Monday 11 February 2019

चित्त को अपने स्थिर रखेगा जो तू



चित्त को अपने स्थिर रखेगा जो तू

चित्त को अपने स्थिर रखेगा जो तू
गागर में सागर हो जायेंगे प्रयास तेरे

मंजिल की दिशा में निगाह रखेगा जो तू
गागर में सागर हो जायेंगे प्रयास तेरे

कीमत समय की समझने लगेगा जो तू
गागर में सागर हो जायेंगे प्रयास तेरे

स्वयं पर विश्वास करने लगेगा जो तू
गागर में सागर हो जायेंगे प्रयास तेरे

स्वयं को आत्मविश्वासी बना लेगा जो तू
गागर में सागर हो जायेंगे प्रयास तेरे

स्वयं की योग्यता पहचान लेगा जो तू
गागर में सागर हो जायेंगे प्रयास तेरे

गीत प्रयासों के गाने लगेगा जो तू
गागर में सागर हो जायेंगे प्रयास तेरे

कोशिशों का समंदर सजाने लगेगा जो तू
गागर में सागर हो जायेंगे प्रयास तेरे

सफलता का श्रेय प्रभु को समर्पित करेगा जो तू
गागर में सागर हो जायेंगे प्रयास तेरे

खुद से जो आँखें मिलाने लगेगा जो तू
गागर में सागर हो जायेंगे प्रयास तेरे

क्यूं कहें किसी को बेगाना


क्यूं कहें किसी को बेगाना

क्यूं कहें किसी को बेगाना , क्यूं न कहें अपना
रिश्तों को बनाए रखने का ,इससे बेहतर ज़रिया क्या

कोई नाराज़ हो जाए ,तो उसे मना लेना
रिश्तों में बेरुखी का ,भला काम क्या

क्यूं न हम किये वादे ,निभाकर देखें
क्यूं न हम रूठे रिश्ते ,मनाकर देखें

क्यूं न हम किसी के ग़मों को ,चुराकर देखें
क्यूं न हम किसी के लबों पर ,मुस्कान लाकर देखें

क्यूं न हम इस कायनात की हर एक चीज से ,मुहब्बत कर देखें
क्यूं न हम इस गुलशन को ,रोशन कर देखें

क्यूं न हम कुछ गीत मुहब्बत के ,लिखकर देखें
क्यूं न हम खुदा की इस दुनिया से ,मुहब्बत कर देखें

क्यूं न हम रिश्तों को ,पाकीज़गी अता कर देखें
क्यूं न हम अपनों को ,अपना कहकर देखें

क्यूं न हम इस कायनात का ,आलिंगन कर देखें
क्यूं न हम इस जहाँ को उपवन सा ,रोशन कर देखें



मुहब्बत के गीत लिखता हूँ


मुहब्बत के गीत लिखता हूँ

मुहब्बत के गीत लिखता हूँ , मुहब्बत मेरी इबादत है
खुदा की इस दुनिया में , मुहब्बत से बेहतर खुदा भी है क्या

हर एक ख्वाहिश को ,उस खुदा की नज़र करता हूँ
मैं मुहब्बत में बिताये हर एक पल को ,उस खुदा की नज़र करता हूँ

जिस पर मेरी नज़र उस पर ,किसी और की नज़र न हो
ये मेरे दिल का डर नहीं ,मुहब्बत की इंतिहा है

मेरे  तन्हाई भरे पलों को ,अपनी आशिक़ी से रोशन कर
ये मेरी आरज़ू है , दिल की गहराई से

मेरी आशिक़ी का हुआ यूं असर, न सुबह न शाम की खबर
हुआ ये कैसा असर , मैं तड़पता इधर तू तड़पती उधर

उसकी शोख अदाओं का हुआ ,ये कैसा असर
न हम अपने घर के ही रहे ,न ही इस दुनिया के

कुछ फूल उसकी नज़र पेश किये ,तो वो ख़ुशी से झूम उठे
ये अंदाज़े - मुहब्बत नहीं है ,तो और क्या है

मुहब्बत में रिश्ता  - ऐ – वफ़ा का ख्याल ,तुम्हें हो न हो
हमें तो हर एक रिश्ते में ,खुदा नज़र आता है


