Sunday 23 July 2023

अफ़सोस – लघु कहानी

 अफ़सोस – लघु कहानी

एक छोटा सा परिवार जिसमे माता , पिता , बेटा , बहू और एक पोता | पोते की उम्र करीब सत्रह वर्ष | परिवार खुशहाल और संपन्न| घर में सभी प्रकार के संसाधन मौजूद| बेटा और बहू दोनों नौकरी करते हैं | पिता कॉलेज में लेक्चरर और बहू सरकारी स्कूल में प्राचार्य |

पोते को सभी कार्तिक कहकर पुकारते | कार्तिक बहुत ही होनहार किन्तु उस पर भी आधुनिक उपकरणों का विशेष प्रभाव था | हाथ में मोबाइल और कान में ईयरफ़ोन | कभी – कभी किसी काम से उसे घर में उसे कोई पुकारता तो उसे पता ही नहीं होता कि कोई कार्यवश उसे पुकार रहा है | इसे लेकर कार्तिक को कई बार झिड़की भी मिल चुकी है | आजकल अमूमन ऐसे दृश्य हर घर में देखने को मिल जाते हैं जहां बच्चे अपने कानों में ईयरफोन पर अंग्रेजी गानों में व्यस्त दिखाई देते हैं |

दादाजी को दो वर्ष पूर्व ही दिल का पहला हल्का दौरा पड़ चुका है | चूंकि कार्तिक के मम्मी और डैडी दोनों रोज नौकरी पर चले जाते हैं तो पीछे से घर में कार्तिक और उसके दादा – दादी रह जाते हैं | आजकल कार्तिक की गर्मियों की छुट्टियां चल रही हैं इसलिए उसका ज्यादा समय घर पर ही व्यतीत होता है | हर समय हाथ में मोबाइल और उस पर गेम और कानों में ईयरफोन पर अंग्रेजी में मधुर संगीत | अंग्रेजी संगीत को मधुर लिखना मेरी बाध्यता है चूंकि आज के बच्चों के लिए मधुर संगीत अंग्रेजी में ही होता है |

दोपहर के करीब तीन बजे का समय था कार्तिक के माता और पिता नौकरी पर गए हुए थे | कार्तिक अपने कमरे में मोबाइल पर व्यस्त , दादी अपने कमरे में आराम करते हुए और दादाजी को नींद नहीं आ रही थी सो वे हॉल में टी वी पर पुरानी हिंदी फिल्म का आनंद उठा रहे थे | सब कुछ सामान्य लग रहा था कि अचानक कार्तिक के दादाजी को दिल का दूसरा घातक दौरा पड़ा | उन्होंने कार्तिक को कई बार आवाज लगाई किन्तु उनकी आवाज़ को सुनता कौन | अचानक कार्तिक को प्यास लगी और वह हॉल में रखे फ्रिज से पानी लेने को आया और दादाजी के अंतिम शब्द “कार्तिक” सुन घबरा गया और दादाजी को संभालने की कोशिश करता तब तक दादाजी इस दुनिया को छोड़ कर जा चुके थे |

कार्तिक ने माता और पिता को फ़ोन कर सूचना दी और वे भागते – भागते घर आये | घर में दादाजी को जीवित न पाकर वे बहुत ही दुखी हुए | कार्तिक के मन में एक प्रश्न बार – बार घर कर रहा था कि वह चाहता तो दादाजी को बचा सकता था किन्तु उसकी मोबाइल पर कुछ ज्यादा ही व्यस्त होने की आदत से उसने अपने दादाजी को खो दिया | उसे अपनी इस आदत और अपने व्यव्हार पर बहुत ही गुस्सा आ रहा था | उसे पता था कि मृत्यु से पूर्व उसके दादाजी ने उसे कई बार आवाज लगाईं होगी किन्तु ……..|

कार्तिक ने अपने माता और पिता से माफ़ी मांगी और भविष्य में मोबाइल और ईयरफोन के इस्तेमाल को लेकर प्रण किया कि वह कम से कम और केवल आवश्यकता पड़ने पर ही इन चीजों का इस्तेमाल करेगा | उसे अपने किये पर अफ़सोस हो रहा था |

शिक्षा :- मोबाइल औए ईयरफोन का इस्तेमाल सोच समझ और स्थान देखकर करें |

गुमराह – कहानी

 गुमराह – कहानी

एक गाँव में चार दोस्त रहते थे उनके नाम थे – मनोज, पंकज, देव एवं विजय | सभी खेतिहर मजदूर के परिवारों से थे | फिर भी एक बात बहुत अच्छी थी कि उन सब के माता – पिता ने उन्हें आई. टी. आई. तक पढ़ाई पूरी करवा दी थी | मनोज प्लम्बर का काम जानता था | पंकज लकड़ी का काम जानता था | देव ने मेसन का काम सीखा था और विजय ने बिजली का काम सीख लिया था | गाँव की जनसँख्या कम होने की वजह से उन्हें उतना काम नहीं मिल पाता था | गाँव की हालत और काम के आभाव के कारण वे खुद से खुश नहीं थे | उन्हें इस बात का भी दुःख था कि हुनर होने के बाद भी वे अपने घर के सदस्यों की कोई आर्थिक मदद नहीं कर पा रहे थे | इस बात का उन्हें बहुत मलाल था | शहर में काम आसानी से नहीं मिलता यही सोच वे गाँव तक ही सीमित हो गए |


