Wednesday, 16 September 2015

आज को क्या हो गया

आज को क्या हो गया

आज को क्या हो गया
कल सा क्यों नहीं रहा
विसंगतियां क्यों पैदा हो गयीं
सामंजस्य न रहा

मानव से मानव का पतन
सदाचार न रहा
हम एक न रहे
एकता का बहाव न रहा

अखंडता को खतरा लग रहा
भाईचारा न रहा
फूल खिले हैं गुलशन – गुलशन
खुशबू से नाता न रहा

रखते हैं सब धर्म जेब में
धर्माचार न रहा
वासना ने जड़ें फैलायीं
सुविचार न रहा

लग रहे धर्म के मेले
धर्म से लगाव न रहा
भागती जिन्दगी के मालिक
मौत पर एतबार न रहा

कल की चाह में भागता वह
कल का एतबार न रहा
पतवार खींच चल रहे सब
बहाव का भरोसा न रहा

मैंने किया जिस पर भरोसा
उसे अपने पर भरोसा न रहा
काल करे को आज कर
प्रलय पर भरोसा न रहा

कुछ कर तू मानव के हित में
जिन्दगी का भरोसा न रहा
विसंगतियां क्यों पैदा हो गयीं
सामंजस्य न रहा






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