आज का
मानव
आज का
मानव चिंताओं से घिर गया है
आज का
मानव समस्याओं से घिर गया है
घर से
बाहर निकलना लोगों का दूभर हो गया है
प्रशासन
पर से लोगों का भरोसा उठ गया है
कुपरम्पराओं
का नया दौर शुरू हो गया है
मानव पर जंगली
आत्माओं का साया छाने लगा है
मानव आदमी
कम जंगली ज्यादा दिखने लगा है
युवाओं पर
आधुनिकता का अंधा प्रभाव पड़ने लगा है
चारों ओर
भागदौड़ का तनाशा दिखने लगा है
पुलिस
प्रशासन ने अपना भरोसा खो दिया है
चरमराती
यातायात व्यवस्था ने अकाल मृत्युओं को जन्म दिया है
गली
मोहल्ले आये दिन गोलियां चलने लगी हैं
सामाजिकता
के शायद दिन लड़ चुके हैं
वर्चस्व
और जीने के बीच प्रतिद्वंदिता बढ़ गयी है
जियो पर
दूसरों को मारकर इस विचार ने जन्म लिया है
असुशासन ,
दया , धार्मिकता बीती बातें हो चुकी हैं
आज समाज
में दुशासन , दुर्योधनों की भीड़ हो गयी है
कहीं भी
कभे भी चीरहरण की घटनायें होने लगी हैं
समाज में
महिलाओं की स्थिति भयावह हो गयी है
पुरुषों
की नज़रों में उसे असुरक्षित किया है
आये दिन
फूट रहे मानव बमों ने मानवता को झकझोर दिया है
आज का
मानव चिंताओं से घिर गया है
आज का
मानव समस्याओं से घिर गया है
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