सरकार ने तो घोषणा की थी कि पढ़े – लिखे बेरोजगारों को मासिक बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा किन्तु वह भी कागजों तक ही सीमित होकर रह गया था | परिवार वाले भी आये दिन झिड़कियां देते रहते थे | पर वे सब क्या करते | काम मिले तो आय बढ़े | ऐसे ही समय व्यतीत हो रहा था | एक दिन गाँव का ही एक लड़का गोलू जो आपराधिक प्रवृति का था और जिसके बारे में गाँव के लगभग सभी लोग जानते थे | वो आकर इन चारों दोस्तों को “गुमराह” करने की कोशिश करता है और कहता है कि यदि तुम सब मेरी मदद करो तो हम रातों – रात लखपति बन सकते हैं | चारों दोस्त उसे मन करते हैं | गोलू कहता है कि जल्दी नहीं है एक दो दिन बाद फिर मिलूंगा सोचकर बता देना ऐसा सुनहरा मौका दोबारा नहीं मिलता |


गोलू इस चारों दोस्तों के दिमाग में लालच का एक काँटा फंसा गया | वे सोचते “ कभी हाँ कभी ना “ पर आकर बात टिक जाती | कहीं कोई बड़ा अपराध न हो जाए ये सोचकर पीछे हट जाते | दो दिन बाद गोलू चारों दोस्तों को दोबारा अपने साथ जंगल को ओर बहला – फुसलाकर ले जाता है और अपनी योजना बताता है कि हम मिलकर दूसरे गाँव के सेठ करोड़ीमल, जिनके पास हज़ारों बीघा जमीन है उनको लूटेंगे | लूटने की बात सुनकर चारों दोस्त घबरा जाते हैं और इस अपराध में शामिल होने से मना करते हैं | गोलू कहता है केवल एक बार कोशिश कर लेते हैं यदि सफल हुए तो रातों – रात मालामाल | देख लो हम सब एक सप्ताह बाद इस योजना पर अमल करेंगे कोई दिक्कत हो तो तीन दिन बाद बता देना | और भी बहुत से लड़के हैं गाँव में | गोलू चला जाता है | चारों दोस्त बैठकर एक दूसरे से इस अपराध में शामिल न होने का निर्णय लेते हैं और अपने – अपने घर की ओर चल देते हैं |


अगले दिन गाँव में करोड़ीमल सेठ का एक नौकर आता है और चारों दोस्तों का पता पूछता है और चारों के घर जाकर कहता है कि सेठ करोड़ीमल ने तुम सबको अपनी हवेली में बुलाया है | चारों दोस्त घबरा जाते हैं कि कहीं उनकी सेठ को लूटने वाली योजना का पता तो नहीं चल गया | वे सब किसी तरह से खुद को संयमित कर सेठ करोड़ीमल की हवेली पहुँचते हैं | सेठ करोड़ीमल उस सबसे उनका परिचय पूछते हैं और उनके काम के बारे में पूछते हैं और कहते हैं कि मेहनत करके दो वक़्त की रोटी या फिर “ गुमराह ” होकर रातों – रात माल कमाना चाहते हो | चारों दोस्त सेठ के क़दमों में गिर जाते हैं और कहते हैं कि आपको कैसे पता चला लूट की योजना के बारे में | क्योंकि हमने तो ठान लिया था कि गोले के साथ किसी भी अपराध में शामिल नहीं होंगे |


सेठ करोड़ीमल कहते हैं कि मुझे पता है कि तुम सब मेहनत करके हे जीवन में आगे बढ़ना चाहते हो | अब मैं तुम्हें बताता हूँ कि मुझे कैसा पता चला | तो सुनो हुआ यूं कि मैं जंगल के रास्ते गाँव वापस आ रहा था | लघुशंका के लिए मैं झाड़ियों की तरफ गया तो वहां तुम सबको आपस में बात करते पाया | तुम्हारी ईमानदारी ने मुझे तुम्हें “ गुमराह “ होने से बचाने के लिए प्रेरित किया | तुम सब चाहो तो मेरे घर और खेत में आये दिन होने वाले मरम्मत और अन्य कार्य के लिए नौकरी पर आ जाओ | एक और ख़ुशी की बात है कि मैं जल्दी ही इसी गाँव में एक फैक्ट्री लगाने जा रहा हूँ जिसका काम भी तुम सबको ही करना होगा | और आने – जाने के लिए मैं तुम्हें अलग – अलग मोटर साइकिल दिलवा दूंगा जिसकी क़िस्त तुम अपनी तनख्वाह में से दोगे | फुर्सत के समय तुम सब दूसरे गाँवों में भी लोगों के घर का काम कर सकोगे और अपने परिवार के सदस्यों की मदद कर सकोगे |


