Tuesday 19 March 2019

मेरी तन्हाइयों को अपना बना ले कोई


मेरी तन्हाइयों को अपना बना ले कोई

मेरी तन्हाइयों को अपना बना ले कोई
मेरी स्याह रातों को रौशनी से सजा दे कोई

मेरी सिसकती सांसों को सुकूँ दे कोई
मेरी जिन्दगी को रंगों से सजा दे कोई

मेरे गुलशन में भी मुहब्बत के फूल खिला दे कोई
मेरी जिन्दगी को खुशबू से सजा दे कोई

मेरे घर के आँगन में भी दो चार फूल खिला दे कोई
मेरे भी घर को मुहब्बत का आशियाँ बना दे कोई

मेरी चाहतों को पंखों से सजा दे कोई
मुझे भी आसमां की सैर करा दे कोई

मेरी आरज़ू को अपने करम का सिला दे कोई
मेरी जिन्दगी को कामयाबी का मुकाम दे कोई

मेरे ख़्वाबों को खुशियों से रोशन कर दे कोई
मेरी जिन्दगी को उस खुदा की अमानत बना दे कोई

मेरी कोशिशों को इंसानियत की राह दिखा दे कोई
मुझे उस खुदा का शागिर्द बना दे कोई


हिंदी है राजभाषा


हिंदी है राजभाषा

हिंदी है राजभाषा
हिंदी को धर्म कर लो

हिंदी के साथ जी लो
हिंदी के साथ मर लो

हिंदी के उत्थान को
शिरोधार्य कर लो

कुछ और काव्य रच दो
कुछ और पूरण रच दो

हिंदी को अपने देश का
ईमान कर दो

हिंदी को कर्म कर लो
हिंदी पर खुद को वर दो

हिंदी राजभाषा की खातिर
खुद को निसार कर दो

हिंदी से “जीता भारत”
हिंदी को जीवन का मर्म कर लो

हिंदी के विस्तार से
स्वयं का विस्तार कर लो

हिंदी के साथ जी लो
हिंदी के साथ मर लो

हिंदी के उत्थान के लिए
विश्व धरा को मंच कर लो

कुछ गीत रच दो
कुछ और महाकाव्य रच दो

हिंदी से होता रोशन
हिन्दोस्तां हमारा

हम सब मिल ये बोलें
हिंदी हमारी राजभाषा

हिंदी है राजभाषा
हिंदी को धर्म कर लो

हिंदी के साथ जी लो
हिंदी के साथ मर लो


Monday 18 March 2019

अपनों के बीच रहकर भी तनहा हूँ मैं न जाने क्यूं


अपनों के बीच रहकर भी तनहा हूँ मैं न जाने क्यूं

अपनों के बीच रहकर भी तनहा हूँ मैं ,न जाने क्यूं
खुशबू के समंदर में भी रहकर खुशबू से अनजान हूँ मैं ,न जाने क्यूं

पर कुतर दिए मेरे, मेरे मेरे अपनों ने ही , न जाने क्यूं
चाहकर भी मुस्कुरा नहीं पाता , ये एहसास , न जाने क्यूं

मेरी कलम मेरे विचारों का साथ नहीं दे रही , न जाने क्यूं
खूबसूरत चेहरों पर भी एक अजीब सा खौफ है, न जाने क्यूं

संस्कृति, संस्कारों को तिलांजलि दे रही आज की युवा पीढ़ी , न जाने क्यूं
एक ही छत के नीचे रहकर भी एक दूसरे से वो अनजान हैं, न जाने क्यूं

रिश्तों में खिंच रही एक अदृश्य दीवार , न जाने क्यूं
सी रहे हैं होंठ सौ झूठ छुपाने को , न जाने क्यूं

भीगी  - भीगी पलकों का साथ लिए वो जी रहे , न जाने क्यूं
ग़मगीन हो रही हर एक शाम , कोई दिलासा देता , नहीं है क्यूं

किसी की आह पर कोई आंसू बहाता नहीं , न जाने क्यूं
कोई चाहकर भी किसी को पास बिठाता नहीं , न जाने क्यूं

किसी गिरते हुए को कोई उठाता नहीं , न जाने क्यूं
कोई चाहकर भी किसी को अपना बनाता नहीं  , न जाने क्यूं



मैं तेरे दर का नूर हो जाऊं ऐ मेरे खुदा


मैं तेरे दर का नूर हो जाऊं ऐ मेरे खुदा

मैं तेरे दर का नूर हो जाऊं ऐ मेरे खुदा
मैं सबके दिलों का शुरूर हो जाऊं ऐ मेरे खुदा

मुझ पर तेरा करम हो जाए ऐ मेरे खुदा
मैं जहां भी रहूँ तेरा साथ हो ऐ मेरे खुदा

तेरे हर एक करम को इबादत समझा क़ुबूल करूं ऐ मेरे खुदा
मैं जहां भी रहूँ सुकूँ अता कर ऐ मेरे खुदा

मुझे तुझसे मुहब्बत हो जाए ऐ मेरे खुदा
तेरे बन्दों से मुझे आशिकी हो जाए ऐ मेरे खुदा

तेरे हर बन्दे में तेरा अक्स नज़र आये ऐ मेरे खुदा
हर एक शख्स को अपना शागिर्द कर ऐ मेरे खुदा

तेरी इस कायनात से मुझे निस्बत हो ऐ मेरे खुदा
मेरा नसीब तेरे करम से रोशन हो ऐ मेरे खुदा

हर एक दरख़्त में दरार नज़र आ रही क्यूं है


हर एक दरख़्त में दरार नज़र आ रही क्यूं है

हर एक दरख़्त में दरार नज़र आ रही क्यूं है
पीर दिल की दिल में नासूर बन पल रही क्यूं है

