Sunday 30 May 2021

नारी हूँ मैं , देह नहीं हूँ

 नारी हूँ मैं , देह नहीं हूँ 


नारी हूँ मैं , देह नहीं हूँ आनंदमयी चेतना हूँ 

मैं मात्र शरीर नहीं हूँ, मोक्ष का आधार हूँ 


मैं करुणा और प्रेम का समंदर हूँ 

मैं संस्कृति और संस्कारों का विस्तार हूँ 


 मुझसे ही रोशन होता है मुहब्बत का समंदर 

मैं ही वात्सल्य और प्रेम का विस्तार हूँ 


मेरे वजूद से ही , इस दुनिया का वजूद है 

मैं ही नवजीवन की ओर अग्रसर करती हूँ 


मैं ही जीवन हूँ , जीवन का आधार हूँ 

मैं जब अलंकृत होती, तब समाज का विस्तार हूँ 


मुझसे ही प्रेम का आगाज है , जीवन का विस्तार है 

समंदर की लहरों में , हौसलों की पतवार हूँ 


बचपन को पोषित करती है जो, मैं वह करुणामयी अवतार हूँ 

पापियों का जो संहार करे , मैं वो काली का अवतार हूँ 


नारी हूँ मैं , देह नहीं हूँ,  मैं जगत अस्तित्व का आधार हूँ 

मुझसे पोषित होता है धर्म, मैं धर्म का विस्तार हूँ 


नारी हूँ मैं , देह नहीं हूँ आनंदमयी चेतना हूँ 

मैं मात्र शरीर नहीं हूँ, मोक्ष का आधार हूँ 


मैं करुणा और प्रेम का समंदर हूँ 

मैं संस्कृति और संस्कारों का विस्तार हूँ 

Saturday 29 May 2021

मुक्तक

१.


जब तुम्हारा  अन्धकार, भक्ति रुपी मार्ग से मिटने लगे

जब तुम स्वयं को प्रभु का सेवक समझने लगो

जब तुम असीम शांति का अनुभव करने लगो

समझना तुम पर देवों की असीम अनुकम्पा है

२.

जब देवालय तुम्हारी लालसाओं पर विराम लगाने लगें

जब देवालय तुम्हारे मन में भक्ति भाव जगाने लगें

जब देवालय तुम्हें मोक्ष मार्ग बतलाने लगें

तुम यह मानकर चलना तुम्हारी भक्ति उस परमेश्वर को
स्वीकार्य है

3.

जब देवालय तुम्हारे प्रयोजन सिद्ध करने लगें 

जब तुम पर देव पुष्प बरसाने लगें

जब तुम पर से ग्रहण रुपी बादल छंटने लगें 

तुम महसूस करना तुम उस परमेश्वर के प्रिय हो
गए हो

4.

निर्मल जो तेरे भाव हो जाएँ

आसक्ति जो प्रभु में तेरी हो जाए

प्रकृति का हर कण जब तुझे भाने लगे

ये समझो तुम्हारे मन में प्रभु का वास है

5.

जब मन से कुटिल भावों का अंत होने लगे

जब सुविचारों की निर्धनता समाप्त होने लगे

जब ग्रीष्म में भी तुम्हें शीतलता महसूस होने लगे

तुम महसूस करोगे हृदय की पावनता को




६.

जब तेरे कष्ट समाप्त होने लगें

जब तू स्वयं को दूरद्रष्टा  महसूस करने लगे

जब तू अपनी तकदीर पर नाज़ करने लगे

तुम ये मान लेना तुम उस परमेश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति हो


मुक्तक

 

१.

खामोश जुबां की अपनी जुबान होती है

बिना कहे भी बहुत कुछ कह जाती है


२.

वो महसूस तो करते होंगे, मेरे दर्द -
दिल की आवाज़

यूं ही नहीं कोई , किसी से ख़्वाबों में
रूबरू होता

3.


उसके दिल की धड़कन को मैं आज भी
करता हूँ महसूस

उसे दिल की गहराइयों से चाहा था
मैंने एक रोज


4.



