Wednesday 4 February 2015

मेरी कुछ क्षणिकायें

बहारों को न तरसो तुम ये दुआ है मेरी
सावन को न तरसो तुम ये दुआ है मेरी
खिलें तेरी अभी रातें ये दुआ है मेरी
हुस्न पर तेरे हो उस खुदा का करम ये दुआ है मेरी

कागज़ और कलम से रिश्ता जो जोड़ लोगे , विचार अमर हो जायेंगे
इबादत और इंसानियत से रिश्ता जो जोड़ लोगे , नाम अमर हो जायेंगे
खिदमत जो खुदा के बन्दे की जो की , खुदा के करीब हो जायेंगे
गुमराह को जो राह दिखाई , खुदा की आँखों के नूर हो जायेंगे

ख्वाहिशों के ममंदर में जो डूबोगे तो भटक जाओगे
आधनिक विचारों का सहारा जो लोगे , तो भंवर में फंस जाओगे
विलासिताओं को जो मकसदे जिन्दगी बनाया तो डूब जाओगे
खिलाफत की जू उस खुदा की तो कहीं के न रह पाओगे

ज़मीर को अपने जिल्लत से बचा के रख
जन्नत की आरज़ू हो तो खुद को सजा के रख
जाहिलों को छोड़ , खुदा से दोस्ती बना के रख
जिगर से पाक – साफ़ होना हो तो , उस खुदा से बना के रख

आसरा मुझे उस खुदा का मिल जाये तो अच्छा
इकबाल मेरा भी बुलंद हो जाए तो अच्छा
क़ुबूल मेरी इबादत हो जाए तो अच्छा

मुझको भी जन्नत नसीब हो जाए तो अच्छा 

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