Sunday, 27 September 2015

जी रहा हूँ वीरानियों में

जी रहा हूँ मैं
वीरानियों मैं
कुछ इस विचार से
बदलेंगे सितारे मेरी किस्मत के
बस अब, अभी , अगले ही पल



जिन्दगी की राह के काँटों ने
मुझे पत्थरों पर चलना सिखा दिया
इसी उम्मीद से जी रहा हूँ )
कभी तो फूलों पर सैर का मौका मिलेगा.



संकल्पों की राह भी 
बड़ी बेमानी होती है
अभी किया , कि अगले पत्र छोड़ा
योग का ले तू. आसरा
संकल्प को तू. प्राण दे



माना कि दुःख के राही
सब, मगर
बाहों का दे सहारा
दूर कर तू पीर सबकी
अपनी जिन्दगी को नई राह दे




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