Sunday 27 September 2015

पूछ लो तुम इस ज़मीं से, पूछ लो तुम आसमाँ से

पूछ लो तुम इस ज़मीं से

पूछ लो तुम इस ज़मीं से , पूछ लो तुम 

 आसमाँ से

क्या जलाई ज्योत तुमने , क्या निभाया फ़र्ज़ 

तुमने

मातु धरा के भरोसे का , क़त्ल क्या किया 

न तुमने

पूछ लो तुम इस ज़मीं से , पूछ लो तुम 

 आसमाँ से

संकल्प लिया क्या तुमने , इस धरा की 

पावनता का

संस्कारों को तुमने सींचा क्या, पुण्य किया 

संस्कृति को तुमने

पूछ लो तुम इस ज़मीं से , पूछ लो तुम 

 आसमाँ से

सत्य मार्ग को छोड़ा तुमने, आधुकिनता से 

खुद को जोड़ा तुमने

चरण तेरे मंदिर न पड़ते , मदिरालय से 

नाता जोड़ा तुमने

पूछ लो तुम इस ज़मीं से , पूछ लो तुम  

आसमाँ से

संयम से तुम काम न लेते , निर्बल को 

सताया तुमने

शोभनीय न हुए काम तुम्हारे, अविवेक को 

अपनाया तुमने

पूछ लो तुम इस ज़मीं से , पूछ लो तुम  

आसमाँ से

सामाजिकता अब रही न तुममे , दोषों को 

अपनाया तुमने

प्रभु पर रहा न तुमको भरोसा , नास्तिकता 

को चाहा तुमने

पूछ लो तुम इस ज़मीं से , पूछ लो तुम  

आसमाँ से

उत्कर्ष राह तुमको न भाई , अपयश कर्म 

किये सब तुमने

ऋणी हो गए इस धरती के, प्रकृति को न 

अपनाया तुमने

पूछ लो तुम इस ज़मीं से , पूछ लो तुम  

आसमाँ से

आधीन हुए तुम विलासिता के, संस्कार न 

अपनाए तुमने

आध्यात्म से तुमको क्या लेना, जीवन को 

नरक बनाया तुमने

पूछ लो तुम इस ज़मीं से , पूछ लो तुम 

 आसमाँ से

अन्धकार के तुम हो साथी, आदर्शों को न 

अपनाया तुमने

चमत्कार को नमस्कार कर, अंधविश्वास 

बढ़ाया तुमने

पूछ लो तुम इस ज़मीं से , पूछ लो तुम 

 आसमाँ से

अभिमानी हो विचर रहे तुम, आदर किसी का 

किया न तुमने

उत्कृष्ट कर्म कभी हुए न तेरे, सदबुद्धि को न 

अपनाया तुमने

पूछ लो तुम इस ज़मीं से , पूछ लो तुम  

आसमाँ से

अब तो जागो हे मानव तुम, सत्कर्म राह 

अपनाओ

पुण्य करो अपने जीवन को, मोक्ष राह को 

पाओ





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