किसी के दर्द को अपना बना लूं तो
अच्छा हो

किसी रोते हुए को दो पल के लिये
हँसा लूं तो अच्छा हो

Thursday 27 May 2021

छोटी - छोटी खुशियाँ , छोटे - छोटे गम - गीत

 छोटी - छोटी खुशियाँ , छोटे - छोटे गम - गीत  


छोटी - छोटी खुशियाँ , छोटे - छोटे गम 

जी लेंगे  हम , सह लेंगे  हम 


छोटी - छोटी खुशियाँ , छोटे - छोटे गम 


बांटेंगे खुशियाँ , चुरा लेंगे गम 

छोटी - छोटी खुशियाँ , छोटे - छोटे गम 


छोटी - छोटी खुशियाँ , छोटे - छोटे गम 


रिश्तों का एक कारवाँ , सजा लेंगे हम 

छोटी - छोटी खुशियाँ , छोटे - छोटे गम 


छोटी - छोटी खुशियाँ , छोटे - छोटे गम 


तेरे हो लेंगे खुदा, अपना बना लेंगे हम 

छोटी - छोटी खुशियाँ , छोटे - छोटे गम 


छोटी - छोटी खुशियाँ , छोटे - छोटे गम 


जिन्दगी छोटी ही सही , तुझ पर लुटा देंगे हम 

छोटी - छोटी खुशियाँ , छोटे - छोटे गम 


छोटी - छोटी खुशियाँ , छोटे - छोटे गम 

छोटी - छोटी खुशियाँ , छोटे - छोटे गम  


मौसम ने ली अँगड़ाई है

 मौसम ने ली अँगड़ाई है

मौसम ने ली अँगड़ाई है
घनघोर घटा छाई है

मौसम सुहाना हो गया
ये दिल दीवाना हो गया

बारिश की झमाझम बूंदों से
प्रेम का पंछी मतवाला हो गया

कि मैं भीगा कि वो भीगे
ये समां सुहाना हो गया

ठंडी – ठंडी बयार ने
मुझको दीवाना कर दिया

वो कुछ सकुचाये , कुछ मुस्काये
बारिश ने उनको भी दीवाना कर दिया

प्रकृति की हर छटा खिल उठी
पंछियों का सफ़र सुहाना हो गया

बादलों का गड़गड़ – गड़गड़ करना
प्रेम का फ़साना हो गया

प्रकृति का रोम – रोम भीगा
बारिश का बहाना हो गया

नई – नई कोपलों से
अद्भुत नजारा हो गया

मैं भी भीगूँ तुम भी भीगो
मौसम सुहाना हो गया

बारिश की बूंदों से
कण – कण मतवाला हो गया

पीर दिल की मिट गयी
हर कोई दीवाना हो गया

पिछली बारिश याद आई
दिल मस्ताना हो गया

प्रकृति का रोम – रोम
बारिश से खिल उठा

बादलों की ख़ुशी का ठिकाना न रहा
बारिशो के गीतों का मौसम सुहाना हो गया

मौसम ने ली अँगड़ाई है
घनघोर घटा छाई है

मौसम सुहाना हो गया
ये दिल दीवाना हो गया


अंदाज़े - शायरी

 १.


मैं अक्सर उसकी गली के चक्कर लगाया करता हुँ

खुली जुल्फों के साथ उसे खिड़की के करीब पाया

करता हूँ

जब दीदार नहीं होता है, मैं उदास हो जाया करता हूँ

ये मेरा जुनून-ए--आशिकी है, मैं उसकी गली के

चक्कर लगाया करता हूँ


२.

