मेरा मन इतना विव्हल क्यों
मेरा मन इतना विव्हल क्यों
टूटती सब आशायें
बिखरती सब कोमल भावनायें
मेरा मन इतना विव्हल क्यों
क्यों हुए पाषाण से मन
क्यों लुप्त हईं शुभकामनायें
मेरा मन इतना विव्हल क्यों
टूटता संयम विलासिता से बंधन
बढ़ रहा व्यभिचार , फैल रहा अलगाववाद
मेरा मन इतना विव्हल क्यों
असहाय से सब जी रहे हो रहा चरित्र का पतन
अभावग्रस्त हैं मन अवसाद में है तन
मेरा मन इतना विव्हल क्यों
समाधिस्त हुई सब मोक्ष कामनायें
निराश हुई सब शुभकामनायें
मेरा मन इतना विव्हल क्यों
अभिनन्दन आदर्शों का होता नहीं है
आधुनिकता प्रेरणा स्त्रोत बन उभरी
मेरा मन इतना विव्हल क्यों
सत्यम , शिवम् , सुन्दरम अब भाता नहीं है
संस्कारों व संस्कृति पर विचार आत नहीं है
मेरा मन इतना विव्हल क्यों
प्रजातंत्र अब बन गया है मज़ाक
पंचशील अब किसी को सुहाता नहीं है
मेरा मन इतना विव्हल क्यों
निर्जीव सी जी रही सब आत्मायें
अपमान अब किसी से सहा जाता नहीं है
मेरा मन इतना विव्हल क्यों