Sunday, 8 February 2015

वो शमशीर ही क्या जिसमे धार नहीं

वो शमशीर ही क्या जिसमे धार नहीं

वो शमशीर ही क्या जिसमे धार नहीं
वो बात ही क्या जिसका कोई आधार नहीं
जीतते नहीं हैं वो मैदाने जंग में
जिन्हें अपने हौसलों पर एतबार नहीं

वो तीर ही क्या जिसमे हो धार नहीं
वो विचार ही क्या जिसका हो आधार नहीं
वो सवार क्या जीते मैदाने जंग में
जिनकी शमशीर में हो धार नहीं

वह तलवार ही क्या जिसमे हो धार नहीं
बीच मझधार जो साथ न दे वो पतवार नहीं
डूबते हैं वो ही बीच मझधार में
जिन्हें अपनी बाजुओं पर एतबार नहीं
वह व्यक्तित्व ही क्या जिसकी कोई प्रशंसा न हो
वह कर्म ही क्या जिसकी कोई मंजिल न हो
वह नाव ही क्या जिसका कोई किनारा न हो
वो जीवन ही क्या जिसका कोई आदर्श न हो


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