इकबाल मेरा भी बुलंद हो आहिस्ता--आहिस्ता

इंतज़ार मेरा भी ख़त्म हो आहिस्ता--आहिस्ता

उन्हें भी मुझे इश्क हो जाए आहिस्ता- आहिस्ता

जिन्दगी में मेरी भी बहार आ जाए आहिस्ता-- आहिस्ता

Monday 24 May 2021

मुक्तक


 शायरी का एक खुशनुमा दौर हुआ था रोशन , हिन्दुस्तान में 

" ग़ालिब " शायरों की महफ़िल में गुलाब बन महका 


लैला - मजनू , हीर - रांझा , सोहनी - महिवाल थे मुहब्बत के निशाँ 

" ग़ालिब "मुहब्बत के चाहने वालों की महफ़िल में गुलाब बन महका 



जय गोविंदा जय गोपाला - भजन

 जय गोविंदा जय गोपाला 


जय गोविंदा जय गोपाला 

कृष्ण मुरारी बांसुरी वाला 


कृपा करो हे कृपा करो हे 

कृपा करो हे दीनदयाला 


हे गिरधर हे वंशीधर 

हे दीनों  के पालनहारा 


पीर हरो प्रभु, पीर हरो प्रभु 

कष्ट हरो प्रभु दीनदयाला 


तुझ पर हम बलि - बलि जाएँ 

पावन कर दो जग उजियारा 


चिंतन द्वार करो प्रभु रोशन 

आध्यात्म से हो जीवन में उजाला 


प्रेममय मूर्ति हो जाए जीवन 

राधा संग कान्हा ब्रजवाला 


जीवन मरण प्रभु तेरी धरोहर 

मुक्त करो हे दीनदयाला 





तू जिन्दा है तो , जिन्दगी की जीत में यकीन कर

 तू जिन्दा है तो , जिन्दगी की जीत में यकीन कर 


तू जिन्दा है तो , जिन्दगी की जीत में यकीन कर 

प्रयासों की गंगा बहा दे, मंजिल में यकीन कर 


मिलेगी तुझको भी मंजिल, दो कदम तो चल 

कोशिशों का एक कारवाँ कर रोशन , खुद पर यकीन कर 


उस खुदा की नायाब धरोहर है तू, तुझे हो एहसास 

क्यूं कर बिखर जाएँ ये अनमोल मोती, उस खुदा पर यकीन कर 


चंद उपवन कर रोशन , इस कायनात को सजाने के लिए 

तेरी जिन्दगी इस कायनात की अमानत है , इस पर यकीन कर 

 

जीत लेगा तू हर एक जंग, हौसलों के दम पर 

खुद पर भरोसा है तो कोशिशो  पर यकीन कर 


किसी की स्याह रात में , रौशनी का उजाला करके तो देख 

इंसानियत  की राह , उस खुदा की राह , इस पर यकीन कर 


उस खुदा की राह पर चलने से रोशन होती है सबकी दुनिया 

इबादत का एक कारवाँ हो रोशन , इस पर यकीन पर 


किसी के दिल की पीर को , अपने दिल की पीर समझ 

उस खुदा की शागिर्दगी नसीब होगी तुझे, इस पर यकीन कर 


कोरोना की अजब मार है

 कोरोना की अजब मार है 


कोरोना की अजब मार है 

हर सांस हुई बेजार है 


सूझती नहीं राह किसी को 

कैसी अजब कुदरत की मार है 


बुजुर्ग तो बुजुर्ग 

अब युवाओं पर भी इसकी मार है 


अजब पीड़ा का दौर ये 

लाशों की भरमार है 


दो गज जमीन का अभाव है 

अजब कोरोना की मार है 


तड़पती साँसों का 

समंदर हो गयी ये धरा 


पेड़ों की शाखाएं ढो रहीं 

 जीवित आत्माओं का बोझ 


इन जीवित आत्माओं को अपने 

मोक्ष का इंतज़ार है 


झूठ का पुलिंदा होती राजनीति की भी 

जनता पर अजब मार है 


गली - चौराहों पर तड़पती 

जिंदगियों का अंबार है 


लुटेरों का अजब बोलबाला है 

नकली दवाइयों ने भी छीना जिन्दगी का निवाला है 


नेता करते एक दूसरे पर वार 

जनता की जिन्दगी के साथ ये कैसा छलावा है 


कोरोना की अजब मार है 

हर सांस हुई बेजार है 


सूझती नहीं राह किसी को 

कैसी अजब कुदरत की मार है 


निराशा से मुक्ति का मंत्र

 निराशा से मुक्ति का मंत्र 


निराशा से मुक्ति का मंत्र है सृजन 

निराशा से मुक्ति का मंत्र है अर्थपूर्ण व्यस्तता 


निराशा से मुक्ति का मंत्र है स्वयं पर विश्वास 

निराशा से मुक्ति का मंत्र असफल प्रयासों से सीख 


निराशा से मुक्ति का मंत्र है गिरकर फिर उठ खड़े होने की भावना 

निराशा से मुक्ति का मंत्र  है सुनियोजित प्रयास 


निराशा से मुक्ति का मंत्र है आत्म संयम 

निराशा से मुक्ति का मंत्र है मंजिल पर निगाह 


निराशा से मुक्ति का मंत्र है आत्मविश्वास 

निराशा से मुक्ति का मंत्र है सकारात्मक सोच 


निराशा से मुक्ति का मंत्र है कोशिशों पर  विश्वास 

निराशा से मुक्ति का मंत्र  है जीत और केवल जीत 

 

