किस गली
किस गली
किस नुक्कड़
पर होगी
जिन्दगी
की शाम
न मैं
जानूं
न तुम
जानो
लेगा समय
किस करवट
खिलेंगे
फूल या मिलेंगे कांटे
न मैं
जानूं
न तुम
जानो
मिलेगा
क्या तुमको
इस जहां
में
क्या खो
जाएगा
या पा
लेंगे कुछ
न मैं जानूं
न तुम
जानो
मिलेगा
विश्राम या
नहीं
मिलेगा आराम
मिलेगा
आसमां या
यूं ही
जिन्दगी
दर- बदर रहेगी
भटक
न मैं
जानूं
न तुम
जानो
राह क्या
होगी आसाँ
या होगा
सामना कठिनाइयों
और
मुश्किलों का
न मैं
जानूं
न तुम
जानो
खिला
देंगे हम
आदर्श
जमीन पर
या दूसरों
के पीछे
भागना
होगा
कि
कुसंस्कृत होंगे विचार
या कि
कुसंस्कारों का
होंगे
हिस्सा
न मैं
जानूं
न तुम
जानो
बनूंगा
किसी की
आँखों का
नूर
या बनूंगा
धरती का तारा
क्या ला
सकूंगा
तारे ज़मीं
पर
या
खिलूँगा धरा पर
फूल बनकर
न मैं
जानूं
न तुम
जानो
अस्तित्व
धरा पर मेरा क्या होगा
क्या
दूसरों के
अस्तित्व
को संवार सकूंगा
न मैं
जानूं
न तुम
जानो
उत्थान के
या
पतन के
दौर से
गुजरूँगा
भान ज़रा
भी
नहीं
मुझको
किनारे का
मिलेगा सहारा
या
उतरूंगा मैं बीच धरा
न मैं
जानूं
न तुम
जानो
पा लूंगा
वह पथ मैं
जिस पर चल
चूम लूंगा
मैं
उस शिखर
को
आचमन कर
लूँगा मैं
उस मंजिल
को
उस अंत को
जो मेरी
जीत
मेरे
उद्देश्य का अंतिम पड़ाव होगा
यह मेरी
हार्दिक इच्छा है
यह मेरी
अभिलाषा है
यह मेरी
चाह है
यही मेरे
लिए
अंतिम
सत्य है
फिर भी
किस गली
किस
नुक्कड़ होगी
मेरी
जिन्दगी की शाम
न मैं
जानूं
न तुम
जानो
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