Sunday 18 October 2020

पीर दिल की सुनाऊंगा सबको

 

    पीर दिल की सुनाऊंगा सबको  

 

पीर दिल की सुनाऊंगा सबको

घाव दिल के दिखाऊंगा सबको

 

बिलख रही साँसों से मिलाऊंगा सबको

घाव दिल के दिखाऊंगा सबको

 

रोटी को तरस रहे परिवारों से मिलाऊंगा सबको

घाव दिल के दिखाऊंगा सबको

 

मर गया है ज़मीर जिनका इस त्रासदी में

उन दुश्चारित्रों से मिलाऊंगा सबको

 

आंसुओं का सैलाब उमड़ रहा हर जगह

 सोये हुए लोगों जगाऊँगा सबको

 

एक लाख लोगों की शहादत पर रुलाऊंगा सबको

घाव दिल के दिखाऊंगा सबको

 

घर से क्यूं न निकलें , भूख से मर जाएँ वो

हर एक दिल की दास्ताँ सुनाऊंगा सबको

 

माँ ने खोया है अपने जिगर का टुकड़ा

बहन ने खो दिया है भाई अपना

 

उन्हें फ़र्क नहीं पड़ता ये बताऊंगा सबको

घाव दिल के दिखाऊंगा सबको


बेटी ने पूछा माँ से पापा का हाल

चीख  - चीख कर ये दास्ताँ सुनाऊँगा  सबको

 

वो नन्ही परी गयी तो फिर नहीं लौटी

उस माँ के दर्द से मिलाऊंगा सबको

 

वो हाथ ही नहीं रहे जो देते थे आशीष

अनाथ बच्चों की चीख सुनाऊंगा सबको

 

सुबक  - सुबक कर रोती हुई बच्ची ढूंढती माँ को

सिसकती साँसों के गीत सुनाऊंगा सबको

 

पीर दिल की सुनाऊंगा सबको

घाव दिल के दिखाऊंगा सबको       

वक़्त के कैनवास पर

 वक़्त के कैनवास पर     


वक़्त के कैनवास पर जिन्दगी का

एक हसीं कोलाज हो रोशन

 

प्रेम के हवनकुंड में विश्वासरूपी

आहुति से जिन्दगी हो रोशन

 

रिश्तों की मर्यादा से सामाजिक परिवेश का

एक खुशनुमा गुलशन हो रोशन

जिन्दगी का प्रेमराग जिन्दगी के

हर पल को करें रोशन

 

प्रकृति के अलंकरणों से कायनात की

हर एक रूह हो रोशन

 

मुहब्बत की खुशबू से

हर एक आँगन का आँचल हो रोशन

 

वात्सल्य की पावन अनुभूति से

हर एक माँ का आँचल हो रोशन

 

सत्य की राह से जिन्दगी के

मोक्ष की राह हो रोशन


सब यहीं धरा रह जाएगा

                                                    सब यहीं धरा रह जाएगा

 

सब यहीं धरा रह जाएगा

तू साथ क्या ले जाएगा

 

फिर रौब किस बात का

न सिकंदर रहा न अकबर रहा

 

क्या कार क्या मकान क्या

अच्छी चल रही दुकान क्या

 

क्यों भागता तू फिर रहा

आखिर अंत क्या तू पाएगा

 

मन से तू राग द्वेष छोड़

हो सके तो सबको गले लगा

 

चार दिन की जिन्दगी

तू साथ क्या ले जाएगा

 

रिश्तों से पीछा छोड़कर

कहाँ तक तू भाग पायेगा

 

यूं ही अकेला रह जाएगा

यूं ही अकेला मर जाएगा

 

अपनों का दामन छोड़ न

रिश्तों से मुंह तू मोड़ न

 

पीछे जो मुड़कर देख लेगा

हाथ न कुछ आएगा

 

राम क्या अल्लाह क्या

सभी ने हमको एक राह दी

 

तू धर्म के नाम पर लड़ रहा

क्या ख़ाक मोक्ष तू पायेगा

 

क्यूं करे तू हिन्दू मुसलमां

क्यूं करे तू तेरा मेरा

 

रिश्तों की जो लड़ी न बनी तो

बिखर  - बिखर रह जाएगा

 

जो सत्य का आँचल न हो तो

कैसा जीवन तू पायेगा

 

आध्यात्म की जो छाँव न हो

भटक – भटक रह जाएगा

 

पीर दिल की न मिटेगी

तड़प  - तड़प रह जाएगा

 

सोच अपने अस्तित्व की तू

वर्ना यहीं सड़ जाएगा

 

राह जीवन की संवार तू

वर्ना जंगली हो जाएगा