Sunday 27 September 2015

बार में लगने लगे हैं मेले - क्षणिकायें

बार में लगने लगे हैं मेले
'डिस्को थिरकने लगे हैं
हर शहर , हर जगह
जाने कहाँ जाकर रुकेगा, यह सफ़र



बारिश की बूंदों से मिलती है राहत
तन को, मन को
उसी तरह
जिसे तरह जल की खोज में
पंक्षी विचरते हैं दो बूंदों के आचमन के लिए



मालूम नहीं इस धरा पर
क्या अच्छा किया मैंने
इसी  कोशिश में कर्मपूर्ण जीवन
जिया जा रहा हूँ मैं

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