Friday, 3 January 2014

कवि


कवि

मैं कवियों को
खेत की मेड़ पर
खड़े वृक्षों की
संज्ञा देता हूँ
जो कि
खेत का हिस्सा नहीं होते
पर किसान को
थकान के बाद
विश्राम के लिए
छाँव देते हैं

कवि भी
समाज मे व्याप्त
कुरीतियों , कुविचारों एवं
भ्रांतियों से भटके हुए
लोगों को बाहर निकालकर
समाज मे एक अतिविशिष्ट
स्थान दिलाता है
वह रोतों को हंसाता है

वह उन्मुकतों को
बंधन युक्त  कर
सीमाओं का ज्ञान कराता है

वह भटके हुओं को
समाज का
महत्वपूर्ण हिस्सा बनाता है
ऐसा पथ – प्रदर्शक
कवि कहलाता है
कवि कहलाता है

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