अपने पंख तलाशो

 अपने पंख तलाशो 


अपने पंख तलाशो और उन्हें अपनी धरोहर कर लो 

अपना आत्मविश्वास ढूंढो और उसे अपनी अमानत कर लो 


जीवन संघर्ष है और संघर्ष ही जीवन 

अपना हौसला तलाशो और उसे अपनी धरोहर कर लो 


तेरी मंजिल ही है तेरे जीवन का अंतिम लक्ष्य 

अपनी कोशिशों के कारवाँ को अपनी अमानत कर लो 


क्यूं कर बिखर जाएँ सपने और सपनों का सच 

खुद को कर बुलंद अपने प्रयासों को अपनी धरोहर कर लो 


Monday 17 May 2021

ये चाँद ये सितारे ये जमीं और ये आसमां - गीत

 ये चाँद ये सितारे ये जमीं और ये आसमां - गीत 


ये चाँद ये सितारे ये जमीं और ये आसमां 

इक तेरे दीदार की आरज़ू हैं लिए 


तू बसता है इस कायनात में , खुशबू की तरह 

तेरी इबादत जिन्दगी का मकसद , तेरे करम की आरज़ू है लिए 


तू बड़ा कारसाज है , तू अजीज है सबको 

जीते हैं सब तेरे इनायते   करम की आरजू हैं लिए 


रोशन हो ये किस्मत , एक करम से तेरे 

खुद को तुझ पर निसार दूं, ये आरजू हैं लिए  


तेरे दर को अपनी अमानत कर लिया मैंने 

तेरे दर का चश्मों  - चराग हो जाऊँ,  ये आरजू है लिए  


तेरी इबादत को अपना मकसदे  - जिन्दगी कर लिया मैंने 

तेरा शागिर्द हो जाऊँ , ये आरजू है  लिए 


एक तेरे करम से उम्मीदों का एक समंदर रोशन किया मैंने 

समेट लूं सारे अरमां सारी  उम्मीदें , ये आरज़ू है लिए 


मेरी कलम को चिंतन मार्ग का एक कारवाँ हुआ रोशन 

मेरे दिल का हर एक कोना हो रोशन , ये आरज़ू है लिए 


किताबें

 किताबें 


मानव मन को आनंद से परिपूर्ण कर देती है किताबें 

चिंतन का एक समंदर रोशन कर देती है किताबें 


कल्पनाओं के सागर में हिलोरें मारने लगता है मन 

खुद से खुद का परिचय करा देती हैं किताबें 


अज्ञान रुपी अन्धकार को चीर , ज्ञान का आसमां रोशन कर देती हैं किताबें 

कभी मित्र हो जातीं किताबें , कभी मार्गदर्शक हो जाती किताबें 


कभी मनोरंजन का माध्यम हो जातीं, कभी चरित्र निर्माण का साधन हो जाती किताबें 

कभी आदर्शों का एक कारवाँ सजा देती किताबें 


कभी समंदर को चीरती लहरों के बीच पतवार हो जाती किताबें 

कभी जिन्दगी का अलंकार , तो कभी संस्कारों का विस्तार हो जाती किताबें 


कभी इंसानियत का परचम लहरातीं, तो कभी संस्कृति का आधार हो जाती किताबें 

कभी धर्म का आधार हो जातीं , तो कभी धर्म का विस्तार हो जाती किताबें 


कभी जीवन के उपवन में पुष्प बन खुशबू  बिखेरती किताबें 

तो कभी इतिहास के दर्शन का आधार हो जाती किताबें 


कभी साधारण मानव को असाधारण मानव के रूप में परिणित कर देती किताबें 

तो कभी जीवन को जीवन होने का बोध कराती किताबें 



Sunday 16 May 2021

इंसानियत हुई तार - तार है

 इंसानियत हुई तार - तार है 


इंसानियत हुई तार - तार है 

मानवता हुई बेजार है 


कोरोना की इस त्रासदी में 

