Friday, 3 January 2014

रंग


रंग
रंग ढूँढता हूँ मैं
जिंदगी मे सबकी
कुछ है काले
तो कुछ हैं पीले

काला जो चहरे पर हो तो
चरित्र पतन का कारण होता है

जो पीला हो तो
शुभ का प्रतीक होता है
ये पीला रंग
जीवन चरण मे
परिवर्तन का द्धोतक होता है
कहीं नए मेहमान का आगमन
तो कहीं
विवाह का शुभ सन्देश देता है
रंग जो
गुलाबी हो तो
शुभ आचरण व
शुभ लक्षणों से  संपन्न
जीवन का परिचायक
होता है
जब ये रंग
लाल हो जाए
तो
बलिदान या त्याग
बन जाता है
यह रंग देश प्रेम
को दर्शाता है
जब रंग हरा हो तो
चहुँ ओर हरियाली का
समां होता है
जिनका सन्देश हमेशा
भाईचारा होता है
शांतिपूर्ण जीवन
सादा जीवन होता
रंग जो
भगवा हो तो
प्रभु मे रंगे चरित्र का
आभास होता है
इस चरित्र के आसपास
उस परमात्मा का
निवास होता है

रंग जो सफ़ेद हो तो
शोक, गम ,
किसी की कमी का
एहसास होता है

रंगों की अपनी दुनिया है
जैसा रंग वैसा चरित्र

परन्तु
आज के मानव ने
चरित्रों को मिलाकर
मिश्रण बनाकर
अनके रंगों का
निर्माण किया है

यानी रंग एक
चरित्रपूर्ण व्यवहार अनेक

मैं तो एक ही
रंग मे
रंगना चाहता हूँ
“मानवता का रंग “
जिससे सारे रंगों को
एक कर
स्वस्थ समाज का
निर्माण करने की
क्षमता होती है

मैं तो उस रंग मे
रंगना चाहता हूँ
जो दूसरों को हंसा दे
लरजते होठों पर
मुस्कराहट भर दे
भूखों का भोजन
बन जाए
जागतों की
नींद बन जाए

मैं उस रंग मे
रंगना चाहता हूँ
जो चारों ओर
प्रेममय शांति
कर दे
प्रेममय हरियाली कर दे
मानव को मानव बना दे
इस धरा का उद्धार कर दे
इस धरा का उद्धार कर दे
इस धरा का उद्धार कर दे

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