सड़कों पर स्टंट
सड़कों
पर स्टंट आज की पीढ़ी का चार्म है
लगता
सड़कों पर कभी भी जाम है
डर
के बाद जीत ये स्लोगन लगता तो अच्छा है
पर
इसे पढ़ने वा समझने वाला अभी बच्चा है
जिंदगी
इस कदर सस्ती हो गयी है इन स्लोगन्स को पढकर
कहीं
शरीर दो टुकड़े होता कहीं शरीर से पैर होता अलग
कहीं
खून से सराबोर होती सड़क
कहीं
माँ की आँखों से गिरता आंसुओं का समंदर
ये
स्टंट दिखाने वाले लगते तो बेमिसाल हैं
पर
हर वक्त हर – पाल जिंदगी के खोने का भय सताता है
कोई
ये स्टंट मोटर साइकिल पर दिखाता है
तो
कोई ये स्टंट कार पर दिखाता है
कभी
हवा मे तो कभी पानी में जोखिम नज़र आता है
कहीं
ट्रेन की पटरी पर स्टंट का जोखिम लेती युवा पीढ़ी
सौ –
सौ रुपये की बैट पर जिंदगी के साथ खेलती
मोल
जिंदगी का इस कदर हो गया है कम
महसूस
नहीं होता कि रह गया है इस पीढ़ी में दम
देश
के लिए नहीं दिखता कुछ कर गुजरने का जज्बा
समाज
को नई दिशा दिखाने का नहीं दिखता इनमे माद्दा
आसमां
को छूने की नहीं सोचते ये लोग
सड़कों
पर जिंदगी की बाजी में मशगूल ये लोग
किस्सा
– ए – मौत से नाता रखना इनका पेशा
बिखरता
है सड़कों पर इनके तन का रेशा – रेशा
बीयर
बार और पब में गुजरती रातें इनकी
आर्ट
ऑफ लिविंग से नाता दिखता नहीं इनका
वेलेनटाइन
और फ्रेंडशिप के नाम हैं इनकी जुबान पर
समय
व्यर्थ गंवाते मोबाइल और चैट के नाम पर
विश्व
शांति , आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने की इनमे भूख नहीं
समाज
और पर्यावरण के लिए कुछ करना इनकी नीयत नहीं
आधुनिकता
की अंधी दौड़ का ये पैगाम हो गए हैं
विकृत
समाज की भयावह तस्वीर का ये सामान हो गए हैं
रोकना
इनको अब नामुमकिन सा हो गया है
आतंकवाद
की तरह नासूर अब इनका जीवन हो गया है
आतंकवाद
की तरह नासूर अब इनका जीवन हो गया है
आतंकवाद
की तरह नासूर अब इनका जीवन हो गया है
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