Thursday 23 January 2014

मेरा मन इतना विव्हल क्यों


                              मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
टूटती सब आशायें
बिखरती सब कोमल भावनायें
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
क्यों हुए पाषाण से मन
क्यों लुप्त हईं शुभकामनायें
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
टूटता संयम विलासिता से बंधन
बढ़ रहा व्यभिचार , फैल रहा अलगाववाद
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
असहाय से सब जी रहे हो रहा चरित्र का पतन
अभावग्रस्त हैं मन अवसाद में है तन
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
समाधिस्त हुई सब मोक्ष कामनायें
निराश हुई सब शुभकामनायें
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
अभिनन्दन आदर्शों का होता नहीं है
आधुनिकता प्रेरणा स्त्रोत बन उभरी
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
सत्यम , शिवम् , सुन्दरम अब भाता नहीं है
संस्कारों व संस्कृति पर विचार आत नहीं है
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
प्रजातंत्र अब बन गया है मज़ाक
पंचशील अब किसी को सुहाता नहीं है
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
निर्जीव सी जी रही सब आत्मायें
अपमान अब किसी से सहा जाता नहीं है
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  

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