Saturday, 4 January 2014

अभिलाषा


अभिलाषा
आकांक्षा , अभिलाषा
लगती चारु,  मनोहर
पूर्ण हो कामना , लालसा
हो मंजुल और रुचिर
सुरसरि , भागीरथी सी , पावन हो भावनायें
नीरज , अरविन्द सी , कोमल हो आत्मायें
जीवन सिंधु , सागर सा विशाल हो
प्रात कुसुमाकर की , छाँव तले
शाम यामिनी की , रौशनी मे पाले
अनिल मे खुशबू घुली हो
हर्ष सबका , आभूषण बना हो
वाटिका , उपवन , सुमन से भरे हों
मधुकारों का यहाँ , हर पाल डेरा हो
नीरद , अम्बुद बरसें छमाछम
प्रिय की मुस्कान महके
अचला कुदरती रौशनी से बसर हो
हर जीव मे चातुर्य दमके
तम अपराजेय न हो सके
मनोज कुटिल चाल न चल सके
दंभ मानव ह्रदय मे
जगह न पा सके
आसमां भी हर्ष का
गहना पहने
धरा अमरावती की
मानिंद महके
हर -पल हर – क्षण
उत्कर्ष का आगाज हो
केशव मुरारी की बांसुरी की
मधुर तान हो
कुल देवों का भी
इस धरा पर सम्मान हो
गुरू मुक्ति , मोक्ष का
मार्ग हो सकें
मधु ऋतुराज का
दामन न थाम सके
निशा अतिसुन्दर , अतिपावन
चांदनी का नूर हो सके
सुरभि रत्नाकर का आँचल पकड़
धरा को और रमणीय कर सके
धरा इन्द्रलोक की
मानिंद हो जाए
चंडिका , भवानी , कल्याणी सा स्वरूप
हर एक नारी मे झलके
कुबेर का यश
हर घर मे बरसे
अदभुत , निराला , अलंकृत
मानव मन हो
शोभा , सुंदरता की खुशबू महके

आँगन – आँगन
रजनी अगली सुबह का
पैगाम बन जाए
कांति दिवाकर की
जीवन का आधार हो जाए
जीवन मे कुछ ऐसा हो जाए
आकांक्षा , अभिलाषा सभी पूर्ण हो जाए
मानव का कोमल मन
मानवता की छाँव तले जीवन पाए

No comments:

Post a Comment