घोर अन्धकार में भटक रही जवानियाँ


घोर अन्धकार में भटक रही जवानियाँ

घोर अन्धकार में भटक रही जवानियाँ
सिसक  - सिसक – सिसक रही क्यूं ये जवानियाँ

आधुनिकता की अंधी दौड़ में गम हुई जवानियाँ
शॉर्टकट की बलिबेदी पर बलि चढ़ रही जवानियाँ

गीत संस्कारों के भाते नहीं इनको
अपनी ही संस्कृति से मोहभंग करती ये जवानियाँ

समय बदल गया या विचार बदलते इनको
आध्यात्मिक विचारों को  मुंह चिढ़ाती ये जवानियाँ

“ माय बॉडी माय रुल “ कैसा ये कुविचार है
परमात्मा के अस्तित्व को झकझोरती जवानियाँ

पाश्चात्य के गीतों पर थिरक रही जवानियाँ
भारतीय संगीत से मुंह चुराती ये जवानियाँ

आधुनिक विचारों की कैसी ये अंधी दौड़ है
स्वयं के अस्तित्व को नकारती जवानियाँ

नवजात कूड़े के ढेर पर कुत्तों का निवाला हो रहे
सामाजिक संस्कारों से दूर भागती जवानियाँ

घोर अन्धकार में भटक रही जवानियाँ
सिसक  - सिसक – सिसक रही क्यूं ये जवानियाँ


विचार जो बदल लोगे , तकदीर बदल जायेगी


विचार जो बदल लोगे , तकदीर बदल जायेगी

विचार जो बदल लोगे तकदीर बदल जायेगी
कर्तव्य पथ पर जो चलोगे मंजिल मिल जायेगी

जीवन संघर्ष के दौर में साहस की मशाल जलाए रखना
तेरी कोशिशों को सागर सी, गहराई मिल जाएगी

मानवीय मूल्यों की जोत , दिल में जलाये रखना
तेरे जीवन में संस्कारों की , पावन गंगा बह आएगी

मुसीबतों के दौर में भी, साहस को न खोना
प्रयासों को पतवार बनाना, मंजिल मिल जायेगी

दूसरों की राह के काँटों को चुगने का ज़ज्बा रखना
तेरे हर एक प्रयास पर उस खुदा की नज़र हो जायेगी

पाक दामन पाक कोशिशों का समंदर सजाये रखना
तेरी हर एक कोशिश को दिशा मिल जायेगी

संस्कृति, संस्कारों को अपनी धरोहर बनाए रखना
तेरे जीवन में खुशियों की बहार आ जायेगी

अपनी नीयत अपनी सोच को पाकीजगी अता किये रखना
तेरे हर एक प्रयास पर खुदा की मेहर हो जायेगी


आदमी को गर इंसान होना नसीब होता


आदमी को गर इंसान होना नसीब होता

आदमी को गर इंसान होना नसीब होता
चाहतों में यूं रिश्तों का खून न होता

आदमी को गर इंसानियत नसीब होती
यों गली  - गली “ निर्भया ” चीरहरण न होता

आदमी को गर पाक  - दामन नसीब होता
यूं धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर दंगा न होता

आदमी को गर मानवता नसीब होती
यूं सड़कों पर इंसानियत तार  - तार न होती

आदमी को गर  “ नारी सर्वत्र पूज्यन्ते “ का भाव समझ आता
कचरों के ढेर पर नवजात यूं कुत्तों का निवाला न होता

आदमी को गर खुदा पर यकीन जो होता
खुदा की इस दुनिया में कोई यतीम न होता

आदमी को गर आदमी पर एतबार होता
आदमी ही आदमी का यूं दुश्मन न होता

आदमी की गर नीयत साफ़ होती
यूं सुनामी, भूकंप, महामारी का अंबार न होता

आदमी को गर इंसान होना नसीब होता
चाहतों में यूं रिश्तों का खून न होता







Wednesday 6 February 2019

मुझे लक्ष्य सिद्ध करना है


मुझे लक्ष्य सिद्ध करना है

मुझे लक्ष्य सिद्ध करना है , कोशिश को पतवार बनाकर
सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ना है , कोशिश को पतवार बनाकर

