Monday, 20 January 2014

आज का मानव


आज का मानव
आज का मानव चिंताओं से घिर गया है
आज का मानव समस्याओं से घिर गया है
घर से बाहर निकलना लोगों का दूभर हो गया है
प्रशासन पर से लोगों का भरोसा उठ गया है
कुपरम्पराओं का नया दौर शुरू हो गया है
मानव पर जंगली आत्माओं का साया छाने लगा है
मानव आदमी कम जंगली ज्यादा दिखने लगा है
युवाओं पर आधुनिकता का अंधा प्रभाव पड़ने लगा है
चारों ओर भागदौड़ का तनाशा दिखने लगा है
पुलिस प्रशासन ने अपना भरोसा खो दिया है
चरमराती यातायात व्यवस्था ने अकाल मृत्युओं को जन्म दिया है
गली मोहल्ले आये दिन गोलियां चलने लगी हैं
सामाजिकता के शायद दिन लड़ चुके हैं
वर्चस्व और जीने के बीच प्रतिद्वंदिता बढ़ गयी है
जियो पर दूसरों को मारकर इस विचार ने जन्म लिया है
असुशासन , दया , धार्मिकता  बीती बातें हो चुकी हैं
आज समाज में दुशासन , दुर्योधनों की भीड़ हो गयी है
कहीं भी कभे भी चीरहरण की घटनायें होने लगी हैं
समाज में महिलाओं की स्थिति भयावह हो गयी है
पुरुषों की नज़रों में उसे असुरक्षित किया है
आये दिन फूट रहे मानव बमों ने मानवता को झकझोर दिया है
आज का मानव चिंताओं से घिर गया है
आज का मानव समस्याओं से घिर गया है

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