Friday, 6 February 2015

जी रहे हैं सब इस शहर में बेज़ार से

जी रहे हैं सब इस शहर में बेज़ार से

जी रहे हैं सब इस शहर में बेज़ार से
कोई तो हो ऐसा अपना कहें जिसे

ढूंढता फिर रहा हूँ तुझसा कोई जानशीं
कोई तो हो ऐसा तुझसा कहें जिसे

हसरत है दिल में दीदार उस खुदा का हो
ऐसा शख्स कहाँ से लाऊँ खुदा कहें जिसे

गरीबी में तंगे हाल जी रहे हैं सब
ऐसा कहाँ से पाऊँ खुदा का बन्दा कहें जिसे

हर शख्स में कोई न कोई कमी तो है
ऐसा तो कोई हो कि सब अच्छा कहें जिसे

पालते नहीं हैं खौफ उस खुदा का वो
ऐसा कोई शख्स दिखा दो खुदा का जानशीं कहें जिसे
पालने में रो रहा है वो बालक फूट- फूटकर
कोई तो हो ऐसा हम माँ कहें जिसे

वफ़ा की राह इतनी भी आसान नहीं है
कोई तो ऐसा हो मुहब्बत का खुदा कहें जिसे

देखते हैं कई मंज़र हम रोज़ चौराहों पर
ऐसा भी कोई हो इंसानियत का खुदा कहें जिसे


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