Monday 20 January 2014

पत्नी मेरी कमाल :- एक व्यंग्य


पत्नी मेरी कमाल
पत्नी मेरी कमाल       
दिखने में बेमिसाल
खूबसूरती का इसकी
क्या कहना
दिमाग इसका
दो धारी तलवार
काटकर दो कर दे
बिना लिए तलवार
बातों में इसकी
अजब मिठास है
पास जो जाओ तो
लगती कटार है
अदाओं का सिला
नहीं है इसको
जीने के अंदाज़ में
६० की नारी
पसंद आती इनको
नखरे इनके
अजब कमाल है
देती हैं मन में गाली
होठों पर गुलाब है
परवाह नहीं इनको हमारी
इनके नखरे हम पर
हमेशा पड़ते भारी
बात – बात पर
उलझती है ये
अपने मायके के खिलाफ
कुछ नहीं सुनती है ये
रूठने से इनके
रुक जाती हमारी नैया
कभी भी अनजाने में भी
इनसे पंगा न लेना भैया
रात को जो 
पैर न दबाये तो भैया
हर  महीने एक साड़ी
न दिलाये तो भैया
अनजाने में भी शाब्दिक
गलती न करना भैया
मेरी वाली का कोई भरोसा नहीं
पल – पल में बिगड़ती है ये
ज़रा – ज़रा सी बात को
सीने से लगाती है ये
गलती बेशक उसकी हो
फिर भी डांट दिखाती है ये
कभी जो गलती से
चाय को कह दो
उबला पानी पिलाती है ये
पत्नी मेरी कमाल       
दिखने में बेमिसाल



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