एक अदद चाँद की ख्वाहिश में हर एक शख्स जी रहा क्यूं है
गम से निजात पाने को हर शख्स पी रहा क्यूं है

ग़मगीन  - ग़मगीन सा हर एक शख्स नज़र आ रहा क्यूं है
खुद से ही आँखें मिलाने से हर एक शख्स डर रहा क्यूं है

इस बेरहम दुनिया में जिन्दगी नासूर बन पल रही क्यूं है
सहमा – सहमा सा हर एक शख्स खुद पर तरस खा रहा क्यूं है

डरी  - डरी सी निगाहों के साथ हर एक शख्स जी रहा क्यूं है
खुदा के दर पर आज मेला लगता नहीं क्यूं है

पब और बियर बार जवानी का शगल बन उभर रहे क्यूं हैं
खुदा की राह पर अब लोगों का एतबार रहा नहीं क्यूं है

आसमानी चाँद की चाह में घर के चाँद से आदमी मुंह मोड़ रहा क्यूं है
नापाक इरादों के साए में आज का आदमी पल रहा क्यूं है

खुदा की इस अनजान कायनात में आदमी भटक रहा क्यूं है
खुदा के बन्दों पर एतबार नहीं खुद पर भी एतबार नहीं क्यूं है


किसी को अपना बनाएं तो बनाएं कैसे


किसी को अपना बनाएं तो बनाएं कैसे

किसी को अपना बनाएं तो बनाएं कैसे
किसी के दिल में समायें तो समायें कैसे

पीर दिल की नासूर बन गयी मेरी
इसका एहसास उन्हें कराएं तो कराएं कैसे

चंद घूँट पीकर खुद को बहला रहा हूँ मैं
इस दिल समझाएं तो समझाएं कैसे

मेरी ख्वाहिश है वो हो जाए मेरे आशियाँ का चाँद
उन्हें इस ख्वाहिश से रूबरू कराएं तो कराएं कैसे

मेरी आरज़ू है कि मेरी जिन्दगी का हिस्सा हों वो
अपनी मुहब्बत के फूल उनकी राह में बिछाएं कैसे

हम जानते हैं बहुत खूबसूरत हैं वो
अपना हमसफ़र उन्हें बनाएं तो बनाएं कैसे

उनकी हर एक अदा ने किया हम पर कुछ असर ऐसा
अपने दिल को समझाएं तो समझाएं कैसे

उनके पाकीज़ा कदम से कब रोशन होगा मेरे घर का आँगन
उनको अपने घर का पता बताएं तो बताएं कैसे



Monday 11 March 2019

नारी शक्ति


नारी शक्ति

तुझे भी मुस्कुराने का हक़ है
तुझे भी गुनगुनाने का हक़ है

तुझे भी है आसमां को छूना
तुझे भी महक, जाने का हक़ है

दिलों में राज करना है तुझको
तुझे भी संवर जाने का हक़ है

तुझे भी है शक्ति से पोषित होना
तुझे भी मर्दानी हो जाने का हक़ है

तुझे भी प्रेमालिंगन होने का हक़ है
तुझे भी चहक जाने का हक़ है

तुझे भी है दिखना खूबसूरत
तुझे भी संवर जाने का हक़ है

तुझे भी है खुद को रोशन करना
तुझे भी इतिहास रचने का हक़ है

तुझे भी है वक़्त के कैनवास पर खुद को सजाना
तुझे भी बदल जाने का हक़ है

तुझे भी है एक खुदा का चाँद करना रोशन
तुझे भी आसमां सजाने का हक़ है

तुझे भी है स्वयं को खोजने का हक़
तुझे भी खुद को पाने का हक़ है

तुझे भी है खुद को रंगों में रंगना
तुझे भी रिश्तों में पिरो जाने का हक़ है

तुझमे भी है देश के प्रति लगाव
तुझे भी देश पर न्योछावर हो जाने का हक़ है

तुझे भी है आसमां पार जाना
तुझे भी चाँद पर घर बसाने का हक़ है

हे नारी शक्ति , हे जगत जननी
तुझे भी “माँ” कहलाने का हक़ है  


हर नदी अपना रास्ता अपनी तरह से बनाती है


हर नदी अपना रास्ता अपनी तरह से बनाती है

हर नदी अपना रास्ता , अपनी तरह से बनाती है
जिन्दगी न जाने क्यों, झंझावातों में उलझ कर रह जाती है

धर्म और आध्यात्म के विश्वास की, कसौटी हो जाए जीवन
जीवंत हो उठेगा जीवन, मुक्ति का मार्ग होगा रोशन

सिर्फ एक खामोश धुन भटकती है , जीवन के कहीं किसी कोने में
दिल की बेचैनी जुबां पर आने की सोच , सिहर उठती है

सपनों से बनती जिन्दगी की राह का , ख़्वाब सजा कर देखो
तेरी हर एक कोशिश हर एक प्रयास को मंजिल होगी नसीब

मैं मरूंगा नहीं , सूरज सा अस्त हो पुनः भोर आते ही वापस आऊँगा
इस ज़ज्बे को जिन्दगी की धरोहर कर, जिन्दगी को करो रोशन

बचपन कोई खोई हुई चीज़ है क्या, जो उसे ढूंढ लोगे तुम
हो सके तो बचपन को खुलकर जियो, और रोशन करो यादों का एक कारवाँ

रिश्तों की माला को पिरोये, कुछ इस तरह
मोती हों सच्चे रिश्तों के, और धागा हो रिश्तों में विश्वास का