१.
निंदा करने वाले व्यक्ति का स्वयं का स्वयं के अभिनंदन
से कोई लेना देना नहीं होता | वह तो केवल दूसरों के
अभिनंदन व सम्मान से स्वयं को बोझिल्र किये रहता है
और निंदा स्तुति को अपनी आवश्यक दिनचर्या मानता है
।
२.
आनंद वह जो जन कल्याण से प्राप्त होता है | इसे
स्वयं के सुख या दुख से कोई सरोकार नहीं होता |
मानवता की सेवा से अंतर्मन को पुष्पित एवं
पत्लवित करना इसका लक्ष्य होता है |
3.
आलस्य मनुष्य को निकम्मा कर देता है |
आलसी मनुष्य स्वयं के लिए तो बोझ होता ही है
साथ ही वह समाज व देश के लिए कैंसर की तरह होता है |
4.
नायक बनना उतना कठिन नहीं है जितना उसकी
गरिमा को बनाए रखना | नायक को स्वयं को आदर्शों
एवं नियमों से खुद को बांध लेना चाहिए| ताकि
'किसी भी प्रकार के प्रभाव से वह बच सके | और
अपनी जिम्मेदारी का पूर्ण निष्ठा से निर्वहन कर सके |
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