चारों दोस्त सेठ करोड़ीमल के चरणों में पड़ जाते हैं और उनका धन्यवाद करते हैं कि उन्होंने उन्हें “ गुमराह “ होने से बचा लिया | वे ख़ुशी – ख़ुशी अपने घर की ओर चल देते हैं |

अंधविश्वास – कहानी

अंधविश्वास – कहानी

 सुधीर अपने परिवार के साथ शहर की एक सामान्य सी कोलोनी में रहते थे | परिवार में सुधीर के माता – पिता के अलावा पत्नी वैशाली और बच्चे प्रिया और प्रतीक थे | इस परिवार की ख़ास विशेषता यह है कि वे पुराने रुढ़िवादी विचारों के सच्चे पालक थे | फिर चाहे उन विचारों से उनके परिवार पर किसी भी तरह का नकारात्मक प्रभाव पड़े | बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ होता है , सुबह – सुबह कौवे का घर की छत पर आकर बैठना किसी मेहमान के आगमन का सूचक होता है , गलती से भी या जानबूझकर बिल्ली को मार देना या मर जाने पर सोने की बिल्ली दान करना जैसे कई रूढ़िवादी विचारों से पोषित यह परिवार कोशिश करता रहता है कि इनके साथ कभी कोई अनहोनी न हो | सुधीर के परिवार में बच्चों को छोड़कर सभी पुराने विचारों पर विश्वास करते हैं |

प्रिया अभी बी टेक फाइनल ईयर की छात्रा है दूसरी ओर प्रतीक अभी कक्षा बारहवीं का छात्र है | प्रिया और प्रतीक जब भी घर से परीक्षा के लिए जाते हैं तो उन्हें शक्कर – दही खाकर जाने को कहा जाता है | ताकि कार्य में सफलता हासिल हो | एक बार तो प्रतीक दही – शक्कर की व्यवस्था में देरी होने की वजह से परीक्षा कक्ष में देरी से पहुंचा था और उसे शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था |
एक बार की बात है कि सुधीर को अपने विभाग की ओर से कार्यशाला में भाग लेने के लिए घर से 50 किलोमीटर दूर जाना था | घर से तो सुधीर सही समय पर निकला था किन्तु रास्ते में एक काली बिल्ली ने उसका रास्ता काट दिया | सुधीर वापस मुड़ा और दूसरे रास्ते की खोज करने लगा | जिससे उसे अपनी कार्यशाला में दो घंटे का विलम्ब हो गया और बॉस से झिड़की भी सुनने को मिली | और भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न हो इसके लिए नोटिस भी दिया गया |


इस परिवार में सबसे बड़ी घटना तो अब घटने वाली थी | सुधीर जी के घर में एक बिल्ली का बच्चा मेहमान बनकर आया | बच्चों की जिद थी कि एक बिल्ली का बच्चा पाला जाए | सुधीर की पत्नी वैशाली ने तो बहुत मना किया किन्तु बच्चों की जिद के आगे किसी की एक न चली | घर में एक सफ़ेद बिल्ली का बच्चा घर की रौनक बढ़ाने लगा | उसकी शरारतों ने सबका मन मोह लिया और घर को चूहों से भी निजात मिल गयी |


एक दिन की बात है | सुधीर की पत्नी रसोई घर में शेल्फ पर से कोई डिब्बा उतार रही थी पास में ही बिल्ली का बच्चा भी खेल रहा था | अचानक वो डिब्बा वैशाली के हाथ से छूटकर नीचे खेल रही बिल्ली के बच्चे के सिर पर आ गिरा | सुधीर की पत्नी वैशाली घबरा गयी कि यदि यह बिल्ली का बच्चा मर गया तो सोने की बिल्ली का बच्चा दान करना होगा | यह सोचते ही वह बेहोश हो गयी | आनन – फानन में बिल्ली के बच्चे को जानवरों के अस्पताल ले जाया गया | वहां दो दिन के उपचार के बाद बिल्ली का बच्चा ठीक हो गया किन्तु उसे घर नहीं लाया गया और न ही सुधीर ने अपनी पत्नी को बताया | उससे कहा गया कि अब सोने की बिल्ली दान करने की तैयारी कर लो | वैशाली यह सुन बेहोश होते – होते बची | सभी ने उसे संभाला और सच बता दिया | साथ ही बीती घटनाओं का जिक्र भी किया कि किस तरह रूढ़िवादी विचारों के कारण उन्हें शर्मिंदगी झेलनी पड़ी |


उस दिन की घटना के बाद से सुधीर के परिवार ने अंधविश्वास को त्याग दिया और सादा जीवन जीने का प्रण किया | जीवन में बातों पर उतना ही विश्वास करो जहाँ तक अहं विश्वास की सीमा न लांघे | यदि सीमा लांघी तो फिर विश्वास से अंधविश्वास में बदलते देर नहीं लगती |


