वो शमशीर ही क्या जिसमे धार नहीं
वो शमशीर ही क्या जिसमे धार नहीं
वो बात ही क्या जिसका कोई आधार नहीं
जीतते नहीं हैं वो मैदाने जंग में
जिन्हें अपने हौसलों पर एतबार नहीं
वो तीर ही क्या जिसमे हो धार नहीं
वो विचार ही क्या जिसका हो आधार नहीं
वो सवार क्या जीते मैदाने जंग में
जिनकी शमशीर में हो धार नहीं
वह तलवार ही क्या जिसमे हो धार
नहीं
बीच मझधार जो साथ न दे वो पतवार
नहीं
डूबते हैं वो ही बीच मझधार में
जिन्हें अपनी बाजुओं पर एतबार
नहीं
वह व्यक्तित्व ही क्या जिसकी कोई प्रशंसा न हो
वह कर्म ही क्या जिसकी कोई मंजिल न हो
वह नाव ही क्या जिसका कोई किनारा न हो
वो जीवन ही क्या जिसका कोई आदर्श न हो
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