Wednesday, 8 January 2014

सड़कों पर स्टंट



सड़कों पर स्टंट
सड़कों पर स्टंट आज की पीढ़ी का चार्म है
लगता सड़कों पर कभी भी जाम है
डर के बाद जीत ये स्लोगन लगता तो अच्छा है
पर इसे पढ़ने वा समझने वाला अभी बच्चा है
जिंदगी इस कदर सस्ती हो गयी है इन स्लोगन्स को पढकर
कहीं शरीर दो टुकड़े होता कहीं शरीर से पैर होता अलग
कहीं खून से सराबोर होती सड़क
कहीं माँ की आँखों से गिरता आंसुओं का समंदर
ये स्टंट दिखाने वाले लगते तो बेमिसाल हैं
पर हर वक्त हर – पाल जिंदगी के खोने का भय सताता है
कोई ये स्टंट मोटर साइकिल पर दिखाता है
तो कोई ये स्टंट कार पर दिखाता है
कभी हवा मे तो कभी पानी में जोखिम नज़र आता है
कहीं ट्रेन की पटरी पर स्टंट का जोखिम लेती युवा पीढ़ी
सौ – सौ रुपये की बैट पर जिंदगी के साथ खेलती
मोल जिंदगी का इस कदर हो गया है कम
महसूस नहीं होता कि रह गया है इस पीढ़ी में दम
देश के लिए नहीं दिखता कुछ कर गुजरने का जज्बा
समाज को नई दिशा दिखाने का नहीं दिखता इनमे माद्दा
आसमां को छूने की नहीं सोचते ये लोग
सड़कों पर जिंदगी की बाजी में मशगूल ये लोग
किस्सा – ए – मौत से नाता रखना इनका पेशा
बिखरता है सड़कों पर इनके तन का रेशा – रेशा
बीयर बार और पब में गुजरती रातें इनकी
आर्ट ऑफ लिविंग से नाता दिखता नहीं इनका
वेलेनटाइन और फ्रेंडशिप के नाम हैं इनकी जुबान पर
समय व्यर्थ गंवाते मोबाइल और चैट के नाम पर
विश्व शांति , आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने की इनमे भूख नहीं
समाज और पर्यावरण के लिए कुछ करना इनकी नीयत नहीं
आधुनिकता की अंधी दौड़ का ये पैगाम हो गए हैं
विकृत समाज की भयावह तस्वीर का ये सामान हो गए हैं
रोकना इनको अब नामुमकिन सा हो गया है
आतंकवाद की तरह नासूर अब इनका जीवन हो गया है
आतंकवाद की तरह नासूर अब इनका जीवन हो गया है
आतंकवाद की तरह नासूर अब इनका जीवन हो गया है


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