अनोखा प्रतिशोध – कहानी

 अनोखा प्रतिशोध – कहानी

मिश्रा जी और यादव जी का परिवार एक ही कॉलोनी में रहते थे और एक ही विभाग में कार्यरत थे | इन दोनों परिवारों के बीच काफी घनिष्ठ सम्बन्ध थे | मिश्रा जी के दो बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी | बेटा रोहित और बेटी मुस्कान | जबकि यादव जी के एक ही बेटा था पंकज | दोनों परिवार मध्यम वर्ग से संबंधित थे इसलिए दोनों परिवारों के बीच सम्बन्ध मधुर थे | एक दूसरे के घर जाना और साथ में सभी त्यौहार मनाना | पंकज और रोहित दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे |
एक दिन की बात है कि अचानक यादव जी के बेटे पंकज का एक्सीडेंट हो जाता है और उसे बचाने के लिए दो बोतल खून की आवश्यकता होती है | शहर के ब्लड बैंक में खून उपलब्ध नहीं होने से यादव जी को अपने बेटे पंकज की चिंता होने लगती है | खून की व्यवस्था न होने के कारण वे मिश्रा जी से निवेदन करते हैं कि वे अपने बेटे रोहित का दो बोतल खून दिलवा दें तो पंकज की जान बच जाए किन्तु मिश्रा जी ऐसा करने से मना कर देते हैं कि पंकज यदि खून देगा तो उसे कमजोरी हो जायेगी और उस कमजोरी को दूर करने में उसे महीनों लग जायेंगे | अब तो यादव जी को लगने लगा कि उनके बेटे पंकज का बचना नामुमकिन है | उनका कलेजा मुंह को आने लगता है | इसी बीच अस्पताल में कोई व्यक्ति उन्हें बताता है कि शहर में एक समाज सेवी संस्था है आप उनके पास जाइए शायद वे आपकी कोई मदद कर सकें | यादव जी अंतिम प्रयास में सफल हो जाते हैं और उस समाज सेवी संस्था की मदद से खून की व्यवस्था हो जाती है और पंकज की जान बच जाती है यादव जी उस संस्था का धन्यवाद करते हैं | यादव जी भी एक मानव होने का धर्म निभाते हुए उस समाज सेवी संस्था को सहायता राशि भेंट करते हैं ताकि जरूरतमंदों की सहायता हो सके |
यादव जी का अब मिश्रा जी और उसके परिवार के प्रति मोहभंग हो जाता है | वे अब मिश्रा जी के साथ कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहते | दूसरी ओर मिश्रा जी भी इस स्थिति में नहीं हैं कि वे यादव जी को मना सकें और अपनी गलती के लिए माफ़ी मांग सकें | वे चाहकर भी अब यादव जी से आँखें नहीं मिला पाते |
खैर दिन गुजरते रहते हैं और इस घटना को सभी भूल चुके होते हैं और सामान्य जीवन जीने लगते हैं | इसी बीच एक दिन मिश्रा जी के बेटे रोहित का एक्सीडेंट हो जाता है | और उसकी जान बचाने के लिए खून की जरूरत होती है | मिश्रा जी चाहकर भी अब यादव जी से मदद मांगने की स्थिति में नहीं थे | वे अपनी ओर से पूरी कोशिश करते हैं कि कहीं से खून की जरूरत पूरी हो जाए | पर थक – हारकर वापस अस्पताल की ओर चल देते हैं इस उम्मीद में कि उनके बेटे रोहित की जान अब केवल और केवल परमात्मा ही बचा सकते हैं | मिश्रा जी जब अस्पताल पहुँचते हैं तो उनकी पत्नी उनसे कहती है कि खून की व्यवस्था हुई कि नहीं | इस सवाल पर मिश्रा जी कोई जवाब नहीं दे पाते और धड़ाम से जमीन पर गिर जाते हैं | तब मिश्रा जी की पत्नी उन्हें बताती है कि आप चिंता न करें हमारा रोहित ठीक है | यह सुनते ही मिश्रा जी की सांस में सांस आती है | वे कहते हैं कि किस पुण्यात्मा ने मेरे बच्चे की जान बचाई है | मैं उससे मिलना चाहता हूँ | पर मिश्रा जी की पत्नी कहती हैं कि जिसने भी हमारे बेटे रोहित की जान बचाई है वे अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते | पर मिश्रा जी जिद पर अड़ जाते हैं कि कुछ भी हो मुझे उस मानवता के पुजारी से मिलना ही है | अंत में अस्पताल के माध्यम से वे पता लगा ही लेते हैं और पता लगते ही स्वयं को गिरी हुई नज़रों से देखने लगते हैं | फिर भी वे यादव जी और उनके बेटे के चरणों में पड़कर माफ़ी मागने लगते हैं कि जब आपको मेरी आवश्यकता थी मैंने आपकी कोई मदद नहीं की | आज आपने मेरे बेटे का जीवन बचाकर मुझ पर और मेरे परिवार पर उपकार किया है | इस पर यादव जी कहते हैं कि सबका अपना – अपना तरीका होता है प्रतिशोध लेने का | मैंने भी अपना प्रतिशोध पूरा कर लिया आपके बेटे की जान बचाकर | मेरा प्रतिशोध लेने का यही तरीका है | यादव जी कहते हैं कि मुझे आपसे कोई गिला – शिकवा नहीं | आपका बेटा रोहित भी मेरे बेटे पंकज की तरह है | मैं उन दोनों में भेद नहीं कर सकता |
दोनों परिवार पुनः एक साथ ख़ुशी – ख़ुशी रहने लगते हैं |

