चार दिन की जिन्दगी को यूं ही न
बेकार कर
अपनी कोशिशों से कुछ फूल
खिलाकर जाओ
चार दिन की जिन्दगी को
यूं ही न करें नापाक
चलो इंसानों की करें खिदमत
कुछ पल करें खुदा की इबादत
चार दिन की जिन्दगी को
यूं ही न बिसार तू
उत्कर्ष की राह वर
अभिनन्दन की राह वर
चार दिन की जिन्दगी
यूं ही न जाए बीत
आओ मिल करें कुछ प्रयोजन
जीवन के उत्कर्ष का
चार दिन की जिन्दगी को
यूं ही न बिसरायें हम
बन कर खिलें तारे ज़र्मी पर
यूं ही न बिखर जाएँ हम
चार दिन की जिन्दगी
यूं ही न हो जाए अभागी
चलो लक गधा गंगा को पावन करें हम
संस्कृति और संस्कारों का प्रचार करें हम
चार दिन की जिन्दगी
उपहास का पर्याय न हो जाए
अहंकार का त्याग कर
स्वाभिमान को माथे धरें हम
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