अभिलाषा
आकांक्षा
, अभिलाषा
लगती
चारु, मनोहर
पूर्ण
हो कामना , लालसा
हो
मंजुल और रुचिर
सुरसरि
, भागीरथी सी , पावन हो भावनायें
नीरज
, अरविन्द सी , कोमल हो आत्मायें
जीवन
सिंधु , सागर सा विशाल हो
प्रात
कुसुमाकर की , छाँव तले
शाम
यामिनी की , रौशनी मे पाले
अनिल
मे खुशबू घुली हो
हर्ष
सबका , आभूषण बना हो
वाटिका
, उपवन , सुमन से भरे हों
मधुकारों
का यहाँ , हर पाल डेरा हो
नीरद
, अम्बुद बरसें छमाछम
प्रिय
की मुस्कान महके
अचला
कुदरती रौशनी से बसर हो
हर
जीव मे चातुर्य दमके
तम
अपराजेय न हो सके
मनोज
कुटिल चाल न चल सके
दंभ
मानव ह्रदय मे
जगह
न पा सके
आसमां
भी हर्ष का
गहना
पहने
धरा
अमरावती की
मानिंद
महके
हर -पल
हर – क्षण
उत्कर्ष
का आगाज हो
केशव
मुरारी की बांसुरी की
मधुर
तान हो
कुल
देवों का भी
इस
धरा पर सम्मान हो
गुरू
मुक्ति , मोक्ष का
मार्ग
हो सकें
मधु
ऋतुराज का
दामन
न थाम सके
निशा
अतिसुन्दर , अतिपावन
चांदनी
का नूर हो सके
सुरभि
रत्नाकर का आँचल पकड़
धरा
को और रमणीय कर सके
धरा
इन्द्रलोक की
मानिंद
हो जाए
चंडिका
, भवानी , कल्याणी सा स्वरूप
हर
एक नारी मे झलके
कुबेर
का यश
हर
घर मे बरसे
अदभुत
, निराला , अलंकृत
मानव
मन हो
शोभा
, सुंदरता की खुशबू महके
आँगन
– आँगन
रजनी
अगली सुबह का
पैगाम
बन जाए
कांति
दिवाकर की
जीवन
का आधार हो जाए
जीवन
मे कुछ ऐसा हो जाए
आकांक्षा
, अभिलाषा सभी पूर्ण हो जाए
मानव
का कोमल मन
मानवता
की छाँव तले जीवन पाए
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