धर्मपरायण
धर्म को मानना और धर्मपरायण होना दो अलग-अलग
विचार हैं ।थधर्म के प्रति श्रद्धा, मोह एवं आस्था, धार्मिक
संस्कारों का अक्षरशः: पालन करना, मानवीय एवं नैतिक
मूल्यों के साथ मानवीय संवेदनाओं को जीवंत रखना, अपने
ईष्ट के प्रति पूर्ण श्रद्धा और आस्था, धार्मिक अनुष्ठानों के प्रति
पूर्ण समर्पण | ये सब गुण एक धर्मपरायण चरित्र में पाए जाते
हैं| एक धर्मपरायण चरित्र स्वयं के धर्म, संस्कृति व संस्कारों
का सम्मान तो करता ही है साथ ही उसके मन के कोने में
अन्य सभी धर्मो के प्रति भी श्रद्धा व सम्मान की भावना होती है
| ये चरित्र समाज व राष्ट्र की धरोहर होते हैं और साम्प्रदायिक
एकता व सद्भावना को स्थिरता प्रदान करते हैं | ये संस्कृति व
संस्कारों के सर्वश्रेष्ठ रक्षक माने जाते हैं |
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