गिरकर मुझको फिर उठाना है, कोशिश को पतवार बनाकर
सागर लहरों पर चलना है, कोशिश को पतवार बनाकर

जी लूंगा हर एक प्रयास मैं , कोशिश को पतवार बनाकर
कछुआ चल भी जीत मैं लूँगा, कोशिश को पतवार बनाकर

तूफानों से लड़ जाऊंगा , कोशिश को पतवार बनाकर
जीवन रोशन कर जाऊंगा, कोशिश को पतवार बनाकर

छू लूँगा मैं दूर आसमां , कोशिश को पतवार बनाकर
अँधेरे से लड़ लूँगा मैं , कोशिश को पतवार बनाकर

नए आयाम सजा जाऊंगा, कोशिश को पतवार बनाकर
गीत जीत के लिख जाऊंगा , कोशिश को पतवार बनाकर

मंजिल को पाना है मुझको, कोशिश को पतवार बनाकर
सफल मुझे खुद को करना है , कोशिश को पतवार बनाकर

नाव किनारे ले आऊँगा , कोशिश को पतवार बनाकर
जीवन गीत सजा जाऊंगा, कोशिश को पतवार बनाकर











दिल्लगी उनसे करें , खुदा से क्यों न करें - अंदाज़े शायरी


दिल्लगी उनसे करें , खुदा से क्यों न करें

दिल्लगी उनसे करें , खुदा से क्यों न करें
खुदा का हो जो करम, वो भी दिल दे ही बैठेंगे

लोग कहते हैं रिश्तों में नहीं अब वो गर्मी
हम ये मानते हैं रिश्ते अपने या पराये हैं , तो दुनिया है

शराबखाने में ही जाने से क्या गम हो जाते हैं काफूर
यदि ऐसा होता तो दुनिया में मंदिर, मस्जिद नहीं होते

उनकी बेअदबी का सिला , बेअदबी हो ये जरूरी नहीं
कोशिश ये हो उनकी बेअदबी उनका गुरूर न हो

अपने गीतों को गजल सा तराश सकूं , ये सूरत नज़र नहीं आती
अपनी कलम को खुदा की इबादत कर सकूं ,ये सूरत नज़र नहीं आती

खुद को ग़मगीन किये बैठे हैं तेरी आरज़ू में ये ख़याल आया
तुझको करीब पाया तेरी तस्वीर देखकर

परिंदों को आसमां की ऊंचाई तक ,उड़ता देखकर
काश मेरे भी पंख होते , मैं ये सोचने लगा

उनकी खुशनसीबी पर मुझे कोफ़्त न हुई
अपनी बदनसीबी से मुझे था शिकवा




तुम गवाह हो मेरी बेगुनाही का - अंदाज़े शायरी


तुम गवाह हो मेरी बेगुनाही का

तुम गवाह हो मेरी बेगुनाही का , ये तुम्हें है मालूम
तुम्हारे लबों पर सच, आखिर आता नहीं है क्यों

मेरे ज़ख्मों पर नमक छिड़क भी दोगे तो क्या हो जाएगा
इसी बहाने अपने और पराये का बोध मुझे हो जाएगा

सिसकती साँसों के संग जो जी रहे हैं उनके ग़मों को अपना कर लूं
खुदा के बन्दों से निस्बत कोई गुनाह तो नहीं

पालता हूँ अपने दिल में कोशिशों का समंदर
अनिल “जबलपुरी” इतना बुजदिल नहीं , जो एक लूके से फ़ना हो जाएगा

तूफां भी अपना रुख मोड़ लेगा जिस ओर कदम पड़ेंगे मेरे
यूं ही नहीं अपनी कोशिशों को अपनी अमानत किया मैंने

ख़ाक किये बैठे हैं अपने भीतर के सारे गम
ये आरज़ू है इन ग़मों पर हो खुदा की इनायते – करम

सही और गलत के फितूर में खुद को उलझाता नहीं हूँ मैं
मेरी हर एक कोशिश में उस खुदा की रज़ा