Sunday 8 February 2015

मैं स्याह आँखों में सपने बसाना चाहता हूँ

मैं स्याह आँखों में सपने बसाना चाहता हूँ

मैं स्याह आँखों में सपने बसाना चाहता हूँ
मैं किसी रोते हुए को हँसाना चाहता हूँ

मैं उनके तसव्वुर में आना चाहता हूँ
मैं उनको अपनी शरीक़े हयात बनाना चाहता हूँ

मैं उस खुदा के रहमो करम पर पलना चाहता हूँ
मैं उस खुदा के बन्दों की खिदमत करना चाहता हूँ

मैं उनकी मदमस्त निगाहों में बसना चाहता हूँ
मैं उस कमसिन हसीना का निगेह्बां होना चाहता हूँ

मैं उनकी नजाकत पर फ़िदा होना चाहता हूँ
मैं उनके दामन में सिर रखकर सोना चाहता हूँ

मैं उनकी नापसंदगी को क़ुबूल करना चाहता हूँ
मैं उसकी मुहब्बत में खुद को कुर्बान करना चाहता हूँ

मैं नामुमकिन को मुमकिन बनाना चाहता हूँ
मैं रेत के समंदर में कुछ फूल खिलाना चाहता हूँ

मैं उस खुदा का नायाब फ़रिश्ता होना चाहता हूँ
मैं उस खुदा की हर सत्ता को क़ुबूल करना चाहता हूँ

मैं उस खुदा के बन्दों को की परवरिश करना चाहता हूँ
मैं उस खुदा के बन्दों को अपना बनाना चाहता हूँ

मैं उस खुदा की बज़्म का नायाब शेर होना चाहता हूँ

मैं उस खुदा की राह में खुद को कुर्बान करना चाहता हूँ 

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