दरता हो रही अभिशाप
हर वक़्त चीरहरण का खौफ पहरे में

तिराहों चौराहों पर आवारा फिरते गोवंश
गोवंश के नाम पर बलि चढ़ रहा मानव पहरे में

आज रक्षक ही हो रहे भक्षक
अपराध पल रहे पहरे में

माँ- बाप को भी बच्चा चोरी की नज़र से देखते हैं लोग
मॉब लिंचिंग का शिकार हो रहे रिश्ते पहरे में

सेंसर बोर्ड पर नहीं पड़ रही , बुद्धिजीवी समाज किसी की नज़र
समाज के हर पहलू में अश्लीलता, पैर पसार रही पहरे में