Monday 17 July 2023

सद्विचार

किसी का अपनापन जिन्दगी में 
खुशियों के रंग भर देता है
फूलों सी महक उठती है जिन्दगी
ग़मों से कोसों दूर कर देता है |

क्यूं कर किसी के गम में
शरीक न हों हम
गम किसी एक का नहीं
ग़मों से नाता , सभी का होता है ||

पावन तेरे चरण , पावन तेरी छवि कान्हा - भजन

 पावन तेरे चरण , पावन तेरी छवि कान्हा

आ गया हूँ तेरे चरणों में , अपना बना लो कान्हा

भक्ति रस में डूबकर , निखर जाऊँ मैं
चरणों में मुझे रख लो , अपना शागिर्द बना लो कान्हा

तेरी सूरत तेरी छवि पर , मोहित हो गया हूँ मैं
अपनी भक्ति के रंग में रंग दो , सुदामा समझ के कान्हा

ग्वालनें सभी आशिक हुईं , मोहक छवि पर तेरी
एक बार वंशी बजा दो , ग्वालों के प्यारे कान्हा

आशिकी में तेरी हम हुए , कुछ इस तरह घायल
इक बार तो सबको , दरश दिखा दो कान्हा

जी रहे हैं सभी प्राणी , इक आस में तेरी
कृपा बरसा दो सब पर , नन्द के दुलारे कान्हा

कोई कहे कृष्ण तुझको , कोई कहे कन्हैया
भक्तों के प्यारे सखा तुम , पार लगा दो नैया

खेवनहार हो तुम , प्रजापालक हो सभी के
पार लगा दो जीवन नैया , मोक्ष राह दिखाओ कान्हा

पावन तेरे चरण , पावन तेरी छवि कान्हा
आ गया हूँ तेरे चरणों में , अपना बना लो कान्हा

भक्ति रस में डूबकर , निखर जाऊँ मैं
चरणों में मुझे रख लो , अपना शागिर्द बना लो कान्हा


Saturday 8 July 2023

बस जाओ मेरे मन में

 बस जाओ मेरे मन में , स्वामी होकर हे गिरधारी

बस जाओ मेरे मन में , स्वामी होकर हे गिरधारी
धर्म राह पर ले चल मुझको , हे मुरलीधर हे बनवारी

तुम करुणा के सागर मेरे , बस जाओ मन में त्रिपुरारी
चरण कमल तेरे सब अर्पण , जीवन से तारो बनवारी

निष्ठुर होकर भुला न देना , चरण कमल जाऊं बलिहारी
चरण कमल में ले लो हमको , पुण्य करो जीवन गिरधारी

अभिलाषा बस इतनी मेरी , मुझको दरश दे दो बनवारी
मुश्किल में है नैया मेरी , पार लगा दो हे गिरधारी

हे पावन परमेश्वर मेरे , कर दो मुझको तुम संसारी
रत्नाकर सा ह्रदय हो मेरा , कुछ ऐसा कर दो बनवारी

मैं तेरे चरणों में आकर , हो जाऊं बलिहारी
उपकार तेरा मुझ पर हो इतना , हे मुरलीधर हे गिरधारी

तुझको पाकर जीवन मेरा , खिल जाए हो बनवारी
मुझको जीवन पार लगा दो , हे मुरलीधर हे बनवारी

बस जाओ मेरे मन में , स्वामी होकर हे गिरधारी
धर्म राह पर ले चल मुझको , हे मुरलीधर हे बनवारी

कागज़ की नाव सी, न हो जिन्दगी तेरी

 कागज़ की नाव सी, न हो जिन्दगी तेरी


कागज़ की नाव सी ,न हो जिन्दगी तेरी
मांझी की पतवार सी , हो जिन्दगी तेरी

बंज़र ज़मीं सी ,न हो जिन्दगी तेरी
फूलों की खुशबू की मानिंद ,हो जिन्दगी तेरी

ज़मीं पर यूं ही ,न रहें कदम तेरे
आसमां को छूती ,जिन्दगी हो तेरी

विचारों पर तेरे पाश्चात्य का ,प्रभाव न पड़े
संस्कृति , संस्कारों से, पल्लवित हो जिन्दगी तेरी

