१.
लक्ष्य भ्रष्ट मनुष्य को मंजिल कभी भी
नसीब नहीं होती | वह दिशाहीन व्यक्ति
की तरह यहाँ से वहां भटकता रहता है |
उसके द्वारा किये जाने वाले प्रयासों का
कोई सुअन्त नहीं होता |वह स्वयं तो
दिशाहीन होता ही है साथ ही जीवन भर
किसी दूसरे व्यक्ति को राह नहीं दिखा पाता
२.
कर्तव्य विमुख चरित्र शून्य से शून्यतम
की ओर प्रस्थान करते हैं | इनका न तो
कोई लक्ष्य होता है न ही कोई दिशा | ये
दिशाहीन व्यक्ति की भांति अपने कर्तव्यों
से पीछा छुड़ाने में लगे रहते हैं | ये चरित्र
कभी भी सफल नहीं होते | इनका समाज
में कोई विशेष स्थान नहीं होता | ये
दुश्चरित्र की भांति विचरते रहते हैं |
3.
बंधनमुक्त जीवन व्यक्ति को सुन्दर से
सुन्दरतम , मधुए से मधुरतम, पवित्र से
पवित्रतम एवं महान से महानतम की ओर
प्रस्थित करता है | इसकी छाया मात्र से
हज़ारों लोगों का जीवन मंगलमय हो जाता है |
ये सत्मार्ग पर चलने की प्रेरणा का स्रोत होते हैं
| ये मानव को सही दिशा दिखाते हैं साथ ही.
उन्हें अपने मोक्ष की दिशा का ज्ञान कराते हैं |
ये संस्कारों एवं संस्कृति को पुष्पित करने का
कार्य करते हैं | ये मानव और परमात्मा के
बीच की विशेष कड़ी होते हैं |
4.
उपकार करना एक ऐसी मानवीय प्रक्रिया है
जिसमे उपकार करने वाले को उपकार करने
के पश्चात भूल जाना ही बेहतर होता है | यदि
ऐसा नहीं होता तो समझना चाहिए कि
उपकार के बदले वापस उपकार की आकांक्षा
मन के कोने में घर बनाए हुए है | और बदले
में उपकार न प्राप्त होने पर उपकार करने की
ड प्रवृत्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है अर्थात
“नेकी कर दरिया में डाल “ की कहावत को
आधार बनाकर ही उपकार करना चाहिए |
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