Monday, 20 January 2014

प्रकृति की गोद में


प्रकृति की गोद में
प्रकृति की गोद में
अपने आपको पाने के
कई सुअवसर
मेरे जीवन में आये
बच्चों के साथ साइकिल
पर चलते हुए
मार्ग के दोनों ओर
के दृश्यों को निहारते
धीरे – धीरे हम
अपनी मंजिल की ओर
बढ़ रहे थे
सड़क पर तीव्र गति से
दौड़ते वाहन
हमारे भीतर
एक अशुरक्षित यात्रा
का अंदेशा पैदा कर रहे थे
हाथ में हमारे
हरी झंडी व लाल झंडी
देख कर भी
उन पर इसका
कोई असर न होता था
पर हमारे जोश
व दृढ़ इच्छा ने हमें
आगे बढ़ने को प्रेरित किया
और हमारी प्रकृति की  गोद में
एक दिवस बिताने की
याता अनवरत जारी रही
बच्चे खुश थे कि शिक्षक भी
साइकिल पर ही
उनके साथ चल रहे थे
और उनका पूरा – पूरा
ध्यान रख रहे थे
साथ ही सड़क पर
किस तरह से अनुशासन रखा जाए
इसकी  शिक्षा भी दे रहे थे
गाँव की चौपाल पर बैठे
बड़े बूढों को देख
बरबस ही
हमारे मुख से
राम – राम दादा
राम – राम काका
के संबोधन बाहर आ रहे थे
जिससे चौपाल में बैठे सभी लोग
अचंभित व खुश हो उठे
सड़क किनारे खड़े
गाँव के बच्चे
हेल्लो - हेल्लो
कह अभिवादन कर रहे थे
बीच – बीच में
बच्चों द्वारा
किये जाने वाले निनाद ने
रास्ते की थकान को
कम कर दिया  था
प्रकृति की वादियों में
घूमने का एक अपना
अलग ही आनंद होता है
आखिरकार हम
उस घाटी तक पहुँच ही गए
जो हमारी यात्रा का
अंतिम पड़ाव था
प्रकृति का
अदभुत नज़ारा देख
बच्चे प्रफुल्लित हो उठे
बच्चों ने साइकिल
एक जगह पर करीने से रख
गतिविधियों का लुत्फ़ उठाया
गीत और निनाद के बीच
वातावरण और मोहक हो उठा
बच्चों ने
एक साथ मिल
खुले आसमां के नीचे
परमपूज्य परमात्मा का धन्यवाद कर भोजन का
आनंद उठाया
थकान का किसी के भी
चेहरे पर
किंचित मात्र भी
निशाँ नहीं था
पड़ाव से करीब
तीन किलोमीटर दूर
सुन्दर पर्वतमाल देख
हमारा मा
बरबस ही कह उठा
कि हमें
इस पर्वत श्रृंखला पर जाकर
ध्वज फहराना है
फिर आया
ट्रैकिंग करने का  क्षण
बच्चे कतार बद्ध हो
धीरे – धीरे मंजिल की ओर बढ़ने लगे
आगे – आगे शिक्षक गण
मार्गदर्शन करते
रास्ता बताते
मंजिल पर पहुँच
बच्चों की ख़ुशी व जोश का
ठिकाना नहीं था
आज सब कुछ
पा लिया इन बच्चों ने
न घरवालों की याद
न स्कूल की चिंता
प्रकृति की गोद में
बीता यह दिवस
एक अजब अनुभूति है जो हमेशा
मुझे रोमांचित कतरी रही है
काश ये पल
बार - बार आये

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