पूछ लो तुम इस ज़मीं से
पूछ लो तुम इस ज़मीं से ,
पूछ लो तुम
आसमाँ से
क्या जलाई ज्योत तुमने ,
क्या निभाया फ़र्ज़
तुमने
मातु धरा के भरोसे का ,
क़त्ल क्या किया
न तुमने
पूछ लो तुम इस ज़मीं से ,
पूछ लो तुम
आसमाँ से
संकल्प लिया क्या तुमने ,
इस धरा की
पावनता का
संस्कारों को तुमने सींचा
क्या, पुण्य किया
संस्कृति को तुमने
पूछ लो तुम इस ज़मीं से ,
पूछ लो तुम
आसमाँ से
सत्य मार्ग को छोड़ा तुमने,
आधुकिनता से
खुद को जोड़ा तुमने
चरण तेरे मंदिर न पड़ते ,
मदिरालय से
नाता जोड़ा तुमने
पूछ लो तुम इस ज़मीं से ,
पूछ लो तुम
आसमाँ से
संयम से तुम काम न लेते ,
निर्बल को
सताया तुमने
शोभनीय न हुए काम तुम्हारे,
अविवेक को
अपनाया तुमने
पूछ लो तुम इस ज़मीं से ,
पूछ लो तुम
आसमाँ से
सामाजिकता अब रही न तुममे ,
दोषों को
अपनाया तुमने
प्रभु पर रहा न तुमको भरोसा
, नास्तिकता
को चाहा तुमने
पूछ लो तुम इस ज़मीं से ,
पूछ लो तुम
आसमाँ से
उत्कर्ष राह तुमको न भाई ,
अपयश कर्म
किये सब तुमने
ऋणी हो गए इस धरती के,
प्रकृति को न
अपनाया तुमने
पूछ लो तुम इस ज़मीं से ,
पूछ लो तुम
आसमाँ से
आधीन हुए तुम विलासिता के,
संस्कार न
अपनाए तुमने
आध्यात्म से तुमको क्या
लेना, जीवन को
नरक बनाया तुमने
पूछ लो तुम इस ज़मीं से ,
पूछ लो तुम
आसमाँ से
अन्धकार के तुम हो साथी,
आदर्शों को न
अपनाया तुमने
चमत्कार को नमस्कार कर,
अंधविश्वास
बढ़ाया तुमने
पूछ लो तुम इस ज़मीं से ,
पूछ लो तुम
आसमाँ से
अभिमानी हो विचर रहे तुम, आदर
किसी का
किया न तुमने
उत्कृष्ट कर्म कभी हुए न
तेरे, सदबुद्धि को न
अपनाया तुमने
पूछ लो तुम इस ज़मीं से ,
पूछ लो तुम
आसमाँ से
अब तो जागो हे मानव तुम,
सत्कर्म राह
अपनाओ
पुण्य करो अपने जीवन को,
मोक्ष राह को
पाओ