अभिशप्त
समाज
अभिशप्त
समाज में रहने का
गम है
मुझको
बिखरते
समाज में रहने का
गम है
मुझको
जी रहे
कुछ तनहा – तनहा
कर रहे
कुछ पीछा जीवन का
कुछ करते
प्रयास टूटते साहस को बटोरने का
कुछ कर
रहे प्रयास बचा नैतिकता को
कुछ गिरते
कुछ संभलते फिर उठते
और करते
आगे बढ़ने का प्रयास
जीवन एक
कठिन नाव की तरह
पानी के
बहाव पर निर्भर
लहरों का
उफान अस्थिर जिन्दगी का कारण बन
हममे से
कुछ सोचते आखिर किनारा किधर
किस अंत
की ओर बढ़ रहे हैं हम
अभिलाषा
ने जीवन से बाँध रखा है हमको
इच्छाओं
के दरिया में गोते लगा रहे हैं हम
कामनाओं
पर चलता नहीं जोर हमारा
अंधे
मोड़ों से बचते , टकराते , सँभालते
अंतहीन ,
लक्ष्यहीन दिशा की ओर बढ़ रहे हैं हम
अभी भी
वक़्त है संभल सकें जो हम
चलें उस
गगन की ओर जहां सत्य पलता है
चलें उस
राह पर जहां सत्कर्म का निवास हो
उस ओर
बढें चरण जहां धर्म का आवास हो
पलती हो
जिन्दगी , प्यार , विश्वास और
अर्थपूर्ण
समाज जहां कोई अभिशप्त न हो
जहां कोई
अभिशप्त न हो
जहां कोई
अभिशप्त न हो
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