Friday, 3 January 2014

काफिले रुकते नहीं


काफिले रुकते नहीं

काफिले रुकते नहीं
आंधियां चलती रहें
चीरकर तूफ़ान को
काफिले बढते रहे

मंजिलों की चाह मे
आये जो भी राह मे  
पत्थरों की ठोकर से
काफिले रुकते नहीं

पर्वतों की सी ऊँचाई हो
सागर सी गहराई हो
परवाह मौजों की करते नहीं
काफिले रुकते नहीं

आँखों का सपना
जब हो मंजिल
पैर रुकते नहीं
काफिले झुकते नहीं

बिजली की सी गर्जना हो
शेर की सी दहाड़ हो
सागर विकरा हो
काफिले डरते नहीं

काफिले रुकते नहीं 
काफिले रुकते नहीं



2 comments:

  1. Whether people are with us or not the life goes on, we meet people at each and every stage of life and that's really important for us to keep moving rather than sitting back at one place. Never fear Never moan, Just always keep moving on....awesome poem, inspired.

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    1. शुक्रिया शिवानी मेरे बच्चे

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