Thursday, 2 January 2014

क्षणिकायें



क्षणिकायें
जी रहा हूँ मैं
वीरानियों में कुछ इस उम्मीद से
बदलेंगे सितारे मेरी किस्मत के
बस अब , अभी अगले ही पल
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जिन्दगी की राह के काँटों ने
मुझे पत्थरों पर चलना सिखा दिया          
इसी उम्मीद से जी रहा हूँ
कभी तो फूलों पर सैर का मौका मिलेगा

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संकल्पों की राह भी
बड़ी बेमानी होती है
अभी किया कि अगले पल छोड़ा
योग का ले आसरा
संकल्प को तू प्राण दे
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माना कि दुःख के राही सब मगर
बाहों का दे सहारा
दूर कर तू पीर सबकी
और अपनी जिन्दगी को राह दे



                       




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