कवि
मैं
कवियों को
खेत
की मेड़ पर
खड़े
वृक्षों की
संज्ञा
देता हूँ
जो
कि
खेत
का हिस्सा नहीं होते
पर किसान
को
थकान
के बाद
विश्राम
के लिए
छाँव
देते हैं
कवि
भी
समाज
मे व्याप्त
कुरीतियों
, कुविचारों एवं
भ्रांतियों
से भटके हुए
लोगों
को बाहर निकालकर
समाज
मे एक अतिविशिष्ट
स्थान
दिलाता है
वह
रोतों को हंसाता है
वह
उन्मुकतों को
बंधन
युक्त कर
सीमाओं
का ज्ञान कराता है
वह
भटके हुओं को
समाज
का
महत्वपूर्ण
हिस्सा बनाता है
ऐसा
पथ – प्रदर्शक
कवि
कहलाता है
कवि
कहलाता है
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