Monday, 20 January 2014

जिन्दगी दो राहों की मानिंद


जिन्दगी दो राहों की मानिंद
जिन्दगी दो राहों की मानिंद
नज़र आ रही है मुझे
जाऊं इस ओर या उस ओर
समझ आ नहीं रहा है मुझे
कहते हैं किसे झूठ और किसे सच
यह भान नहीं हो रहा है मुझे
जिन्दगी दो राहों की मानिंद
नज़र आ रही है मुझे
किसे कहूं सुख और किसे कहूं दुःख
ये कोई समझाए मुझे
किसे कहते हैं गिरना और किसे उठना
ये बात कोई बताये मुझे
जिन्दगी दो राहों की मानिंद
नज़र आ रही है मुझे
कहूं किसे गरीबी और किसे अमीरी
ये सत्य कोई बतलाये मुझे
कहते हैं किसे उंचा और किसे नीचा
कोई राह दिखलाए मुझे
जिन्दगी दो राहों की मानिंद
नज़र आ रही है मुझे
किसे मानव कहूं और किसे ईश्वर
ये तथ्य कोई समझाए मुझे
कि पालने में रो रहा है जो
उसे चुप कराऊँ कैसे
कि कोई ये बताये मुझे
कि गिरते को उठाऊँ कैसे
जिन्दगी दो राहों की मानिंद
नज़र आ रही है मुझे


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