Friday, 25 September 2015

बिखरते नहीं वे मुश्किलों की आहट से

बिखरते नहीं वे मुश्किलों की आहट से

बिखरते नहीं वे ,मुश्किलों की आहट से
चलते रहते हैं उस पथ पर , जो मंजिल नसीब करे

टूटते नहीं वे ,तूफानों की आहट से
चलते रहते हैं उस पथ पर , जो किनारा नसीब करे

पार कर जाते हैं वे , आग का दरिया
तप कर सोना हुए हैं वे, संयम की राह पर चलकर

यूं ही नहीं  बिखर जाते वे, आँधियों की आहट से
संभाला है उन्होंने स्वयं को , साहस की राह पर चलकर

डरते हैं हैं वे, परिस्थितियों के प्रतिकूल होने पर
बड़े हुए हैं वो ,जिन्दगी की मुश्किल भरी राहों पर चलकर

बिखरते नहीं उनके आदर्श, आधुनिक विचारों की आहट से
संजोया है उन्होंने अपने आदर्शों को, मरूभूमि में तपकर

यूं ही नहीं उजड़ जाते उनके संस्कार, एक आंधी की हवाओं से
परिपक्वता हासिल की है उनके संस्कारों ने, स्वयं को संयमित कर

नैतिकता के पथ से ,यूं ही नहीं हो जाते परे
पुष्पित हुए हैं मानवीय विचारों की धरा पर स्वयं को सिंचित कर

डिगते नहीं उनके कदम, अनुचित की आशंका के डर से
यूं ही नहीं धैर्य अर्जित किया है उन्होंने, स्वयं को उत्कर्ष की राह पर चलकर

उत्कर्ष ही एक मात्र पथ है , उनके जीवन के चरम का
अनुशासित , संयमित, एवं नियंत्रित जीवन से परिपूर्ण, ही उत्कर्ष की राह चलते हैं ऐसे चरित्र    धरा पर




No comments:

Post a Comment