किस्सा न हो जाएँ ,सभी प्रयास तेरे
आदर्श मार्ग निर्मित ,हो जिन्दगी तेरी

यूं ही न बीत जाए, जिन्दगी तेरी
दूर सीमा पर देश की ढाल, हो जिन्दगी तेरी

यूं ही सिसक- सिसक कर ,न बीते जिन्दगी तेरी
औरों के ग़मों को ढोती ,हो जिन्दगी तेरी

कागज़ की नाव सी ,न हो जिन्दगी तेरी
मांझी की पतवार सी ,न हो जिन्दगी तेरी

कागज़ की नाव सी ,न हो जिन्दगी तेरी
मांझी की पतवार सी , हो जिन्दगी तेरी

बंज़र ज़मीं सी ,न हो जिन्दगी तेरी
फूलों की खुशबू की मानिंद ,हो जिन्दगी तेरी

फ़ितरत को ज़माने की, ये क्या हो गया है

फ़ितरत को ज़माने की, ये क्या हो गया है


फ़ितरत को ज़माने की, ये क्या हो गया है

भाई अपने भाई से, जुदा हो गया है |

रिश्तों की मर्यादा ने , सीमाएं लांघ दी हैं
इंसानियत का जज़्बा , लहुलुहान हो गया है |

आधुनिकता की अंधी दौड़ में , इंसान गुम हो गया है
सुविधाओं के बवंडर में , मानव कहीं लोप हो गया है |

जीवन अजीब सी दौड़ का , पर्याय हो गया है
धर्म पर राजनीति का , कब्ज़ा हो गया है |

राष्ट्र के प्रति समर्पण , दिखावा हो गया है
राष्ट्र के सपूतों का निरादर , आम हो गया है |

नेताओं की कुटिल चालों से घायल , आमजन हो गया है
झूठ का बोलबाला , सत्य कहीं वीराने में खो गया है |

आँखों में शर्म का , अभाव हो गया है
संस्कार स्वयं के अस्तित्व पर , रो रहा है |

फ़ितरत को ज़माने की, ये क्या हो गया है
भाई अपने भाई से, जुदा हो गया है |

देशप्रेम का गाते हैं वो गीत

 देशप्रेम का गाते हैं वो गीत

(व्यंग्य)

देशप्रेम का गाते हैं वो गीत
केवल पैसे से है उनको प्रीत
देते हैं नारा भाईचारे का
जनता को बना देते हैं बेचारे सा
बड़े  - बड़े वादों में ये मशगूल
जनता को बेवकूफ बनाना इनका शगल
घोटालों से रहा इनका नाता
कोई भी शरीफ व्यक्ति इन्हें नहीं भाता
इनकी चालों का है अजब मायाजाल
कुर्सी पाते ही हो जाते हैं निहाल
इनका अपना कोई धर्म नहीं
भाता इनको पराया धर्म नहीं
राष्ट्रवाद का लगाते हैं ये नारा
देशप्रेम से इनका नहीं कोई नाता
इन्हें रहती है केवल अपनी चिंता
तैयार करते है ये अपने दुश्मनों की चिता
इन्हें अपनी राजनीतिक रोटियाँ सकने से है मतलब
इन्हें जनता की परेशानियों से क्या मतलब
लूटते हैं देश को , जनता को करते हैं गुमराह
हर  - पल , हर – क्षण करते हैं ये गुनाह
ये कैसी राजनीति की माया है
जिसे बेचारा वोटर समझ नहीं पाया है
वोटर जिस दिन कूटिल राजनीति का सत्य समझ जाएगा
अपने वोट से गजब का भूचाल लाएगा
रह जायेगी नेताओं की हर चाल धरी
न रहेंगे नेता और न रहेगी उनकी नेतागिरी
देश में वोटर का परचम लहराएगा
देश विकास की राह पर आ जाएगा
निपट जायेंगे सारे अधूरे काम
दुनिया में होगा हमारे देश का नाम

खिलेंगे फूल राहों में

 खिलेंगे फूल राहों में

खिलेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल
बिछेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल

कौन कहता है सुबह होगी नहीं
हौसलों को तू अपने
आसमां की उड़ान पर लेकर चल

रुकना नहीं है तुझको बीच राह में
मंजिल को अपने जिगर में बसा के चल

खुशबू से महकेगा आँचल
किसी को अपना बना के चल

किस्से जहां में यूं ही एहसास नहीं देते
किसी की राह के कांटे चुरा के चल

बेफिक्री में तू यूं ना जी
किसी के गम अपने जिगर में बसा के चल

तेरा नसीब बुलंदी पाए
दो फूल इंसानियत के खिला के चल

मुझे लोग खुदा का नूर कहें
दो वक़्त की नमाज़ अता कर के चल

खिलेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल

बिछेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल

खुशकिस्मत है कि तू उस परमात्मा की कृति है

 खुशकिस्मत है कि तू उस परमात्मा की कृति है

खुशकिस्मत है कि तू उस परमात्मा की कृति है
खुशकिस्मत है कि तुझ पर उसके करम का साया है

खुशकिस्मत है तू कि तू उसकी राजा से यहाँ आया है
माँ लेगा जो तू उसकी सत्ता को , तुझ पर उसके करम का साया है

