Sunday, 8 February 2015

फाका किये निभाए चले जा रहे हैं वो

फाका किये निभाए चले जा रहे हैं वो

फाका किये निभाये चले जा रहे हैं वो
दुनिया को राह दिखाए चले जा रहे हैं वो

खुद की परवाह नहीं है उनको
इंसानियत के गीत गाये चले जा रहे हैं वो

पशेमान न हों कुछ ऐसा किये जा रहे हैं वो
परवरिश जरूरतमंदों की किये जा रहे हैं वो

फ़ाज़िल खुदा की निगाह में हुए जा रहे हैं वो
पैगाम मकसदे – इंसानियत दिए जा रहे हैं वो

फ़साना न हो जाए जिन्दगी उस खुदा की निगाह में
बदनसीबों के सपनों को संजोये जा रहे हैं वो

मकसदे इंसानियत को बना लिया उन्होंने जीने का सबब
दूसरों की आग में खुद को जलाये जा रहे हैं वो

अदालत में उस खुदा की , ये जिन्दगी रुसवा न हो
अज़ाब से लोगों को निजात दिलाये जा रहे हैं वो

बेगैरत न समझ ले ज़माना उनको
सभी से वफ़ा निभाये जा रहे हैं वो

अफ़साना न हो जाये ये जिन्दगी
अश्फाक बन सबसे निभाए जा रहे वो

उन्हें अपने अरमानों की फ़िक्र नहीं है
दूसरों के सपनों को सजाये जा रहे हैं वो

अलीम है उसको , खुद पर है यकीन
यूं ही नहीं खुदा की राह पर चले जा रहे हैं वो

खुदा की कारसाजी पर उनको है भरोसा

नेकी का थामे दामन , चले जा रहे हैं वो 

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