Thursday, 2 January 2014

पाश्चात्य से हमने क्या सीखा



पाश्चात्य से हमने क्या सीखा

हवा में अजीब सी
गंदगी घुल गई है
मानव मस्तिस्क पर
विपरीत असर कर रही है
बात मैं हवा की
नहीं कर रहा हूँ
मैं हवा के माध्यम से
हमारे चारों ओर के
सामाजिक परिवेश की चर्चा
कर रहा हूँ
पाश्चात्य से बटोरा है हमने
कामग्रसित समाज
जिसने हमारी भावनाओं को
काम वशीभूत किया है
लिया है हमने पाश्चात्य से
अतिमहत्वाकांक्षी होने का मन्त्र
जिसने हमें हमारे सामाजिक
परिवेश में
अनुशासनहीन जीवन
जीने की ओर अग्रसर किया है
जाना है हमने पाश्चात्य से
न्यूक्लीयर युक्त
समाज में
जीवन जीने का तंत्र
इस तंत्र ने
मानव सभ्यता को
इसके अंत पर लाकर
खड़ा किया है
पाश्चात्य से हमने सीखा है
वर्णशंकर युक्त
नई पीढ़ी के साथ
जीवन जीने का मार्ग
यह मार्ग बड़ा आसाँ है
हमारे भारत धर्म
भारतीय संस्कृति को
अधोगति में
ले जाने के लिए
चाहिए तो था
हम बटोरते
कुछ ऐसा
पाश्चात्य संस्कृति से
जो उसे हमसे
कुछ मायनों में
आदर्श बनाती है
जैसे कि
हम उनकी ही तरह
ईमानदार होते
राष्ट्र के प्रति
समर्पित होते
राष्ट्रप्रेमी होते
अनुशासित होते
जो हमें सम्पूर्ण ,
मानव बनने में
सहायक होती
हम एक
आदर्श भारतीय समाज
का निर्माण कर पाते

हम आसमां पर चमकते
न कि भ्रष्टाचार ,
बलात्कार ,अपराध
की सूची में
सबसे ऊपर होते
सबसे ऊपर होते
सबसे ऊपर होते|



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