हँसना भूल गया है मानव
हंसना भूल गया है मानव
इस दुखी संसार में
जिन्दगी की उलझन में उलझा, डूब
रहा
मझधार में
बेरोजगारी का तमगा, लटके
युवा गलहार
में
हँसना भूल गया है मानव
अपराधों की हो रही पौं बारह
रक्षकों के दरबार में
हँसना भूल गया है मानव
महत्वाकांक्षी होना , पड़
रहा है भारी
भटक रही है धन के लोभ में
दुनिया इस
संसार में
हँसना भूल गया है मानव
कवि है भूल गया कविता ,समय
के इस
बहाव में
वक़्त काटता हर मानव
जीवन के गलियार में
हँसना भूल गया है मानव
पाप घटें, पुण्य बढ़ें
तब , मानवता सर
चढ़ बोले जब
संस्कार हो जाएँ पावन , जब
सब हों
संस्कृति के अवतार में
हँसना भूल गया है मानव
जब रोतों को हंसाये कोई ,
जब गिरतों
को उठाये कोई
तब हंसना सीखेगा मानव , इस
जीवन
के गलियार में
हँसना भूल गया है मानव
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