कैसी ये कुदरत की मार है 


ऑक्सीजन का अभाव है 

दवाइयों की भी मारामार है 


अपने - अपनों को लूटते 

मानवता हुई शर्मशार है 


शमशान हो रहे रोशन

आशियानों पर अन्धकार है 


नेता चुनाव में उलझे रहे 

इंसानियत रही बीमार है 


कि ये मरा , कि वो मरा 

देखो सब हैं कैसे मर रहे 


मर रही बेचारी जनता 

नेताओं के आशियाने गुलजार हैं 


सिस्टम विकलांग हो गया 

व्यवस्था चरमरा रही 


एक माँ से उसका दर्द पूछो 

बहन भी हुई बेजार है 


राजनीति अब भी हो रही 

मानवता चीख  - चीख रो रही 


डॉक्टर नर से देव हो गए 

आँखें उनकी भी पथराई हैं 


बाप की अर्थी को बेटा 

चाहकर  भी कंधा न दे रहा 


किसकी अर्थी  जली , किसने जलाया 

यह प्रश्न अब भी बरकरार है 


दुआओं का समंदर हो रहा रोशन 

हर जुबाँ पर यही दुहाई है 


मेरे मालिक बहुत हुआ बस 

तेरी लाज पर बात बन आई है 





" कुछ ले दे के साब " व्यंग्य ( मौलिक लेख )

 

कुछ ले दे के साब

( व्यंग्य )

( इस व्यंग्य का किसी व्यक्ति विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं है अगर ऐसा होता है तो उसे मात्र संयोग समझा जाए )

द्वारा

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

 

“कुछ ले दे के साब “ हमारे देश की यह एक असांस्कृतिक परम्परा अब एक सांस्कृतिक परम्परा के रूप में अपनी जड़ें जमा चुकी है | “कुछ ले दे के साब “ एक नारा नहीं है | यह मुसीबत से बचने का एक नायाब तरीका है जो सदियों से भारत देश की पावन भूमि पर पनपता और पलता रहा है | इस विचार को अब संस्कृति के विस्तार के एक अंग के रूप में देखा जाता है | “कुछ ले दे के साब “ जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में एक मन से और पूर्ण एकता के साथ अपना लिया गया है | यह अब हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में एकमत से अंगीकार कर लिया गया है | एक बात और बता दूं आपको , इसके शिकार होने वालों में गरीब जनता और माध्यम वर्ग के लोग विशेष रूप से शामिल हैं | चूंकि उच्च स्तर के वर्ग के लोगों को राजनीतिक संरक्षण की वजह से बचने का अवसर प्राप्त हो ही जाता है | इसका अर्थ यह नहीं कि उनके राजनीतिक रिश्ते प्रगाढ़ हैं अपितु वे अपने द्वारा पार्टी को दिए गए चंदे को समय – असमय भुनाते रहते हैं | ये रिश्ते  अप्रत्यक्ष रूप से पनपते हैं जो काफी बड़ी – बड़ी डीलों  से गुजरकर पूरा होता है | कहीं पेट्रोल पंप खोलना हो, कोई नया उद्योग लगाना हो , कहीं   मल्टी स्टार होटल बनाना हो , गाड़ी का लाइसेंस बनवाना हो, सरकारी जमीन हथियाना हो, सड़क निर्माण का ठेका लेना हो, एअरपोर्ट ठेके पर  लेना हो  या फिर इसी तरह का कोई और बड़ा काम करवाना हो तो उसके लिए आपको तो पता ही है “ कुछ ले दे के साब “ कहना है और हो गया आपका काम |

