Monday, 20 January 2014

वीरों की वीरता पर


                 वीरों की वीरता पर
वीरों की वीरता पर
नाज़ है मुझे
उनके समर्पण , त्याग का
बलिदान का , राष्ट्रप्रेम का
ऋणी है स्वतन्त्र भारत
सदियाँ हमेशा से
वीरों की वीरता की
कायल रही है
उनका जज्बा
उनकी देश पर
मर मिटने की लालसा
जिसकी दम पर
आज साधारण मानव भी
अपने आपको सुरक्षित पाता है
पर आज भारत
एक अलग ही
परम्परा का
शिकार हो रहा है
देश के भीतर ही
पल रहे जयचंदों  के द्वारा
दिया जा रहे क्षेत्रीयतावाद
ने नारे ने
इस देश की
अखंडता पर एक
प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है
बिहारी , बिहार में बंद हो जी रहा है
महाराष्ट्रीपन अपने आपको
महाराष्ट्र का
महाराजा समझ
गर्व से फूला नहीं समाता
उत्तर के लोगों को
निम्न स्तर पर
जी रहे लोगों का शोषण
राष्ट्रीयता की भावना
के अभाव में
हमें यह सोचने को
मजबूर कर दिया है
कि जिस भूमि पर
जिस धरा पर
हमने जन्म लिया
उसके प्रति
हमारे दायित्व क्या हैं
कर्तव्य क्या हैं
आज हमारी महत्वाकांक्षायें
हमारी जरूरतों ने
हमारी विलासितारुपी
मांगों ने
हमें गर्त में
धकेल दिया है
समाज के पतन
राष्ट्र के पतन के
साथ – साथ
मानव के नैतिक
पतन का
एक अजीब सा दौर
हमारे सामने आ खड़ा है
मेरा – मेरा के अतिरिक्त
हमें कुछ सूझता नहीं है
दूसरों के लिए
हमारे पास समय नहीं है
चूंकि जितना भी
समय हमारे पास
उपलब्ध है
वह शायद
हमारे स्वयं के लिए ही
कम महसूस होता है
हमारी स्वयं की समस्याओं
की सूची
इतनी विस्तृत है कि
हम चाहकर भी
दूसरों की चादर के छेदों को
भरने का प्रयास
नहीं कर पाते
वक़्त आ गया है
कि हम सचेत हो जायें
चिंचित हो जायें इस बात के लिए
तैयार हो जायें
कि वर्तमान पीढ़ी व
आने वाली पीढ़ी को
केवल एक ही पाठ पढ़ायें
वह है
मानव मूल्यों का पाठ
राष्ट्रप्रेम का पाठ
देश की अखंडता व एकता का पाठ
भौतिक संसाधनों से ऊपर उठ
जीवन मूल्यों का पाठ
जो हमारा
शारीरिक पतन रोक
हमें उस ओर अग्रसर कर सके
जहां हम अपना मानव धर्म
निभा सकें
सामाजिक धर्म निभा सकें
राष्ट्रधर्म निभा सकें
और इस धरा के
सच्चे सपूत कहला सकें

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