Monday, 20 January 2014

कदम डगमगा रहे हैं तेरे क्यों?


कदम डगमगा रहे हैं तेरे क्यों?
कदम डगमगा रहे हैं तेरे क्यों ?
रास्ता तुझे सूझता
नहीं है क्यों ?
पड़ाव का तुझे
बोध नहीं है क्यों ?
मंजिल का ज्ञान
तुझे नहीं है क्यों ?
ये असंतुलित कदम,
ये मंजिल से भटकाव
किसी नासमझपूर्ण प्रयास
का परिणाम है या फिर
अतिमहत्वाकांक्षी भावना
का संकेत देता
असफल प्रयास के दौर से
गुजरते तेरे कदम
ये एहसास कराते हुए
कि शायद राह में
कोई सहारा ,
कोई पथ प्रदर्शक
नसीब नहीं हो सका
मैं समझ सकता हूँ
तुम्हारी व्यथा
कोशिश हो
कुछ इस तरह कि
मंजिल आसां हो जाए
कदम कुछ
इस तरह बढें कि
रास्ते की कठिनाइयां
स्वयं ही लुप्त हो जायें
कुछ आदर्श स्थापित हो जायें
राह मिले औरों को
रोशनी दे सकें सबको
खिला सकें फूल खुशियों के
सबके लिए
पथ प्रदर्शक हो जायें
खिलें स्वयं भी रोशन हों
स्वयं भी औरों को
जीवन दे जायें
औरों को जीवन दे जायें

No comments:

Post a Comment