                            जीवन के हर कदम पर , हर स्तर पर हम देखते हैं कि “ कुछ ले दे के साब “ यह जुमला या कहें तो डायलाग याद करके ही घर से निकलना होता है | जिन्हें यह डायलाग याद नहीं होता वो बेचारे एक दो बार तो चालान के रास्ते से गुजर लेंगे किन्तु तीसरी बार उन्हें भी यह “ कुछ ले दे के साब “डायलाग याद हो ही जाता है | आपको एक मित्र के जीवन का एक संस्मरण सुना रहा हूँ | हरियाणा से हमारा मित्र कार पर सपरिवार सवार होकर हिमाचल के लिए प्रस्थान करता है | रात के दो बजे हैं सुनसान सड़क पर दूर - दूर तक कोई नहीं | इसी बात का फायदा उठाने की कोशिश में वे एक पीली बत्ती वाले चौक को पार कर आगे बढ़ते हैं | थोड़ी ही दूर पर पेड़ों की झुरमुट से दो वर्दीधारी अचानक से प्रकट होते हैं और पीली बत्ती क्रॉस करने को लेकर चालान काटने का नाटक करते हैं | हमारा मित्र भी कुछ कम समझदार नहीं है | वह स्थिति को भांप लेता है और ज्यादा समय न बर्बाद करते हुए वह सीधी भाषा में कह देता है “ कुछ ले दे के साब “ | बात पांच सौ में पक्की होती है दोस्त जेब में रखे 100 - 100 के चार नोट की पुंगड़ी बनाकर वर्दीधारी को पकड़ा गिनने का मौका भी नहीं देता है और 100 की गति से वहां से निकल लेता है | इसे कहते है समझदारी |

          मुझे अपना भी एक संस्मरण याद आ रहा है | बात यह है कि मैं अपनी धर्मपत्नी से साथ डॉक्टर से मिलकर लौट रहा था रास्ते में मुझे सड़क क्रॉस कर आर टी ओ ऑफिस जाना था | किसी के कहने पर मैंने बीच से एक रास्ते से होकर आर टी ओ ऑफिस तक पहुँचने की सोची | किन्तु कैसे ही मैंने बीच का रास्ता क्रॉस किया एक वर्दीधारी मेरी मोटर साइकिल के सामने प्रकट हो गया और कहने लगा कि जनाब आप गलत रास्ते पर आ गए हैं चालान कटेगा | सो मामला “ कुछ ले दे के साब “ पर आकर टिक गया | बात तीन सौ रुपये पर आकर सिमट गयी और हम अपने गंतव्य की ओर बढ़ चले | इसी तरह आप सभी के जीवन के कुछ न कुछ संस्मरण अवश्य ही होंगे जहां “ कुछ ले दे के साब “ वाली स्थिति पैदा हुई होगी और मामला “ कुछ ले दे के साब “ पर आकर ही सलटा होगा | जब से नया यातायात कानून लागू हुआ है तब से वर्दीधारियों की चाँदी न कहते हुए कहना चाहूंगा कि उनकी तो डायमंड हो गयी है अब 500 से नीचे बात बनती ही नहीं |  हमारे पहचान की एक महिला बता रही थीं कि उनके साथ भी ऐसी ही “ कुछ ले दे के साब “ वाली घटना हुई | मामला तो निपट गया पर उन्होंने उस वर्दीधारी से पूछा भैया आप महीने में कितना निकाल लेते हो | बीस हजार तो हो ही जाता होगा | वर्दीधारी का जवाब उसे भीतर तक हिला गया जब उसने कहा कि आप किस दुनिया में हैं यहाँ तो महीने का टारगेट दो लाख से कम नहीं होता | 

                  अभी पीछे एक घटना ने सबको हिला दिया था जब एक व्यक्ति के संस्कार के समय अचानक पूरी की पूरी छत लोगों के सिर पर गिर गयी और करीब 25 लोगों का वहीँ संस्कार कर दिया गया | जांच हुई तो पता चला कि  “ कुछ ले दे के साब “ के माध्यम से ही छत का निर्माण हुआ था | यह भी सत्य सामने आया कि अधिकारी को 28 प्रतिशत दिया गया था | अब आप ही सोचिये इस देश का क्या होगा जब ...............|

