वो दिल ही क्या ,जिसमे प्यार न हो
वो दिल ही क्या ,जिसमे प्यार न हो
वो गुलशन ही क्या ,जिसमे बहार न हो
बिछाए बैठे हैं राहों में ,दिल को अपने
वो अश्क ही क्या ,जिसमे कोई बेकरार न हो
वो इश्क ही क्या ,जिसमे एतबार न हो
वो इश्के – जूनून ही क्या ,जिसमे इंतज़ार न हो
तमाम कोशिशें हो रहीं ,नाकाम
“ अनिल “
वो रात क्या गुजरे ,जिसमे उसका नाम न हो
तमाम कोशिशें मेरी ,मुकम्मल न हुईं
वो आये पर उनसे ,मुलाक़ात न हुई
तसव्वुर में ही ,इंतज़ार किये जा रहा हूँ मैं
उनसे इश्क हुआ ,पर उनसे बात न हुई
मुझे रुला के वो भी ,हंस न पाए
नज़रें चुरा के वो भी ,मुस्कुरा न पाये
मेरे इश्क में ,वो कशिश थी
मेरे बगैर वो दो पल भी ,रह न पाए
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