यह कैसी
विडंबना
यह कैसी
विडंबना है
आज पंक्षी
डाल पर
दिखते नहीं हैं
कोयाल की
कूक
सुनाई
देती नहीं है
यह कैसी
विडंबना है
मोर का
नृत्य तो दूर
उसके
दर्शन भी
दुर्लभ हो
गए हैं
यह कैसी
विडंबना है
आज
पक्षियों के झुण्ड का
गुलदस्ता
नज़र आता नहीं है
यह कैसी
विडंबना है
आज नदियों
का कल – कल
नाद अपनी
मधुरिम तान
कानों को
सुनाता नहीं है
यह कैसी
विडंबना है
गलियों
में बच्चों का
लुका –
छिपी का खेल
दिखता
नहीं है
वो भंवरों
का गुंजन
अब सुनने
में आता नहीं है
यह कैसी
विडंबना है
अब
गलियारों में
बच्चों के
वो बचपन वाले खेल
अब दिखते
नहीं हैं
आज की
युवा पीढ़ी को
समाज सेवा
का पुण्य कार्य
भाता नहीं
है
यह कैसी
विडंबना है
फैशन टी
वी , बिग बॉस से
लोगों का
नाता जुड़ने लगा है
मंदिरों
में अब भीड़ कम
होने लगी
है
यह कैसी
विडंबना है
होड़ सी
लगने लगी है
नैतिकता
को पीछे छोड़
आगे बढ़ने
की
सुसंस्कारों
से
अब नाता
रास आता नहीं है
यह कैसी
विडंबना है
रिश्तों
में अब मिठास
दिखती
नहीं है
अब सब कुछ
फॉर्मल – फॉर्मल
सा नज़र
आने लगा है
भावना
शब्द ने
लोगों से नाता
तोड़ लिया है
अब मानव
सा मानव
नज़र आता
नहीं है
यह कैसी
विडंबना है
आधुनिकता
, संस्कृति ,
संस्कारों
पर
हावी होने
लगी है
सुविचार
पथ भृष्ट होने लगे हैं
किनारा अब
नज़र आता नहीं है
यह कैसी
विडंबना है
कहाँ जाकर
रुकेगा
ये
आतंकवाद का सैलाब
अधर्म के
नां पर
लोगों के
दिलों में पर रहा
उबाल ,
क्षेत्रीयता , जातिवाद
के नाम पर
देश का बटवारा
कहां होगा
थाव्राह
रास्ते
कहाँ ले जायेंगे
पता नहीं
है , अंत कहाँ है
कोई सिरा
सूझता नहीं है
यह कैसी
विडंबना है
धार्मिकता
, सामाजिकता ,
मानवता ,
संस्कृति, संस्कार ,
सभ्यता ,
उदारता ,
मानव के
क्रूर कर्मों का
निवाला बन
चुके हैं
कहाँ होगा
अंत
कहाँ
रुकेंगे हम
कहाँ
लेंगे विश्राम
कब पावन
होगा ये धाम
शायद किसी
को
समझ आता
नहीं है
यह कैसी
विडंबना है
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