मजदूर
मैं
एक मजदूर को
कला
का देवता मानता हूँ
जो
समाज के
ठेकेदारों
की
रोजी
– रोटी का
आधार
होता है
उनकी
विलासिता का
विस्तार
होता है
इतिहास
का
पारावार
होता है
कलाओं
का
भण्डार
होता है
ताज
का निखार होता है
चाइना
वाल के
निर्माण
का
मूल
आधार होता है
मजदूर
, मजदूर होता है
उसका
सामाजिक स्थान नहीं होता
वह
केवल
इतिहास
गढ़ता है
सुंदरता
का निर्माण करता है
उसका
स्वयं का
जीवन
सुन्दर नहीं होता
वह
जीता है
शोषणपूर्ण
जीवन
जिसमे
रौशनी का
निशाँ
नहीं होता
वह
केवल मजदूर होता है
केवल
मजदूर
Excellent Gupta Sir
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