बनकर फूल तुझको इस जहां में खिलना है
इस चमन का नूर बनकर तुझे यहाँ संवारना है

राहों को आसान कर तुझे मंजिल पाना है
ये जहां तेरी कर्म राह का ठिकाना है

निर्बाध तू बढ़ता जाए इस जहां में
तुझे ही तो आदर्श की गंगा बहाना है

तुझे पीछे चलना नहीं किसी के
तुझे लोगों को अपने पीछे लाना है

कि मौसमे बहार में पतझड़ भी आता है
तुझे सावन बन पतझड़ पार जाना है

किस्सा नहीं बनना तुझको इस जहां में
खींचनी है आदर्शों की रेखा तुझको

कि कुछ तस्वीरें ऐसी तुझे बनानी हैं
जिनमे केवल जीवन ही जीवन रवानी है

कि गिरते हैं वो मुसाफिर जीवन की राह में
जिनकी आँखों का सपना मंजिलें नहीं होतीं

तू वो रचना है उस खुदा की इस जहां में
जिसे नए – नए आयाम स्थापित करके जाना है

कि तू वो सवार नहीं जो ज़रा सी आँधियों से डर जाए
तू तो वो शै है जिसे तूफ़ान को भी हराना है

मस्त चाल से जो तू बढ़ता जाएगा
आसमां भी तेरी कामयाबी पर शरमायेगा

चाँद सितारे देंगे दुआयें तुझको
तेरे प्रयासों से एक और चाँद धरती पर खिल जाएगा

खुशकिस्मत है कि तू उस परमात्मा की कृति है
खुशकिस्मत है कि तुझ पर उसके करम का साया है

खुशनुमा – खुशनुमा सी लग रही है ज़मीं

 खुशनुमा – खुशनुमा सी लग रही है ज़मीं

खुशनुमा – खुशनुमा सी लग रही है ज़मीं
खुशनुमा – खुशनुमा सा लग रहा है आसमां

चारों तरफ फूल खिलखिलाने लगे हैं
पंक्षी भी मधुर स्वर में गुनगुनाने लगे हैं

खिली – खिली सी लग रही है फिज़ां
आसमां भी मंद – मंद पवन बहाने लगे हैं

पूछते हैं हाल मेरा वो क्यों कर
क्या वो मुझ पर तरस खाने लगे हैं

किनारा कर जो खुश हुए मुझसे
वो आज मुझ पर प्यार क्यों लुटाने लगे हैं

गली में उनकी हमने जाना छोड़ दिया
वो क्यों मेरी गली के चक्कर लगाने लगे हैं

दौलत से कभी हमने मुहब्बत थी ही नहीं
वो आज हम पर अपनी दौलत क्यों लुटाने लगे 

जीने मरने की कसमें खाया करते थे वो
आज वो दूसरों का घर क्यों बसाने लगे हैं 

खुशनुमा – खुशनुमा सी लग रही है ज़मीं
खुशनुमा – खुशनुमा सा लग रहा है आसमां

चारों तरफ फूल खिलखिलाने लगे हैं
पंक्षी भी मधुर स्वर में गुनगुनाने लगे हैं

खुशियों का दौर गया , चाहतों का दौर गया

खुशियों का दौर गया , चाहतों का दौर गया

खुशियों का दौर गया , चाहतों का दौर गया
हम भी हैं नाखुश , अपनेपन का दौर गया

नाइंसाफी का दौर नया , नाउम्मीदी का शोर नया
नाकाबिल चरित्रों का दौर नया , नफरतों का दौर नया

पी रखी है सभी ने दो घूँट , नाफ़रमानी की
नादानी कर रहे सब , कामचोरों का दौर नया

वसंत आने के पहले पतझड़ का मौसम आया
नामुमकिन को मुमकिन कहने का दौर नया

पसंद है जिन्हें दूसरों पर बेइंसाफी का दौर
इन इंसानियत के तलबगारों का दौर नया

नियाज करते हैं उस खुदा से वो “अनिल”
उस खुदा के चाहने वालों का दौर नया

निस्बत थी उस खुदा से उसके चाहनेवालों की
अब क्या कहें इन दौलत के ठेकेदारों का दौर नया

फुर्सत नहीं है उन्हें दो वक़्त इबादत कर लें
नाशुक्रों का आया है कैसा ये दौर नया

खुशियों का दौर गया , चाहतों का दौर गया
हम भी हैं नाखुश , अपनेपन का दौर गया

सत्य से सबका परिचय कराएं आओ कुछ ऐसा करें

सत्य से सबका परिचय कराएं आओ कुछ ऐसा करें

सत्य से सबका परिचय कराएं आओ कुछ ऐसा करें
सिंहासन डोल जाएँ आओ कुछ ऐसा करें

वीरों के लहू का कतरा – कतरा देश काम आए
दिलों में देश प्रेम का ज़ज्बा जगाएं आओ कुछ ऐसा करें

