Friday, 6 February 2015

दिले दर्द बांटने वालों का टोटा है शहर में

दिले दर्द बांटने वालों का टोटा है शहर में

दिले दर्द बांटने वालों का टोटा है शहर में
हम दिले दर्द की दास्ताँ , किसी को सुनाएँ क्यूं

हम जानते हैं उनकी गली में पसरा है बेगैरतों का हुजूम
हम बेगैरत नहीं हैं उनकी गली में ही जाएँ क्यूं

नाम नहीं , शोहरत नहीं , रहने को आशियाँ भी नहीं
ऐसे हालात में अपना रोना किसी को सुनाएँ क्यूं

बंद कर रखे हैं सभी दरवाजे उस खुदा ने मेरे लिए
फिर दो वक़्त की नमाज़ उसके नाम से गुनगुनाएं क्यूं

फरेबियों के फ़रेब से पटी पड़ी है ये दुनिया
हम अपनी तरक्की किसी को बताएं क्यूं

हाथ जब आये नहीं एक भी मोती
हम ऐसे सागर के नज़दीक ही जाएँ क्यूं

भलाई का सिला बुराई होने लगा है आज
ऎसी दुनिया में नेकी से रिश्ता बनाएं क्यूं

पाक – साफ़ दिलों से महरूम हो रही है ये ज़मीं
ऐसे नापाक लोगों से रिश्ता बनाएं क्यूं

आस्तीन के सांप साबित हो रहे हैं लोग

ऐसे में किसी अजनबी को अपना बनाएं क्यूं 

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