        “ कुछ ले दे के साब “ यह विषय केवल एक या दो विभागों की धरोहर होकर नहीं  रह गया है यह स्लोगन चरितार्थ रूप में आर टी ओ , तहसील, जिला मुख्यालय, मकानों की रजिस्ट्री , प्रॉपर्टी खरीद, शिक्षा, फिल्म जगत या यूं कहें तो  मुझे नहीं लगता ऐसा जीवन का कोई  ऐसा क्षेत्र बचा हो जहां “ कुछ ले दे के साब “ ने घुसपैठ न की हो | हमारे देश में अभी कुछ अतिविचित्र मामले देखने में आये जब एक शिक्षिक ने तीन स्कूल से तनख्वाह निकाली और फुलटूस मस्ती की | फर्जी अंकसूची के जरिये एक व्यक्ति ने 16 साल नौकरी कर ली और लाखों कमा लिए | अब सरकार कैसे उससे लाखों की राशि वसूलेगी यह तो सरकार ही ..........|

                  किसी भी स्तर पर सरकारी कर्मचारी का ट्रान्सफर एक मुख्य साधन है आय को बढ़ाने  का | कर्मचारियों को उनके गृहनगर से दूर कही पोस्टिंग कर दो बाद में वही व्यक्ति अपने गृहनगर के आसपास आने के लिए “ कुछ ले दे के साब “ वाली भाषा में अपना काम निपटाने की कोशिश करेगा | एक सत्य घटना आपसे साझा कर रहा हूँ किसी एक कर्मचारी ने अपने गृहनगर के लिए सरकारी पोर्टल पर एक विशिष्ट व्यक्ति के मान से ग्रिएवांस डाली किन्तु जवाब में उसे उस स्टेशन पर तीन साल के लिए रहने को कहा गया जबकि उसी के साथ का एक कर्मचारी जो तीन महीने पहले ही उस संस्था में ट्रान्सफर पर आया था चौथे महीने ही वह अपने गृहनगर वापस पहुँच जाता है इस घटना को आप कैसे देखते हैं इसे आप खुद ही देख लीजिये |

                  सरकारी विभागों के बाबू इस “ कुछ ले दे के साब “ वाली परम्परा का भरपूर लाभ उठाते हैं | चाय – चढ़ावा के बिना बिल पास होते ही नहीं | हमारे देश में किसी को ड्राइविंग न भी आती हो पर उसके नाम से बिना टेस्ट पास किये भी लाइसेंस बन जाता है | आपकी अपनी फोटो पर दूसरे के नाम से आधार कार्ड भी बन जाता है | आप चाहें तो दूसरे के नाम से लोन भी ले सकते हैं और न चुकाने की स्थिति में विदेश में उस देश में जाकर रह सकते हैं जिनके साथ हमारी प्रत्यर्पण संधि नहीं है | इसके अलावा आप एक प्रयास और भी कर सकते हैं कि आप अपने दिवालियापन का दुखड़ा राजनीतिक अखाड़े में सुनाते रहिये हो सकता है कि आपको भी कोई बड़ा सा पैकेज मिल जाए उसमे से जितना बड़े साहब कहें उतना पीछे के रास्ते से भिजवा दीजिये |

                      “ कुछ ले दे के साब “ आज हमारी संस्कृति का एक अभिन्न अंग बन गया है | नेताओं की गाड़ी भी “ कुछ ले दे के साब “ की पटरी पर से  ही होकर गुजरती है |  एक मुख्य बात जो मैं आपको बताना भूल गया कि हर बार ऐसा नहीं होता | कभी – कभी ईमानदार अधिकारी या वर्दीधारी पल्ले पड़ता है तब स्थिति भयावह हो जाती है  | तब आपका “ कुछ ले दे के साब “ वाला नारा भी काम नहीं आता  | इस स्थिति में अच्छा हो कि आप चालान कटवा लें और वहां से खिसक लें | क्योंकि ऐसे अधिकारी या वर्दीधारी से बहस करना मतलब अपने चालान की राशि को कई गुना कर लेना होता है |

            आज स्थिति यह है कि  एक चाय वाला भी वर्दीधारी को जब बिना पैसे की चाय नहीं पिलाता है तो उसका चाय का टपरा अगले ही दिन उस जगह से नदारत हो जाता है | इसीलिए आप “ कुछ ले दे के साब “ वाले इस स्लोगन को अपने चिंतन द्वार पर स्थापित  किये रहिये और एक खुशहाल जीवन जीने की ओर अग्रसर होते रहिये |

                      मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं .....................|