प्रकृति को सुनामी से बचाएं आओ कुछ ऐसा करें
इस धरा को भूकंप से बचाएं आओ कुछ ऐसा करें

आओ निर्माण करें ऊपजाऊ सामाजिक परिदृश्य का
आग्नेयास्त्र से विहीएँ धरा का निर्माण हो आओ कुछ ऐसा करें

आप्राकृतिक कृत्यों से इस धरा को बचाएं आओ कुछ ऐसा करें
आस्तिक चरित्रों का समंदर हो जाए ये समाज आओ कुछ ऐसा करें

मनुष्य इस धरा की अमूल्य निधि हो जाए आओ कुछ ऐसा करें
आदरणीय हो जाएँ सभी चरित्र आओ कुछ ऐसा करें

अनुकरणीय विचारों से सभी हों आमोदित आओ कुछ ऐसा करें
अभिनन्दन हो सभी चरित्रों का आओ कुछ ऐसा करें

अजातशत्रु हो जाएँ सभी इस धरा पर आओ कुछ ऐसा करें
मोक्ष मार्ग प्रस्थित हों सभी आओ कुछ ऐसा करें

सत्य से सबका परिचय कराएं आओ कुछ ऐसा करें
सिंहासन डोल जाएँ आओ कुछ ऐसा करें

कुछ काम करो , कुछ काम करो

 कुछ काम करो , कुछ काम करो

जग में अपना नाम करो
भाग्य भरोसे मत बैठो तुम
कुछ काम करो , कुछ काम करो

आगे बढ़ना नियति तुम्हारी
कर्म राह प्रधान करो तुम
कुछ काम करो , कुछ काम करो
जग में अपना नाम करो

संकट जीवन में जो आए
कभी ना तू उससे घबराए
जीवन को प्रणाम करो तुम
जग में अपना नाम करो तुम

निंदा में तुम यूं ना उलझो
कठोर वचन तुम यूं ना बोलो
सबका तुम सम्मान करो
सत्कर्म मन ध्यान धरो

कुछ काम करो , कुछ काम करो
जग में अपना नाम करो
भाग्य भरोसे मत बैठो तुम

कुछ काम करो , कुछ काम करो

अपने चरणों की धूलि बना लो

अपने चरणों की धूलि बना लो 

अपने चरणों की धूलि बना लो 
हे त्रिपुरारी हे बनवारी 

अभिलाषा पूरी करो मेरी 
चरण कमल जाऊं बलिहारी 

निर्मल , पावन हो मेरी काया 
अहंकार की पड़े ना छाया 

मेरा भाग्य बनाओ बनवारी
हे त्रिपुरारी हे बनवारी 

सलिला सा पावन हो जीवन 
रत्नाकर सा हो मेरा मन

बैरागी सा हो अंतर्मन 
राग भक्ति का जगाओ गिरिधारी 

शुभचिंतक हो जाऊं सबका 
दास बनूँ मैं तेरे दर का 

सूर्य सा तेज भरो हे मुरारी
हे त्रिपुरारी हे बनवारी 

वायु सा पावन मुझे कर दो 
मुझको ज्ञान का वर दो 

हंसवाहिनी कृपा करे बनवारी 
हे त्रिपुरारी हे बनवारी

मुझको अपनी शरण में ले लो हे मनमोहन हे गिरधारी

मुझको अपनी शरण में ले लो हे मनमोहन हे गिरधारी

मुझको अपनी शरण में ले लो ,हे मनमोहन हे गिरधारी
चरण कमल तेरे बलि – बाले जाऊं ,हे मनमोहन हे गिरधारी 

मिथ्या अभिमान से दूर रखो तुम, हे मनमोहन हे गिरधारी 
पाप – पुण्य का भेद बताओ ,हे मनमोहन हे गिरधारी

हाथ जोड़ तेरे मंदिर आऊँ, हे मनमोहन हे गिरधारी
पाऊँ तेरा दरश गिरधारी, हे मनमोहन हे गिरधारी 

पहला ऋतुफल तुझको अर्पित, हे मनमोहन हे गिरधारी 
पाछे सब पाऊँ बनवारी हे, मनमोहन हे गिरधारी 

मनोहर छवि मुझे भाये तुम्हारी ,मुझको दरश दिखाओ गिरिधारी 
मात- पिता की सेवा कर लूं ऐसे भाग्य जगाओ ,बनवारी हे मनमोहन हे गिरधारी 

मोक्ष मार्ग बतलाओ हे प्रभु ,अपने चरणों में लाओ मुरारी 
कोमल वाणी प्यारी मुझको जीवन तृष्णा मिटाओ ,गिरिधारी 

हे मनमोहन हे गिरधारी माया मोह से मुझे बचाओ ,जीवन पार लगाओ बनवारी 
चरण कमल तेरे बलि – बलि जाऊं, हे मनमोहन हे गिरधारी 

मुझको अपनी शरण में ले लो ,हे मनमोहन हे गिरधारी 
चरण कमल तेरे बलि – बाले जाऊं ,हे मनमोहन हे गिरधारी