Thursday, 2 January 2014

क्षणिकायें



क्षणिकायें

मैं आज अपने वर्तमान को
संवारने में लगा हूँ
चूंकि यही वर्तमान
कल आने वाले भविष्य का वर्तमान होगा
β β β β β β β β β β β β β β β β β β β β
पाकीजगी जिन्दगी के
हर लम्हे में , हर आरजू में पैदा कर
कुछ ऐसा कर दुनिया
पाकीजगी का सरोवर हो जाए
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मानता हूँ कारवाँ रुकते नहीं किसी के लिए जमाने में
पर मैं वो हूँ जिसने कारवाँ को दो पल रुक
विश्राम कर आगे बढ़ने और
मंजिल की ओर मुखातिब करने की जुर्रत की है
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
पालता हूँ खुशियों के पल जिगर के साए तले
कहीं कोई मुसाफिर आ जाए
तो दो घड़ी खुशियों की छाँव तले
विश्राम कर सके
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बार में लगने लगे हैं मेले
डिस्को थिरकने लगे हैं
हर जगह हर शहर
जाने कहाँ रुकेगा यह सफ़र
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बारिश की बूंदों से मिलती है राहत तन को , मन को
उसी तरह , जिस तरह
जल की खोज में पक्षी विचरते हैं
दो बूंदों के आचमन के लिए
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मालूम नहीं इस धरा पर
क्या अच्छा किया मैंने
इसी कोशिश में कर्म्पूर्ण जीवन
जिए जा रहा हूँ में
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मानव होकर , जीवों की भांति
इस धरा पर , विचार रहा हूँ
कुछ खोजने की चाह में
है जो एक विषम प्रश्न
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मानव का सम्मान
मान, इस धरा पर
गुम सा हो गया है
मनु , मनुबम खिलौना हो गया है
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खून के रिश्तों में खून दिखता नहीं है
आज सब कुछ फॉर्मल सा हो गया है
विदाई के समय आँखों में अश्रु दिखते नहीं हैं
आज बाय – बाय का चलन हो गया है
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छात्र सड़कों पर
अनुशासित खड़े हैं
छत्राओं के विद्यालयों से बाहर
आने का समय हो गया है
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मैथ की किताब में छुपाकर पढ़ते
फन, गेम की किताबें
पढ़ाई से नाता
दूर – दूर तक खो गया है
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स्वाभिमान की चाह में
जी रहा मानव
अपमान के दलदल में
डूबा जा रहा है
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काम के प्रभाव ने
किया मानसिकता को विकृत
युवा ऊर्जा का
सत्यानाश हो रहा है
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ढूँढ़ते राहें , सफल हों
क्षण भर में
कहीं पर लूट , कहीं खसोट
चहुँ ओर अपराधों का मंज़र हो रहा है


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